काले पन्ने

काले पन्ने

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सुबह विकास का टिफिन पैक करके महक बच्चों को स्कूल छोड़ने चली गई।

लौटकर आई तो सास-ससुर को चाय-नाश्ता देकर घर के काम निपटाने लगी।


“महक..!”


“आई विकास..!”


“हाँ बोलो क्या चाहिए..? सब तो रखा है निकाल कर..? यह देखो। आपका टिफिन, रुमाल और... हाँ बाबा सब रखा है, बस एक चीज भूल गई...”


“क्या...?” महक विकास का इशारा समझकर अनजान बनी।


“कुछ भी तो नहीं भूली... मैं चली काम निपटाने... आप भी तैयार हो जाओ... नाश्ता तैयार है।”


विकास ने खींचकर महक को गले लगा लिया। अपना गाल आगे करके बोला, “यह भूल गई थी तुम...” शरारत से मुस्कुरा कर बोला।


“तुम भी न विकास...” महक विकास को किस करने के बाद मुस्कुराते हुए काम में लग गई। विकास ऑफिस निकल गया।


“बहू तुम्हारे नाश्ते का समय नहीं हुआ क्या...?” महक की सास रमा ने रसोई में आकर पूछा।


”बस माँ यह पालक साफ कर लूँ..। पापा के लिए सूप बनाना है।”


“ला मुझे दे... रोज का नाटक है तेरा... कभी समय पर नाश्ता नहीं करती। ला मुझे दे, मैं साफ करती हूँ।”


”माँ मैं...”


”कहा न पहले नाश्ता...” रमा ने आदेश दिया।


“जी माँ...” महक नाश्ता लेकर कमरे में चली गई। नाश्ता करते हुए अपना मोबाइल उठाया। उसमें एक मैसेज देखकर चौंक गई महक!


अजय का मैसेज...? महक मैसेज पढ़ने लगी।


’हाय महक कैसी हो...? मैंने जो कुछ तुम्हारे साथ किया उसके लिए सॉरी।

मैं तुमसे मिलना चाहता हूँ... क्या हम मिल सकते हैं...? यह सब क्यों हुआ, किसलिए हुआ था...? जानना नहीं चाहोगी।’


महक बीते दिनों की यादों में खो जाती है। अजय और महक एक ही कॉलेज में पढ़ते थे। और एक दूसरे से बेहद प्यार करते थे।


यहाँ तक कि उन लोगों ने शादी का फैसला कर लिया था, माँ-बाप भी उनकी खुशी के लिए तैयार हो गए थे। शादी का मंडप सजा था, सारे मेहमान आ चुके थे।


पर बारात का कहीं अता-पता नहीं था। सब लोग बारात के आने का इंतजार कर रहे थे। पर बारात तो नहीं बारात की जगह एक मैसेज आया, ‘महक मैं तुमसे शादी नहीं कर सकता हूँ। कारण तुम्हें बता नहीं सकता, आशा है तुम मेरी मजबूरी समझोगी। हो सके तो मुझे माफ कर देना।’ महक तो चक्कर खाकर गिर पड़ी थी।


माता-पिता पर तो दुख का पहाड़ टूट पड़ा था। जवान लड़की दुल्हन बनकर भी विदा न पाए, यह सोचकर ही बिखर गए थे शशांक।


ऐसे में विकास की फैमिली ने आगे बढ़कर महक को अपने घर की बहू बनाने का प्रस्ताव रखा। जिसे शशांक ने सहर्ष स्वीकार कर लिया।

महक के पास भी कोई दूसरा नहीं था। अपने माता-पिता की खुशियों के लिए उसने भी हाँ कर दी।


और महक इस तरह से विकास की ब्याहता बनकर अपने ससुराल आ गई। विकास बहुत ही सीधा और सुलझा हुआ इंसान था।


“महक मैं तुम्हारी स्थिती से वाकिफ हूँ। शायद तुम्हें वो खुशी न दे पाऊँ, जो तुम चाहती हो। पर एक वादा करता हूँ, मेरी वजह से कभी तुम्हारी आँखों में आँसू नहीं आएंगे।”


यह सुनकर महक रोते हुए विकास के सीने से लग गई। और धीरे-धीरे विकास का प्यार उसकी रग-रग में समाने लगा था।


सास-ससुर तो बेटी की तरह प्यार करते थे महक से। महक ने भी सबको खुश रखने में कोई कसर नहीं छोड़ी। जल्दी ही दो जुड़वां बेटों की माँ बन गई थी महक।


आज आठ साल बाद फोन में अजय का मैसेज देख महक विचलित हो उठी।


“बहू पालक साफ हो गई है। चाय बना रही हूँ, पियोगी क्या...?”


”हाँ माँ..!! मैं अभी आई।”


‘हाय अजय क्या हुआ था क्यों हुआ था..? मेरे लिए कोई मायने नहीं रखता। अगर कोई मायने रखता है तो वो है मेरा परिवार। विकास और उसकी फैमिली ने न सिर्फ मुझे संभाला बल्कि मेरी और मेरे परिवार की इज्जत नीलाम होने से बचाई।

आशा है तुम समझ गए होगे मैं क्या कहना चाह रही हूँ...?अब मुझे फोन या मैसेज करने की कोशिश मत करना। मैं ज़िंदगी के काले पन्ने फाड़कर फेंक चुकीं हूँ।’


और गुनगुनाते हुए, ‘छोड़ आए हम वो गलियाँ...’ महक अजय का नंबर ब्लॉक करके डिलीट कर देती है।बाहर आकर सास-ससुर के साथ बच्चों की शैतानियों को याद करके हँसने लगती है।


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