मुज़फ्फर इक़बाल सिद्दीकी

Abstract

4  

मुज़फ्फर इक़बाल सिद्दीकी

Abstract

काला गुलाब

काला गुलाब

5 mins
24.8K


ऐसा नहीं था कि ये अर्चना के लिए कोई नई बात थी। हर बार ज्यूरी की आँखों में आँखे डालकर पूरे विश्वास के साथ जवाब देकर, उनके चेहरे से संतुष्टि के भाव लेकर आई थी। लेकिन हर बार की तरह फिर ये लेकिन, किन्तु, परन्तु क्यों लग जाता था। उसका सीवी देख कर तो एचआर भी अचरज में पड़ जाता था। एमबीए भी अच्छे कॉलेज सी किया था।

फिर मार्केटिंग मैनेजर की लिस्ट से उसका नाम नदारद क्यों है। क्या किसी ने लिस्ट फाइनल करने वाले को नाम लिखते-लिखते रोक लिया। आज भी ऐसा ही हुआ। जब शाम को उसने नेट पर फाइनल लिस्ट सर्च की तो उसका नाम गायब था।

"माँ, मेरी एक बात समझ में नहीं आती। कोई मुझे बताता क्यों नहीं कि मेरी गलती क्या है। जीडी भी मेरा अच्छा रहता है। मेरे उत्तर देने के उपरान्त कोई क्रोस नही बनता। हमेशा एक संतुष्टि का भाव लेकर उठती हूँ, मैं अपनी सीट से। फिर आखिर ऐसा क्या है कि मुझे हमेशा मेरी क्षमता से कम आंका जाता है।"

माँ भी निरुत्तर थी। अभी कल ही लड़के वालों की तरफ से भी जवाब, न में आया था। एक सप्ताह से गोल-मोल जवाब दे रहे थे। शुरू में लगा कुछ डील करना चाहते हों। पण्डित जी को तो उस दिन रात को ही बता दिया था। लेकिन ये भी कहने में संकोच कर रहे थे।

लेकिन आकाश एकांत में जब अरचू से बात करके आया था तब तो बड़ा खुश लग रहा था उसके चेहरे के भाव मैं ने पढ़े थे। मैं भी संतुष्ट हो गई थी। आखिर ऐसी क्या कमी है अर्चना में, जो कोई उस से प्रभावित न हो पाए। तो क्या मेरा अनुमान भी गलत हो गया। पण्डित जी से कारण पूछा तो बताया कि लड़की का रंग दबा है। माँ और बहनों को समझ नहीं आई। आकाश तो बार-बार कह रहा था लेकिन उसकी बात अनसुनी कर दी।

इस तरह तो काली लड़कियों के लिए न तो कोई अच्छा लड़का मिलेगा न ही अच्छी नौकरी। चलो मान लिया शादी ब्याह में एक बार ये सब चलता है। लेकिन नौकरियों में मार्केटिंग में भी गोरी चिट्टी लड़कियां रखी जाएगी तो फिर इन बेचारियों का क्या होगा। 

क्या काबिलियत की कोई कदर नहीं? क्या ये दुनिया बिल्कुल नकली हो गई? तो फिर क्या भौंरे भी काग़ज़ के बने नकली फूलों पर मंडराएंगे। माना कि नकली फूल मुरझाते न हों लेकिन उनमें वो खुशबू , वो पराग, वो रस ,वो ताज़गी भी तो नहीं है। जिसकी दुनिया को तलाश होती है।

बनावटीपन तो एक आभामंडल है, केवल। जिसे देखकर कोई भी आकर्षित हो जाता है। जब असलियत का पता चलता है तो सिवाय पश्चाताप के कुछ हासिल नहीं होता।

लेकिन मैं भी इसकी माँ हूँ। ये मेरी फूल सी बेटी अभी नहीं जानती बनावटी पन क्या होता है, डुप्लीकेसी क्या होती है और डिप्लोमेसी क्या होती है।

अगर आज इसे लड़के वालों का फैसला पता चल गया तो ये और मुरझा जाएगी। मेरी फूल सी बेटी है। इसका रंग काला हुआ तो क्या हुआ। गुलाब का फूल भी तो काले रंग का होता है। तितली भी तो काले रंग की होती है। उसका भी अलग आकर्षण है। सबका अपना-अपना महत्व है। 

अब मैं इसे तैयार करूंगी। मेरी पढ़ाई-लिखाई भी किस दिन काम आएगी। एक दिन मेरी बेटी कामयाबी के शिखर पर होगी।

माँ ने अपने ही अंतर्द्वंद को, खुद ही शांत कर लिया और प्रतिज्ञा भी कर ली अपने आप से।

फिर बनावटी मुस्कुराहट होंटो पर लाते हुए कहा- 

"अरे छोड़, इन सब बातों को। कहीं न कहीं तो हो ही जाएगा। तू चिंता मत कर। खाना लग गया टेबल पर चल पहले खाना खाते हैं।"

अच्छा, मैं अभी हाथ धोकर आती हूँ। माँ।

अर्चना बेटी, आकाश बोल रहा था न कि जो भी इसका रिजल्ट आए मुझे बता देना। तेरी उस से बात हुई क्या।

हाँ माँ, उसका फोन तो आ रहा था। लेकिन मैं अटेंड नहीं कर पाई। 

तो क्या, अभी खाना खा कर लगा लेना। मेरी भी बात करा देना।

अब क्या फोन करना माँ, सुनीता मेरी फ्रेंड है न, बता रही थी। वे लोग कहीं और भी लड़की देखने गए थे। क्या इन्होंने भी मना कर दिया।

नहीं तो, अरे लड़के वाले हैं, गए होंगे कहीं देखने। कोई अच्छा लड़का मिलेगा तो हम भी देखेंगे। अभी कोई जवाब थोड़े न दिया है इन्होंने। 

थोड़ी देर बाद अर्चना ने आकाश से बात की और रिजल्ट के बारे में सब कुछ बता दिया। ज्यूरी में आकाश का दोस्त भी था। उसने कुछ देर बाद बताने को कहा।

अभी-अभी फोन की घंटी बजी। देखा तो आकाश का ही फोन था। अर्चना ने माँ से भी बात करा दी।

हाँ बेटे, जीते रहो। फिर तुमने अर्चना की बात की क्या तुम्हारे दोस्त की कंपनी में।

हाँ आँटी, मेरी बात हो गई। सेकंड लिस्ट में आजाएगा उसका नाम। आप चिंता मत करिये।

हाँ बेटे। जबरदस्ती मायूस हो रही थी। बेटे कभी इधर से निकलो तो ज़रूर आना। अंकल भी तुम्हें याद कर रहे थे।

इस तरह आकाश का भी आना-जाना और अर्चना से मिलना शुरू हो गया। उधर उसकी माँ-बहने खूबसूरत गोरी चिट्टी लड़कियां देखती रहीं। अर्चना ने आकाश के दिल में अपनी काबिलियत से धीरे-धीरे जगह बना ली। अब खूबसूरती-बदसूरती के कोई मायने नहीं थे दोनों के दिल, ख्यालात, पसंद, नपसंद एक जगह पर मिल चुकी थे। मानसिक तौर पर वे दोनो एक ही रास्ते पर चलने को तैयार थे।  

अंततः आकाश के घर वालों को आकाश का फैसला मानना पड़ा। अब आकाश और अर्चना शादी के बंधन में बंधने जा रहे थे। 

माँ का काला गुलाब उसकी सूझबूझ से खिल चुका था। शादी के मंडप में अर्चना दुल्हन बनी बैठी बहुत प्यारी लग रही थी।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Abstract