जंगल
जंगल
रात का अंधियारा जंगल मे फैल रहा था , झिन्गुर की आवाजें तेज हो रहीं थीं। ओपेन जीप में नाइट सफ़ारी के लिये हम लोग गाँव से लगे जंगल मे निकले हुए थे। इस जंगल मे जंगली जानवर बहुत थे। एक जमाने मे हमारे ससुराल मे लोग जंगली जानवरों के शिकार को निकला करते थे। सरकार के प्रतिबंध के बाद अब ज्यादातर सब शौकिया सफ़ारी को निकलते मगर हमे नही ले जाते।इस बार हम अपने पतिदेव और देवरों के साथ जिद करके सिर्फ सफारी के लिये चले आये थे।
अद्भुत रोमांच महसूस हो रहा था। घुप्प अन्धेरा, जंगल की आवाजें, फैलती ठण्डक ,तारों भरी रात की छटा और पतिदेव का साथ। सब एक मोहक तिलिस्म सा पैदा कर रहा था। जीप मे सुरक्षा के लिये, दुनाली लिये दोनो देवर अगल -बगल और पीछे पतिदेव खड़े थे। आपस मे धीमी धीमी आवाजों मे शरारतें-बातें चल रही थीं।
अचानक जंगल की कच्ची सड़क पर ,एक ओर, कुछ दूरी पर ,धीरे धीरे चलती जीप की लाईट मे ढेर सारे जुगनू से दिखे। हमारे अनुभवी ड्राईवर चंदर ने जीप बन्द करते हुए कहा
" सब चुप, जल्दी नीचे हो जाओ, देखो उस ओर चीतल का झुण्ड लगता है और दुसरी ओर शायद कोई शिकारी जानवर है!" , मैने फुसफुसाते पूछा "तुमको कैसे पता चंदर, मुझे तो जुगनू लग रहे। "," श्श्श भाभी जी चुप भी रहिये। " मेरे देवरों ने मुझे टोका। चंदर बोला"आँखें चमकती है रात मे जानवरों की भाभी जी ,बस अब शांत देखती रहिये। "
हाँ ,सच मे !! सारे जुगनू मतलब आँखें ठहरी हुईं थीं पर मेरी अधीरता बोल उठी ,
"कोई चीतल तो नही दिख रहा भैया"
" जी दिखाता हूँ भाभी जी "
उसने अपनी बीम टॉर्च से चीतलों का झुण्ड दिखाया। सबसे आगे चार पांच चीतल थे। एक बच्चा भी था जो दूध पी रहा था मगर टॉर्च की रोशनी से एकाएक मां से हट कर रोशनी की ओर देखने लगा। उसने टॉर्च बन्द कर दी।
उसी समय जैसे ही टॉर्च बन्द हुई, चीतलों के दुसरी ओर दो आँखें जमीं से थोड़ा उपर-नीचे हुईं, तो इधर इस ओर बहुत सारी चमकती आँखें भी इधर उधर हुई। अब वे दो आँखें पहले थोड़ा आगे आ कर, उपर उठ कर , ठहर गईं। इधर कुछ देर बाद , झुंड की हलचल धीरे-धीरे थम गई।
"भैया गाड़ी भगा लीजिए ,हमे अच्छा सा नही लग रहा। ",
"आईं हैं तो खामोश हो देखिये आप "
पतिदेव ने झिड़कि दी। दिल घबराने लगा था। जान रहे थे की शिकारी ,शिकार को तैयार है। मगर हम अब देखना नही चाह रहे थे। मन में बार-बार उस बच्चे का ख्याल आ रहा था। नाहक हम बोले की कोई जानवर नही दिख रहा। शिकारी देख लिया होगा चीतल के बच्चे को। हमारा मन अपराध बोध से डूबा जा रहा था। न भाग सकते थे न शिकारी को ही भगा सकते थे। क्या पाप के भागी बन गये हम आज। सोचा जोर से चीखें और झुंड भाग जाये। मगर तभी
" जे आया शातिर शिकारी"
देवर जी फुसफुसाए। हम अपने आप से बाहर आये देखा, एक पल मे सब आँखें छितरा गईं। चन्दर ने फिर उस ओर बीम टॉर्च करी। शिकारी नन्हे बच्चे की ओर झपट रहा था, तभी दूसरी ओर से एक चीतल शिकारी पर कूद गया।पतिदेव धीरे से हमारे दोनो कन्धों पर हाथ रखे और बोले।
"शायद मां है उसकी ।"
"ओह माँ !! "
दिल दर्द से भर आया। शिकारी ने अपना शिकार तुरंत बदल लिया। उसने एक दांव मे ही चीतल को झपट्टा मार कर जमीन पर गिरा दिया था और अपने दांत उसकी गर्दन पर गड़ा दिये थे। उफ्फ़ !! क्या चीखी वो और बस चीखती-तड़पती रही मगर शिकारी ने उसकी गर्दन नहीं छोडी। हमारा दिल निचुड़ गया चीख सुन कर। उसकी चित्कार पूरे जंगल मे गूंज रही थी। एकाएक ये मोहक जंगल बहुत ही क्रूर लगने लगा।
कुछ ही पल मे उसकी आवाज घुट गई,वो शांत हो गई। पतिदेव बोले "ये बाघ नही बाघिन है ,शिकार और शिकारी दोनो ही माएं हैं"। चीतल का बच्चा और झुण्ड ,जो कुछ दूरी पर जड़ खड़े उस मादा चीतल और शिकारी को देख रहे थे वे सामने की ओर से 3-4 नन्हे बाघों को भागते आता देख तितर-बितर हो गये। बाघिन ने अपने बच्चों को चाटा और एक कोने पर जा कर बैठ गई। उसके बच्चे चारों तरफ से जुटे गये मृत देह को नोचने।
रास्ते भर हमसे कुछ नही बोला गया। देवर जी लोग छेड़ करते रहे
"और ?! अब से आयेंगी भाभी जी सफ़ारी पर ?"
"डर गइं न !?"
हम अपने पतिदेव की बांह पकड़े खामोश थे।
मन मे चल रहा था।
" आह ! जंगल तुमने हमे ये क्या दिखाया!!"
