काश ! उनकी सुन लेता
काश ! उनकी सुन लेता
आज आतिश को पाने की कोशिश में,
गुम हो रहा हूँ मैं अंधकार की गोद में,
वो गलियां अब अनजान सी हो गई,
अब अकेला ही जी रहा हूँ सूनेपन में,
गलत थी आतिश पाने की लालसा,
गुमनाम जी रहा अब अपने जीवन में,
मेरे घर के पास ही एक सुंदर बंगला था ,और उसी रास्ते से जाना -आना होता था I आते-जाते अकसर उस बंगले पर मेरी नज़र पड़ जाती थी। कैसा भव्य वास्तुशिल्प था-कला और वैभव का संगम हो जैसे। खूबसूरत लॉन, हरियाली से भरपूर था और खुली जगह में बड़ी- बड़ी गाड़ियाँ खड़ी रहती थी I सुंदर सा लोहे का मजबूत फाटक जिसके भीतर एक व्यक्ति मुस्तैदी से वहाँ तैनात रहता था। और दीवार के सहारे बड़ी-सी नेमप्लेट थी। जिस पर सुनहरे अक्षरों में मालिक का नाम लिखा हुआ था I (उमेश शेट्टी)
वहाँ लोहे के सुनहरे गेट के पास एक व्यक्ति बैठा था।
"यहाँ का मालिक कौन है ? क्या मैं उनसे मिल सकता हूँ ?" मैंने अधीरता से पूछा।
उत्तर में उसने कार्ड का एक टुकड़ा मुझे पकड़ा दिया। "यह क्या है ?"
"नम्बर है। यहाँ नम्बर से काम होता है।"
मैंने कहा-"जरूरत हो तब भी ?"
उस व्यक्ति ने कहा -"जरूरत सभी की होती है, लेकिन इस नंबर पर बात करो अगर मालिक मिलने के लिए हाँ कहते हैं ,तभी मिल सकते हो वरना चलो जाओ"
मैं कार्ड लेकर वापस अपने घर को आ गया, पूरा दिन कार्ड को उलट-पुलट कर देखता रहा सोचा बात करूँ या ना करूँ,I यदि काम बन गया तो बड़ी सी नौकरी मिल जाएगी और मेरी दुनिया ही बदल जाएगी फिर तोI
पिताजी ने कहा -"ऐसे सपने देखना बंद कर मेहनत कर दुनिया अपने आप बदल जाएगी"
पता नहीं क्यों रोज बड़बड़ करते रहते हैं , और मुझे सुनहरे सपने नहीं देखने देते I
मैंने सोचा आज फोन कर ही देता हूँ अब उस मालिक को, देखा जाएगा जो होगा I
पिता जी ने बहुत समझाया- "सही आदमी नहीं है ,गलत काम से पैसा जोड़कर उसने इतना बड़ा महल बनाया है I मत काम कर उसके साथ"I
पर मैं कहाँ सुनने वाला था ,अपने पिता की बातें I मुझे तो वह आलीशान बंगला बहुत पसंद आ गया I मुझे भी ऐसा बंगला चाहिए कुछ भी करके I
फोन पर बात हो गई कल शाम को बुलाया हैI
बाजार जाकर नए कपड़े खरीद लायाI आखिर मालिक से मिलना है तो सुंदर तो लगना चाहिए ना! ......
बदल जाएगा जीवन मेरा ,फिर सुनहरा होगा कल मेरा ,
पैसा ही पैसा आएगा बहुत ,उज्ज्वल होगा भविष्य मेरा I
शाम को ठीक उसी लोहे के दरवाजे के पास कार्ड लेकर खड़ा होता हैI मालिक से बात हुई है ,आज शाम को मिलने के लिए बुलाया है मुझेI
गेट के पास बैठा व्यक्ति कहता है - "ठीक है आप अंदर जा सकते हो I"
वहाँ मालिक तो नहीं मालिक के कुछ आदमी बैठे हुए थे I उन्होंने मुझे काम समझा दियाI मुझे थोड़ा अटपटा तो लग रहा थाI मालिक से तो मिला ही नहीं I वहाँ के कुछ लोगों से ही बात हुई I मुझे तो बस पैसा ही चाहिए ,मालिक से तो मिलते रहेंगे I पैसा बहुत है इस काम में Iइसलिए मैंने झट से हाँ कर दी I
अगले दिन मुझे दुबई जाना था काम मिला था Iमैंने अपने पिताजी को कहा- कि "मुझे दुबई काम से जाना है" I पिताजी ने फिर से बड़बड़ाना शुरू कर दिया "मेरी बात सुन ले उस आदमी का काम न कर बाद में पछताएगा"I पर मैंने उनकी बात को अनसुना कर दुबई जाने की तैयारी शुरू कर दीI
बहुत खुश था ,दुबई के लिए I एयरपोर्ट पर पहुँच गया, वहाँ दो आदमी मिले उन्होंने मुझे एक बैग दिया और कहा -"एयरपोर्ट पर तुम्हें एक आदमी मिलेगा बस उसे यह पकड़ना है"I मैंने वह बैग लिया और हवाई जहाज में बैठ गया I वाह! पहली उड़ान अब तो लग रहा था मेरे सपने सच हो कर ही रहेंगे,....... मेरी आँख लग गई I मैं सपनों में खो गया I
पैसा ही पैसा बरस रहा चारों ओर से ,
समेट नहीं सकता अपनी हथेलियों से I
तभी मेरे सपने चकनाचूर हो गए, एक पुलिस वाला मुझे गिरफ्तार कर ले गया I वो उमेश शेट्टी गलत काम करता था I पूरे 1साल की सजा हुई , वो पूरा 1 साल दस साल के बराबर गुजरा, जेल से बाहर आया I खबर मिली अब पिताजी नहीं रहे, और जो घर था वो किसी ने हड़प लिया I पिता की बात रह-रहकर याद आती है I
काश उनकी सुन लेता...........