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Vigyan Prakash

Romance Tragedy

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Vigyan Prakash

Romance Tragedy

कातिल

कातिल

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मैं हमेशा सोचता था की मेरी कहानियाँ में हमेशा फ्लैशबैक क्यूँ होता है। मगर उस दिन कुछ ऐसा हुआ की मुझे समझ में आया की हमारी पूरी जिन्दगी ही फ्लैशबैक पर टिकी है फिर ये तो महज़ कहानियाँ है।


मैं अपने ऑफ़िस कैन्टीन में बैठा अपनी अगली कहानी के बारे में सोच रहा था की तभी किसी ने पूछा, "क्या मैं यहाँ बैठ सकती हूँ?"

जब मैने सर उपर किया तो देखा की एक लड़की खड़ी थी। घुंघराले बाल सांवली सी आँखो में काजल काफ़ी खूबसूरत लग रही थी।

"जी बैठिए।" मैनें कहा।

वैसे अपनी सोच में रुकावट आने से मैं थोड़ा अनमना जरुर था मगर मैने उसे बैठने दिया।

"मुझे आपसे कुछ बात करनी है। आप राहुल जी है ना?" उसने कहा।

"जी कहिये।" और मैं कहता भी क्या।

"यहाँ नहीं कही बाहर चलते है।" (समय भी कैसे खुद को दोहराता है)

"जी।" मैने कहा और फिर हम अपने ऑफ़िस के बाहर वाले गार्डन में आ गये।

"जी कहिये क्या बात थी।"

"मैं आरती हूँ। मैने दो हफ्ते पहले ही ऑफ़िस ज्वाईन किया है। मैने आपकी लिखी किताबें और कविताएँ पहले भी पढ़ी हैं। फिर मैनें यहाँ के कुछ लोगो से भी आपके बारे में पूछा सबने आपकी बहुत तारीफ की। पिछ्ले दो दिनों से मैं बस आपके बारे में ही सोच रहीं हूँ। मुझे आपसे प्यार हो गया है।"

मेरे लिए वो नाम ही काफ़ी था उन कड़वी यादों को दोबारा से ज़हन में लाने के लिए। फिर इसने तो मोहब्बत का जिक्र कर दिया। मैं एकदम से स्थिर हो गया बिलकुल शांत। मेरा दिल जैसे आवाज़ ही नहीं कर रहा था। इतना सन्नाटा मैने जिन्दगी में दूसरी बार महसूस किया था। मैं जाकर बेंच पर बैठ गया। वो भी आकर मेरे बगल में बैठ गयी।

"देखीये आप जाइये यहाँ से। आप मेरे बारे में कुछ नहीं जानती।" मैनें कहा।

"मैं सब जानती हूँ राहुल जी।"कहते हुए उसने मेरा हाथ पकड़ लिया।

"प्लीज़, आप कुछ नहीं जानती। अगर जानती तो यहाँ नहीं होती।" यह कहकर मैने उसका हाथ झटक दिया और वहाँ से दौड़ता हुआ निकला। मैं सीधा ऑफ़िस गया और छुट्टी की अर्जी देकर घर चल दिया।

मगर अब मेरे दिलो-दिमाग को चैन कहाँ। बरसों बाद पुराने ज़ख्म कुरेदे गये थे अब दर्द तो होना ही था। मैं घर पहुँचा और सोफे पे लेट गया। यादों के अंधेरे मुझे आगोश में लेते गये।


2 साल पहले...

"भाई तू आ रहा है ना नेपाल टूर पे?"राघव ने पूछा।

"आ... आरती आ रही है क्या?"

"हाँ भाई सुना तो है। मगर ऑफ़िस के सारे लोग नहीं आ रहे।"

सारे लोगो से मुझे क्या लेना देना मुझे तो बस आरती से मतलब था। मैं मन ही मन सोच रहा था इस ट्रिप पर तो उसे अपनी दिल की बात बता ही दूँगा। फिर चाहे जो भी हो वो हाँ करे या ना।

मैनें एक लड़की से पूछा जो हमारे ऑफ़िस में ही थी,"तुमलोग सब ट्रिप पे आ रही हो ना?"

"हाँ लगभग सभी आ रहे है मगर"

"मगर क्या?"

"शायद चंद्रिका और सोनाली ना आये।"

"और...आरती?"

"वो आ रही है। मुझे पता था तुम्हें बस उससे ही मतलब है।"

"अरे नहीं ऐसा कुछ नहीं हैं।" मैने शर्माते हुए कहा।

मेरा दिल ये सुन कर खुश हो गया। अब तो ट्रिप की तैयारी करनी है भाई। हमें दो दिनों बाद जाना था। मैने सारी तैयारियाँ कर ली।

हम सब नेपाल के लिए निकल गये। सभी इतने खुश नज़र आ रहे थे खासकर वो क्योंकि मेरा पूरा ध्यान तो उसी पर था। हमलोग नेपाल पहुंचे। हमने होटल पहुंच कर सामान रखा और आराम किया। अगले दो तीन दिनों तक हम सब आस पास की जगह घूम कर आये। फिर हम सब ने मिलकर माउंटेनियरिंग करने का सोचा। हमने सारी चीज़े जमा की जैसे रस्सी, ऑक्सिजन, मैप, कम्पस। फिर हमने वहाँ की ऑथोरिटिज से परमिशन ली और माउंटेनियरिंग करने निकल पड़े।

रास्ता काफ़ी मुश्किल था। कुछ ऊंचाई तक तो हम गाड़ी से गये फिर हमें पैदल जाना था। हम ग्रुप में बट गये। खुश किस्मती मेरी मैं राघव, आरती, सुनील और सौम्या एक ही ग्रुप में थे। हमने सफ़र शुरु किया। धीरे धीरे हम उपर चढ़ने लगे। पहाड़ पर अब पत्थर की जगह बर्फ दिखने लगी थी। हालांकि रास्ता काफ़ी खतरनाक था मगर हम बढते रहे। रात होने लगी तो हमने रुकने का इन्तज़ाम किया और टेन्ट लगा लिया। राघव ने आग जला ली, हमारे पास खाना तो था ही। मैने सोचा यही सही मौका हैं अपने दिल की बात बोलने का।

"आरती तुमसे कुछ बात करनी है।" मैने कहाँ।

"हाँ बोलो।"

"यहाँ नहीं कही और चलते हैं।"

"अच्छा चलो।"

हम चलते चलते पहाड़ी के चक्कर लगा रहे थे।

"अब बोलोगे भी क्या बात है?",आरती ने पूछा।

"आ..आरती, आ..आरती मैं वो"

"क्या आ..आरती लगा रखा है साफ साफ कहो ना।"

"मैं तुमसे प्यार करता हूँ आरती!"

"सच?",आरती चौंकते हुए बोली।

मैने उसके चेहरे पर जो मुस्कुराहट देखी उससे मुझे यकीन हो गया की वो भी मुझे पसंद करती है।

"हाँ आरती सच।"

"तुम भी बिलकुल बुद्धू हो कितना टाईम लगा दिया बोलने में।"इतना कहकर उसने एक बर्फ का गोला मुझपर फेंका और भागने लगी।

"आरती रुको।" खुशी तो मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रही थी। और मैं भी उसके पीछे बर्फ लेकर भागने लगा। अचानक आरती का पैर फिसला और वो लुढ़कने लगी। मैं उसकी ओर भागा।

"आरती आरती..."मगर वो रुक ही नहीं रही थी। वो पहाड़ के कोने पर पहुंची थी की मैनें उसका हाथ थाम लिया।

"आ...आरती",मैं जोर जोर से चीख रहा था। राघव, सौम्या और सुनील भागते हुए आये। मगर तब तक आरती मेरे हाथ से छूट चुकी थी और मैं पागलों सा बैठा उस खाई की ओर एकटक देख रहा था। मेरा दिमाग सुन्न पड़ चुका था।

इसके आगे मुझे बस इतना याद है की अगले दिन हमें आरती की लाश मिली थी। मैं वापस आते वक़्त पूरे रास्ते कुछ नहीं बोला। उसके बाद मैने अपने ज़ुबान पर उसका नाम तक नहीं लाया।

हाँ मैं उसका कातिल हूँ। मेरी ग़लती की वजह से आज वो इस दुनिया में नहीं हैं।


अगले दिन जब मैं ऑफ़िस गया मैने सीधे जाकर आरती से बात की।

"देखो आरती मैं अपनी जिन्दगी में अपनी यादों के सहारे ही खुश हूँ प्लीज़ मेरी जिन्दगी से दूर रहो।"

आरती ने कुछ बोला नहीं मगर उसका चेहरा उतरा हुआ सा लग रहा था पर मेरे पास ये सब सोचने का वक़्त कहाँ था।

उस दिन मैने उस नौकरी से भी इस्तीफ़ा दे दिया और दूसरे शहर चला आया। अब मैं बस एक लेखक हूँ। और शायद ये आरती की यादें ही है जो लिखने का सबब देती है।



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