जन्मों का रिश्ता (भाग 1 )
जन्मों का रिश्ता (भाग 1 )
कल रात में 1 बजे के करीब घर पहुँचे। बुरी तरह थक गए थे। आँखें नींद से बोझिल हुए जा रही थी। चाय बनाई और बिस्किट चाय लेकर सो गए। जब से अवस्थी जी रिटायर हुए है, लगभग साल में दो बढ़ी ट्रिप और एक दो माह में छोटी ट्रिप बना ही लेते है। इस बार हरिद्वार गए थे।
सुबह सुबह बेल बजी अवस्थी जी उठकर बाहर गए। पता नहीं कौन था। कुछ बता रहे थे, पर नींद की वजह से मैं सुन नहीं पाई। 10 बजे के करीब नींद खुली तो देखी अवस्थी जी तैयार होकर मेरे सामने बैठे थे। अरे आप इतनी जल्दी में कहीं जा रहे हो क्या? मैंने प्रश्नवाचक दृष्टि से देखा। अवस्थी जी ने कहा "एक प्रतिष्ठित अखबार वाले आये थे, सर आपका साक्षात्कार लेना है बोले तो मैंने समय बताया अभी आ ही रहे होंगे चलो जल्दी से तैयार हो जाओ। "मैं, मैं क्यूँ भला,अवस्थी जी बोले "अरि भागवान!! तुम बिन तो मैं स्वर्ग भी न जाऊँ" धत! मैंने कहा और नहाने चली गयी। जैसे ही तैयार होकर बाहर आई अवस्थी जी चाय लेकर खड़े हो गए। सुबह की पहली चाय अवस्थी जी ही बनाते है। शादी के पहली सुबह न जाने किसने बनाई पर मेरे हाथों में अवस्थी जी ने ही लाकर दी। दोनों लॉन में बैठे चाय पी ही रहे थे कि, इंटरव्यू के लिए वो लोग आ गए।
सर कुछ दिनों बाद "वेलेंटाइन डे" है तो हमने सर्वे किया, बेस्ट कपल के लिए आपका इंटरव्यू लेना चाहते है, ताकि हम अपने अखबार में वेलेंटाइन विशेष कॉलम में छाप सके।
"अरे हम लोग तो", अवस्थी जी की बात काटते हुए एक सज्जन बोले "नहीं सर, उम्र के साथ प्रेम परिपक्व होता है, प्यार कभी बूढ़ा नहीं होता। अपना आशीर्वाद समझकर ही आज की पीढ़ी के लिए कुछ साझा कर दीजिए।"
उस दिन बहुत तेज़ बारिश हो रही थी। सावन की पहली बारिश, भीगने से बचने के लिए पेड़ की छाँव में ठहर गया। मैं भीगा तो बिल्कुल भी नहीं था, पर ठंड लगने लगी थी। तभी एक लड़की भागते हुए आई पेड़ के नीचे। पूरी तरह भीग चुकी थी। सूती का कपड़ा बदन से चिपक गया था। कंधे तक काले घुंघराले बाल से पानी यूँ टपक रहा था मानो पेड़ के पत्तों से पानी की बूंदें बून्द बून्द फिसल रहा हो। उसे देखते ही एक आकर्षण में खींचता चला गया, तभी माथे में फैले सिंदूर पर नजर पड़ी, मैं ठहर गया ओह्ह शायद शादीशुदा है। पानी की वजह से ठंड से कांप रही थी। मैं उसकी तरफ से मुँह फेरकर खड़ा हो गया, जबकि मेरे पास कुछ कपड़े थे जिनसे कम से कम वो अपने सर के पानी को सूखा सकती थी। पहली नजर में दिल दे बैठा, पर वो तो किसी और कि है। खीझ उठा !! मन ही मन। पहली बार किसी लड़की के लिए ऐसा आकर्षण महसूस किया। करीब 10 मिनट हो चुका था। मैं उसकी तरफ पीठ करके खड़ा था। बारिश और तेज़ हो गयी। मैंने अचानक पलट कर देखा वो मेरे करीब आ चुकी थी।
"सुनिए! आपको कहाँ जाना है?" मैंने बताया थोड़ी देर बाद मेरा नाम पूछी, "क्या करते हो" हमारे बीच बातचीत का सिलसिला शुरू हो गया। इस बीच वो सिर्फ मुझे, मेरे बारे में सब जान गई। यहाँ तक का मेरा मोबाइल नम्बर भी उसने ले लिया। बारिश बंद हुई वो चली गयी, जाते-जाते उसने
"कब मिलोगे कहा" मैंने भी हँसते हुए कहा यहीं कहीं "जब बारिश होगी" और वो चली गयी। पता था किसी अजनबी से लगाव सा हो गया। फिर भी....वो शादीशुदा है। ये हमारी पहली व अंतिम मुलाकात है, ये हसीन इत्तेफ़ाक बार -बार थोड़ी न होगा। खुद पे हँसते हुए मैं भी वहाँ से निकल गया।
मैं इंजीनियर था, यहाँ नई पोस्टिंग में आया था। पहले दिन ही इस शहर ने इतना हसीं याद दे दिया, न चाहकर भी उसका चेहरा याद आ जाता। गोरा चाँद सा चेहरा, उसपे काले घुंघराले बाल मानो काली घटाओ के बीच चाँद निकला हो। शायद उसके माथे पे फैले सिंदूर को नहीं देखता तो पक्का प्यार कर बैठता....पर ये क्या है जो मेरे साथ हो रहा है। बार बार उसका याद आना, उसकी मीठी आवाज़ कानों में संगीत की तरह गूँजते रहती। फील्ड में जाते समय अक्सर उस मोड़ पे रुक जाता, उसी पेड़ की छाँव जैसे एक यंत्रवत सा, मैं उसका इंतजार कर रहा हूँ।
आज पूरे शहर में नये साल का जश्न मना रहे है ,पर मैं अभी भी उलझा हुआ हूँ। आज अपने लिए एक डायरी ली, नहीं मैं कोई लेखक नहीं, मुझे लिखना पसन्द भी नहीं फिर भी न जाने क्यों? कुछ काम कभी-कभी मन से नहीं, दिल से होते है।
इस वर्ष के विदा होने के पहले मैं उन यादों को संजोना चाहता हूँ। रात में नींद नहीं आ रही थी। चारों तरफ लाउडस्पीकर का शोर जिसमें नए साल को लेकर गाना बज रहा था। पर मैं टेबल में बैठकर डायरी लिखने लगा, उस हर पल, हर लम्हा , हर बात जो उसने कही थी कैद करता गया, और दोनों हाथ फैलाकर,आँख मूँदकर दुआ करने लगा,की काश!! उससे फिर मुलाकात हो और ये डायरी में आगे कुछ लिख पाऊँ।
सुबह -सुबह माँ का कॉल आया, मंदिर जाने के लिए बोल रही थी, वादा करके फिर लेट गया। हर वर्ष की तरह इस बार भी मंदिर जाना तो था, पर पहले से ही लेट हो चुका था। सीधे ऑफ़िस निकल गया कि वापस आते आते चला जाऊँगा।ऑफ़िस से वापस आते -आते सरदर्द शुरू हो गया, गाड़ी मंदिर की तरफ न मोड़ कर कॉफी शॉप के सामने रोका। एक टेबल में जाकर बैठा, कॉफी के आते तक एक कॉल आ गया। एक नम्बर नोट करना था जेब से पेन निकाला हड़बड़ी में बैग से डायरी निकाला पीछे के पेज में नम्बर नॉट किया। तभी एक चिर परिचित आवाज़, वही हँसी पलट कर देखा तो वही लड़की बैठी थी, जिसका नाम भी मैं नहीं जानता था।
उसकी नज़रें, मेरी नज़रों से मिली, वो पहचानने की कोशिश कर रही थी, या शायद पहचान चुकी थी। हल्के से हाथ हिलाकर अभिवादन किया। बहुत सारे लोगो के साथ बैठी थी, शायद उसकी फैमिली हो।
कॉफी पीकर मैं निकल गया। घर पहुँच कर जल्दी से बैग से डायरी निकालने लगा ओह्ह!! मेरी डायरी ...मेरी डायरी वहीं छूट गयी थी। बाइक निकाल कॉफी शॉप पहुंचा, पर मेरी डायरी नहीं मिली। बोझिल कदमों से घर आया। शायद ईश्वर को यही मंज़ूर था। वैसे भी तो वो शादीशुदा थी। किसी ब्याहता लड़की से इश्क़ पाप है। अपने मन को दिलासा देने लगा। माँ का फिर फोन आया और तैयार होकर पास के मंदिर गया। आरती के समय पहुँच गया। मन उदास था, फिर भी शांति, और सुकून का अनुभव हो रहा था। इस बार दुआ माँगी की उसे भूल जाऊँ, पर ईश्वर को कुछ और ही मंज़ूर था। मंदिर में ही एक अंजान नम्बर से कॉल आया। हैलो!! इतना सुनते ही मैं अपना होश खोने लगा, मैं चुपचाप बस उसकी आवाज़ सुनने लगा। उसकी मिश्री सी मीठी आवाज़,बूँद -बूँद रिसकर रक्त में समाने लगी। मेरे मौन की वजह से फोन कब का कट चुका था। मैं फोन अब भी कान में लगाये हुए था। पंडित जी मंदिर बंद करने आये उनकी आवाज़ से तन्द्रा टूटी।
क्रमशः

