नफ़रत
नफ़रत
आज उसने फिर पैसे मांगे थे। होगी कोई मजबूरी बिचारी की तो मैंने मना कर दिये। और लगे हाथ कुछ छोटे मोटे उपदेश भी दे दिए
कि आपकी तो पैसे से दोस्ती है, जिस दिन पैसे लेने होते है उस दिन प्यारी प्यारी बाते, वरना तो झगड़ा ही झगड़ा आदि आदि।
तो उधर से मैसेज आया कि
"जा यार आज तो तू बिलकुल ही दिल से उतर गया"
सुनकर संतोष सा हुआ कि सही तो बोल रही है वो, जो मैं चाहता था। नहीं तो उसने मांगा ही क्या था? मेरी आधे दिन की कमाई। जो मैं चाहता तो उसे दे सकता था। लेकिन मैं अपना जीवन जी चुका था और उसके जीवन की अभी शुरुआत थी। बहुत अंतर था हम दोनों में, पर भूल से दिल्लगी हो गई थी और हम समय के साथ उस दलदल में फंसते जा रहे थे। यूं तो हम दोनों जानते थे कि हम एक दूसरे की मंजिल नहीं थे, लेकिन क्या करे दिल के हाथों मजबूर थे। मोहब्बत खत्म करना चाहते थे। कई बार एक दूसरे को ब्लॉक भी कर दिया था, कई बार झगड़ा भी हो चुका था, कई बार महीनों महीनों बात भी नहीं होती थी। लगता था जैसे कि अब रिश्ता खत्म हो गया।
परन्तु एक मैसेज आता और फिर वही पहुंच जाते, उसी दलदल में।
आज फिर भी कहानी दोहराई जा रही थी।
मेरे कानों में वो शब्द गूंज रहे थे
" कि जा यार, आज तो बिलकुल ही दिल से उतर गया।"
अब उसे कौन समझाता कि
"पगली, दिल से उतरूंगा नहीं तो, दूसरा दिल में कैसे आएगा। इसलिए मेरा उतरना बहुत जरूरी था।
अब मुझे नहीं पता वो नफ़रत करेगी या भूलेगी।
पर आज बड़ा सुकून सा मिला आत्मा को, कि मैंने किसी को डूबने से बचा लिया और खुद डूबने से बच गया।
