Turn the Page, Turn the Life | A Writer’s Battle for Survival | Help Her Win
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Akanksha Gupta

Drama Crime Thriller

4  

Akanksha Gupta

Drama Crime Thriller

कातिल हू नेवर मर्डर्ड -2

कातिल हू नेवर मर्डर्ड -2

10 mins
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उधर सिंघानिया में शन में किसी को यकीन नहीं हो रहा था कि ऐसा कुछ भी हो सकता है। अभी कल ही तो उन्होंने अपने बेटे विधान को कम्पनी का मैनेजिंग डायरेक्टर बनाया था और आज यह सब हो गया। बंगले के बाहर मीडिया और न्यूज चैनल इसे एक ब्रेकिंग न्यूज बना कर अपनी टीआरपी बढ़ाने में लगे हुए थे। हर तरफ एक ही शोर था- “कैसे और क्यों ?”

उधर तीन दिन बाद सिंघानिया मेंशन में एसीपी अर्जुन बिष्ट अपनी तेज नजरों से घर के अंदर पसरी खामोशियों को पढ़ने की कोशिश कर रहे थे। अपनी काबिलियत के बल पर उन्तीस साल की उम्र में उन्हें यह गुत्थी सुलझाने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। उनके साथ इंस्पेक्टर प्रिया भी इस केस की जांच में उसकी मदद कर रही थीं।

मीडिया के सवालों को नजरअंदाज करते हुए जब अर्जुन पहली बार इस घर के अंदर आए तो उन्हें एक अजीब सी खामोशी महसूस हुई। वहां मौजूद हर एक शख्स चाहे वो माधवी सिंघानिया हो, विधान सिंघानिया हो या फिर दीप्ति मृण्जल सब लोग इस तरह खामोश थे जैसे अपने दिल में ना जाने कितने ही रहस्य छिपा रखे हो।

मिसेज सिंघानिया सामने पड़े हुए सोफे पर निढाल होकर बैठी हुई थी। विधान पास ही खड़ा खिड़की से बाहर देख रहा था। दीप्ति वहीं सोफे पर बैठी मिसेज सिंघानिया को दिलासा देने के लिए जैसे शब्द ढूंढ रही थीं।

एसीपी अर्जुन और प्रिया के वहां पहुंचते ही विधान और दीप्ति का ध्यान उन दोनों पर जाता है जबकि माधवी जमीन की ओर एकटक देखने लगी।

“विद योर परमिशन मे आई कम इन?” अर्जुन ने प्रिया के साथ अंदर आते हुए पूछा तो विधान और दीप्ति अपनी अपनी जगह छोड़कर आगे आये। विधान ने उसकी ओर हाथ बढ़ाया और हाथ मिलाते हुए कहा- “प्लीज कम एसीपी अर्जुन, हैव अ सीट।”

अर्जुन ने सोफे पर बैठते हुए घर पर सरसरी तौर पर नजर डाली। वह चारों ओर नजर घुमा कर देख ही रहा था कि उसकी नजर दीप्ति पर आकर ठहर गई। वह दीप्ति को शक की नजरों से देख ही रहा था कि विधान ने अर्जुन से दीप्ति का परिचय कराया- “सर यह दीप्ति मृण्जल है, हमारी बोर्ड ऑफ डायरेक्टर की एक मेम्बर। जब से पापा के बारे मे सुना है, तब से यहीं पर है।”

“ओह, ओके मिस दीप्ति। आई एम सॉरी, वो क्या है ना हमें हमारी ट्रेनिंग में पहली चीज शक करना ही सिखाया जाता है। आप इसे पर्सनली मत लीजिएगा। हमें तो हर बेजान चीज पर भी शक करने की आदत है।” अर्जुन और प्रिया सोफे पर बैठ चुके थे।

“नो इट्स ओके, आई अंडरस्टैंड। इट्स योर ड्यूटी, वैसे कुछ पता चला कि यह सब कैसे हुआ सर के साथ?” दीप्ति ने सोफे पर बैठते हुए पूछा तो विधान ने भी वही सवाल दोहरा दिया।

इस बातचीत के बीच नौकर चाय की ट्रे लेकर आया। उसके जाने के बाद विधान ने घर की केयरटेकर से माधवी को अंदर ले जाने के लिए कहा। माधवी के वहाँ से चले जाने के बाद अर्जुन ने कहना शुरू किया- “देखिए मिस्टर विधान, इस केस में अब तक मेरी जानकारी भी उतनी ही हैं जितनी कि आपकी।” 

“रात के दो बजे पुलिस की पेट्रोलिंग टीम को मिस्टर सिंघानिया की कार हाइवे से लगे फ्लाईओवर पर खड़ी मिली थीं। जाकर देखा तो मिस्टर सिंघानिया कार की आगे की सीट पर लगभग बेहोश पड़े थे या शायद उनकी डेथ हो चुकी थीं, कुछ कहा नही जा सकता। आसपास चैक किया तो वहाँ कुछ मिला नही, यहां तक उनका फोन भी नहीं। वैसे इतनी बड़ी शख्सियत को पहचान पाना कोई मुश्किल बात तो है नहीं सो पुलिस ने पहले आपको बताया और फिर बॉडी पोस्टमार्टम के लिए भेज दी।”

“उसके बाद क्योंकि मिस्टर सिंघानिया जाने माने बिजनेस टायकून थे, सो कमिश्नर साहब ने मुझे इस केस के लिए पर्सनली अपॉइंट किया। अब इस केस को सॉल्व करने की पूरी जिम्मेदारी मुझ पर है एंड आई प्रॉमिस यू दैट आई विल सॉल्व दिस मिस्ट्री वेरी सून।”

अर्जुन ने अपनी बात खत्म करने के बाद प्रिया की ओर देखा। विधान कुछ परेशान लग रहा था, उसने पूछा- “बट इतनी रात को पापा वहां करने क्या गए थे?”

इस बार प्रिया का सवाल था- “यही बात तो हम आपसे जानने आये हैं मिस्टर विधान। क्या यहाँ पर किसी को पता है कि मिस्टर सिंघानिया इतनी रात को उस हाइवे से लगे फ्लाईओवर पर करने क्या गए थे?”

विधान ने भर्राई हुई आवाज में कहा- “काश मुझे पता होता तो आज ये सब नही हो रहा होता एसीपी अर्जुन। और रही बात मॉम की तो उनकी कंडीशन तो आप देख ही रहे है, जबसे पुलिस स्टेशन में पापा को इस तरह से देखा तबसे बस ऐसे ही चुपचाप बैठी हुई हैं। ना कुछ कहती है ना ही सुनती है।”

“और आप इस बारे मे कुछ जानती है मिस दीप्ति?” प्रिया ने दीप्ति से पूछा तो दीप्ति जो अब चुपचाप सब बातें सुन रही थीं, उदास हो कर बोली- “मुझे कैसे पता हो सकता है सर? जब इस बारे में विधान सर को ही कुछ नहीं पता। मुझे तो सर ने सुबह फोन करके इस बारे मे बताया था और फिर घर आने के लिए कहा था और मैं तब से यहीं पर हूँ।”

फिर विधान ने बताया- जी मैने ही इन्हें फोन करके यहां बुलाया था।मॉम की हालत देख कर मुझे टेंशन हो गई थी, समझ नहीं आ रहा था कैसे हैंडल करुं इसलिए इन्हें यहां बुला लिया।

“हम समझ सकते है मिस्टर विधान कि उनका दुःख बहुत बड़ा है और उन्हें इस समय आपके सहारे की जरूरत है लेकिन हमें हमारे सवालों के जवाब मिलने भी उतने ही जरुरी है।” यह कहते हुए जैसे ही अर्जुन और प्रिया खड़े हुए, वैसे ही अर्जुन का सेलफोन बज उठा।

फोन पर बात करने के बाद अर्जुन ने विधान से हाथ मिलाते हुए कहा- “अब हमें चलना चाहिए मिस्टर विधान। आपसे एक रिक्वेस्ट हैं कि जैसे ही माधवी जी कुछ नॉर्मल हो, हमें बता दीजियेगा। उनका बयान इस केस की डाइरेक्शन डिसाइड करेगा।”

“डोंट वरी एसीपी अर्जुन जैसे ही उनकी कंडीशन नॉर्मल होती हैं, मैं खुद उन्हें आपके पास लेकर आऊंगा।” विधान दीप्ति के साथ उन दोनों को दरवाजे तक छोड़ते हुए कहता हैं। उधर माधवी के कमरे मे उसका फोन लगातार बज रहा था जिसे देखकर माधवी को गुस्सा आ रहा था और इसलिए वह फोन काट देती हैं।

उधर एसीपी अर्जुन और प्रिया खामोशी से जीप में पुलिस कमिश्नर के ऑफिस की ओर बढ़ रहे थे। थोड़ी देर तक चुप रहने के बाद प्रिया ने अर्जुन से सवाल किया- “अर्जुन क्या तुम्हें वहाँ कुछ अजीब नहीं लगा? मुझे तो वहां कुछ गड़बड़ लगती हैं।”

“कुछ नहीं बहुत कुछ गड़बड़ हैं वहाँ प्रिया। तुमने नोटिस नहीं किया कि हमारे आने से पहले मिसेज सिंघानिया सोफे पर बस लेटी हुई थी लेकिन जैसे ही उन्होंने हमें आते हुए देखा वैसे ही उन्होंने बेबस होने का नाटक शुरू कर दिया।” अर्जुन ने कहा

“तो क्या माधवी जी हमसे कुछ छिपाना चाहती हैं?” प्रिया ने हैरानी जताई तो अर्जुन को हंसी आ गई। उसने हंसी रोकते हुए कहा- “कुछ नही बहुत कुछ।” इसी बीच वे दोनों कमिश्नर के ऑफिस पहुंच चुके थे।

कमिश्नर देव अरुण के ऑफिस में घुसते ही कमिश्नर देव अरुण और फोरेंसिक डॉक्टर सिद्धार्थ ने अर्जुन और प्रिया का वेलकम किया। चाय लाने का ऑर्डर देने के बाद कमिश्नर ने डॉक्टर सिद्धार्थ की ओर देखा और मुस्कराये। अर्जुन को कुछ भी समझ नहीं आ रहा था कि ये दोनों लोग इस तरह एक दूसरे को क्यों देख रहे है? उसने प्रिया की तरफ देखा तो उसके चेहरे पर भी यही सवाल अपनी मौजूदगी दर्ज करवा रहा था।

कमिश्नर देव ने अर्जुन के मन में उठते हुए सवालों को पढ़ लिया और डॉक्टर सिद्धार्थ की ओर देखते हुए बोले- “देख लीजिए डॉक्टर, आप शर्त हार चुके है। अब तो आपको पार्टी करनी ही पड़ेगी। आपका कोई बहाना नही चलेगा अब।”

“ओके कमिश्नर साहब जैसा आप कहे लेकिन ये पार्टी आपको इस केस के खत्म होने के बाद ही मिलेगी।” इसके बाद दोनों खिलखिला कर हंस पड़े।

क्या हुआ सर, आप दोनों किस शर्त की बात कर रहे है? किस बात पर शर्त लगाई थी आप दोनों ने?” जब अर्जुन से रहा नहीं गया तो उसने कमिश्नर देव से पूछ ही लिया।

अर्जुन का सवाल सुनकर कमिश्नर ने हंसते हुए जवाब दिया- “वो क्या है ना भई अर्जुन, हमारी और डॉक्टर साहब की शर्त तुम दोनों के लौट कर आने पर लगी थी। इनका कहना था कि तुम एक घंटे से पहले यहां नहीं पहुंच सकते और हमने कहा था कि तुम आधे घंटे से पहले ही यहां पर दिखोगे और हमारी बात सच निकली। अब तो डॉक्टर साहब को पार्टी देनी ही होगी।”

“हाँ भई। मैने सोचा कि इतनी यंग ऐज में इतना बड़ा केस, कुछ कन्फ्यूजन तो होगी ही। उसको क्लियर करके ही तुम यहाँ आओगे लेकिन जैसा कि कमिश्नर देव ने तुम्हारे बारे मे कहा था, तुम एक काबिल और फोकस्ड ऑफिसर हो। अब समझ मे आया कि इन्होंने तुम्हें डायरेक्ट यह केस क्यों दिया। तुम वाकई इसके काबिल हो।” डॉक्टर सिद्धार्थ ने अर्जुन की ओर देख कहा तो अर्जुन भी ‛थैंक यू सर’ कहकर मुस्कुरा दिया। तब तक चपरासी चाय के गिलास मेज पर रखकर जा चुका था।

चपरासी के जाने के बाद सबने एक एक गिलास उठाया। चाय का पहला घूंट भरते हुए अर्जुन ने सवाल किया- “आपने फोन करके बुलाया था, कोई अर्जेंट बात थी?”

“बात तो जरूरी ही है लेकिन पहले तुम बताओ वहाँ कुछ पता चला।” कमिश्नर देव ने चाय का घूंट भरते हुए कहा।

“नही सर, वहाँ पर किसी ने भी कुछ नहीं बताया कि मिस्टर सिंघानिया इतनी रात को उस फ्लाईओवर पर करने क्या गए थे।

मिसेज सिंघानिया कुछ बताने की हालत में नहीं है और मिस्टर विधान सिंघानिया और दीप्ति मृण्जल इस बारे में कुछ जानते नही। रही बात वहाँ पर काम करने वाले स्टाफ की तो उनसे ऐसे पूछताछ करना सही नहीं होगा। क्या हुआ सर? इज समथिंग रॉन्ग?” अर्जुन ने सवाल किया तो डॉक्टर सिद्धार्थ ने कमिश्नर की ओर देखा।

फिर उन्होंने एक लंबी सांस लेते हुए अर्जुन को बताना शुरू किया- “तुम्हारा शक सही था अर्जुन, मिस्टर सिंघानिया की यह डेथ नॉर्मल नही है। कुछ तो गलत हुआ है उनके साथ।”

कुछ गलत हुआ है मतलब? प्रिया ने चौंकते हुए अर्जुन की ओर देखा। अर्जुन के चेहरे पर रहस्यमयी मुस्कान थीं।

“मतलब यह प्रिया कि हार्ट अटैक हार्ट मसल्स में ब्लॉकेज की वजह से होता हैं लेकिन यहां ऐसा नहीं हुआ। मिस्टर सिंघानिया की डेथ स्लो हार्ट बीट्स की वजह से हुई।” डॉक्टर सिद्धार्थ ने प्रिया की ओर देखते हुए कहा लेकिन प्रिया के मन मे सवाल अभी भी उठ रहे थे। उसने कहा- “मे बी, उन्हें कोई और बीमारी हो।”

“नही प्रिया ये किसी बीमारी की वजह से नहीं हुआ बल्कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट के मुताबिक पहले उन्हें स्लो पैरालिसिस हुआ जिसकी वजह से उनकी बॉडी ने काम करना बंद किया। उसके बाद उनकी हार्ट बीट्स स्लो हुई और फिर डेथ। और ये सब किसी ऐसी चीज की वजह से हुआ है जो अल्कोहल के साथ स्लो पॉइजन का काम करती हैं।” डॉक्टर सिद्धार्थ ने अपनी बात पूरी की।

“तो वो कौन सी चीज है कुछ पता चला डॉक्टर?” प्रिया का मन अब भी सवालों के घेरे में उलझा हुआ था।

“नही अभी तक नहीं। पोस्टमार्टम रिपोर्ट के मुताबिक उनके पेट मे अल्कोहल और अंडाइजेस्ट फूड ही था जो उन्होंने उस दिन पार्टी में खाया था।” डॉक्टर सिद्धार्थ ने बात पूरी की।

प्रिया कुछ पूछने ही वाली थी कि तभी अर्जुन ने कुर्सी पर से उठते हुए कहा- “और किसी को इस बारे मे पता था जिसने मिस्टर सिंघानिया की कार का पीछा किया और उनके मरने के बाद उनका फोन अपने साथ ले गया। तो क्या इज दिस पॉसिबल कि यह एक मर्डर हैं? अर्जुन ने डॉक्टर सिद्धार्थ की ओर देखा।

“यस दिस इज हाइली पॉसिबल।” डॉक्टर सिद्धार्थ ने कहा तो अर्जुन कुछ सोचने लगा। प्रिया ने फिर सवाल किया- “लेकिन कोई ऐसा क्यों करेगा? उनका तो कोई बिजनेस राइवल भी नहीं है।”

“आजकल दुश्मनी दोस्त बनकर की जाती हैं। पीठ पीछे वार किए जाते हैं। सामने से कोई दुश्मनी नही करता।” अर्जुन प्रिया की ओर मुड़ा।

“पर कौन है जो मिस्टर सिंघानिया से इतनी गहरी दुश्मनी रखता हैं कि उनका मर्डर ही कर दिया?” प्रिया का सवाल था।

“जिस दिन यह कौन मिल जाएगा, उस दिन क्यों भी मिल जाएगा।”

अर्जुन ने कहा और डिस्कशन खत्म हुआ।

अब मिस्टर सिंघानिया का अंतिम संस्कार किया जा रहा था जिसमें कम्पनी का लोकल स्टाफ और विधान के साथ माधवी और दीप्ति भी शामिल थे। यह खबर टीवी चैनलों पर दिखाई जा रही थीं।

उस अंधेरे कमरे में इस खबर को देखता हुआ वो साया पुरषोत्तम सिंघानिया की एक तस्वीर धीरे-धीरे जलाता हुआ कहता है- “काश तुम जिंदा रहते हुए जलने का दर्द महसूस कर सकते मिस्टर पुरषोत्तम लेकिन मैं ऐसा नहीं कर पाया और इस बात का अफसोस मुझे जिंदगी भर रहेगा।”


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