काश बेटे को कुछ सिखाया होता
काश बेटे को कुछ सिखाया होता
"अरे यार प्लीज इतनी सी बात तो सुन लो मेरी! सोहम मैं नहीं हिल पा रही हूँ जगह से, मुझे तकलीफ हो रही है" सोहम दौड़ा दौड़ा धानी को पकड़ कर धीरे धीरे कार में बिठाता है और ले जाता है अस्पताल।
अस्पताल पहुंचने तक धानी की हालत और ख़राब हो जाती है। उसे सीधे आई सी यू में ही शिफ्ट किया जाता है। डॉक्टर पांच मिनट में कहते हैं कि अभी ऑपरेशन करना होगा और सोहम को सारी कागजी कार्यवाही करने को कहते हैं। सोहम कांपते हाथ से फॉर्म भरता है, तभी उसकी माँ और बड़े भाई आ जाते हैं।
धानी की शादी को अभी दो साल ही हुए थे, वो आठ माह की गर्भवती थी। सोहम और धानी काम के कारण अलग शहर में रहते थे। धानी सबकुछ अकेले ही संभालती थी क्योंकि सोहम को ऑफिस जाने के अलावा कोई काम नहीं आता था। वो तो अपना टॉवल तक उठा के नहीं रखता था। धानी ने कई बार कहा भी, कुछ सीख लो। कम से कम चाय या मैगी ही बना लिया करो। पर वो कहता ये सब लड़कियों के काम हैं क्योंकि शुरुआत से ही दिमाग़ में यही घुसाया गया था।
धानी को
गर्भवस्था में काफ़ी तकलीफ होने लगी थी। सोहम से तो कोई मदद मिलने से रही। उसकी माँ थी नहीं और सासू माँ आयी नहीं क्योंकि वो आती तो बड़े भैया के बच्चों को संभालने में दिक्क़त हो जाती। धानी ने पूरे समय के लिये एक कामवाली रख ली, उस पर भी सोहम चिढ़ता था।
अचानक आठवें महीने में कामवाली के पिताजी गुज़र गए तो वो गांव चली गयी। अब तो धानी की मुश्किल बहुत बढ़ गयी थी, एकदम से दूसरी कामवाली मिलना भी मुश्किल। सोहम से तो कुछ उम्मीद करना बेकार। उसने सासू माँ को बहुत बुलाया, वो बोली आती हूँ एक दो दिन में। अब जैसे तैसे काम निपटाने के चक्कर में धानी का पैर फिसल गया। उसने सोहम को फ़ोन किया और सीधे अस्पताल पहुंचने को बोला.
ऑपरेशन हुआ, डॉक्टर ने आकर बोला धानी की हालत थोड़ी गंभीर थी और बच्चा नहीं रहा। कोई कुछ नहीं बोल पाया। चार दिन बाद धानी की हालत में सुधार आया। सब मिले, धानी रोते हुए सासू माँ से बस इतना ही बोल पायी कि काश आपने बेटे को भी कुछ सिखाया होता तो आज ये ना होता।