दोस्ती
दोस्ती
दोस्ती,कितना कोमन वर्ड हो गया है। आजकल जिसे देखो वही सब बोलता है कि अमुक मेरा फ्रैंड है, अमुक मेरा फ्रैंड है।यार, कोई इसकी गंभीरता को समझता ही नहीं अथवा समझना ही नहीं चाहता ।हर कोई फ्रैंड बना घूमता है।दोस्ती हमने भी बहुत की है।निभाईं भी है।आज तक कोई भी इस विषय में हम पर अंगुली नही उठा सकता कि हमने किसी से कोई दगा किया अथवा ठगी की।
पर यार,हम बहुत ठगाए गए ।ऐसा भी नही है कि हम बहुत भोले है अथवा नादान है
पर हम है ही ऐसे,दोस्ती करते हैं तो दिल सेकरते हैं, दिमाग से नहीं।बहुत से दोस्तो ने इस अवसर को भुनाया ।
लोगो को भी बताया कि हमने उसे ठग लिया।पर जाने हम पर क्या,जुनून सवार है कि दोस्ती करना छोड़ ही नहीं पा रहे हैं।सब जानते है परफिर भी आदत से मजबूर है,नए नए दोस्त बनाते जा रहे हैं कारण क्या है पता नहींशायद या तो मालिक की हमपे इतनी कृपा हैकि कोई पांच हजार ठगता है तोवो किसी रास्ते से दस हजार डाल देता हैया हम ये सोच रहे हैं कि अगरसो से दोस्ती करे और पांच भी सही निकले तो बहुत हैं।क्या करू दोस्तों,मजबूरन लिखना पड़ाजमाना दोस्ती का अर्थ भूलता जा रहा है।
दोस्ती को आज अवसरवाद समझ कर जमके फायदा उठाया जा रहा है।क्योंकि दूसरे लोग आजकल ठगाई में आते नहीं और दोस्त बच के जाते नहीकुछ गलत लिख दिया हो तो सॉरी।
