Aprajita 'Ajitesh' Jaggi

Romance Inspirational

5.0  

Aprajita 'Ajitesh' Jaggi

Romance Inspirational

जली बाँह

जली बाँह

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रूपाली- जैसा नाम ठीक वैसी ही थी वो ! सुंदर सलोना चेहरा, नैने नक्श तो जैसे नाप तोल के बनाये हो भगवान ने, बड़ी बड़ी आंखें देख तो कोई भी उनमें डूबने की सोच बैठता, होठ ऐसे की गुलाब की पंखुड़ियां भी ईर्ष्या कर बैठे, बाल इतने घने की सच में इक काला बादल याद दिला जाएँ और इन सबसे बढ़ कर उसकी हँसी जो एक बार सुन ले तो उस खनक को जिंदगी भर न भूले !

सूरत के साथ सीरत भी भगवान ने दिल खोल कर ही दी थी। कॉलेज हमेशा टॉप करती थी। गाती इतना मधुर की सब मंत्रमुग्ध हो कर सुनते ही रहें। पेंटिंग करने का बड़ा शौक था उसे और उसकी पेंटिंग्स इतनी जीवंत होती थी की हाथों हाथ बिक जाती थी।

बस एक ही कमी दिखती थी लोगों को। नहीं नहीं उस कमी के लिए वो जिम्मेदार नहीं थी। वो तो बचपन में रूपाली की माँ का हाथ कढ़ाई उठाते हुए फिसल गया था और गरमा गर्म तेल से भरी कढ़ाई उलट गयी थी रूपाली की दाहिनी बाँह पर। पूरी की पूरी बाँह और हाथ ना सिर्फ काले दाग -धब्बों से भर गयी थी बल्कि त्वचा इतनी खिंच गयी थी की उस हाथ को हिलाने में भी दिक्कत होती थी।

रुपाली भी उस हाथ को हमेशा दुपट्टे से छुपा कर ही रखने की कोशिश करती थी पर आस पास के लोग भांप ही जाते थे कि उसका दाहिना हाथ....

बस खास दोस्तों और सहेलियों के सामने वो हाथ छुपाने की कोशिश नहीं करती थी। वो भी कभी उसके हाथ के बारे में कोई चर्चा नहीं करते थे। बाकि वो बस तब अपना हाथ दिखती थी जब कोई मजनू टाइप उसके पीछे हाथ धो कर पड़ता था। ज्यादातर तो हाथ देख कर ही गायब हो जाते थे। हाँ कुछ कहते थे की उन्हें उसके हाथ के जले होने से कोई फर्क नहीं पड़ता पर बार बार उनकी नजर उसी तरफ जा रही होती थी।

खैर, यूँ भी रूपाली को किसी और लड़के में कोई दिलचस्पी नहीं थी। उसे बस एक लड़का भाता था। उसका बचपन का दोस्त, सहपाठी और हमेशा का प्रतिद्वंदी- सुशील ! हमेशा का प्रतिद्वंदी क्योंकि दोनों ही प्रथम आने की कोशिश करते थे पढ़ाई से लेकर गायन तक में।

रूपाली अक्सर सोचती थी की कभी तो सुशील उसे प्रोपोज़ कर ही देगा पर नहीं। कितने ही रोज डे और वैलेंटाइन डे गुजर चुके थे पर कभी भी सुशील ने उसे ना तो गुलाब ला कर दिया और ना ही कोई दूसरा तोहफा। साथ के बाकी सभी दोस्त कभी उन दोनों को छेड़ने की भी कोशिश करते थे तो वो बस सब को घूर कर चुप करा देता था।

शायद सुशील दोस्त से ज्यादा मुझे कुछ नहीं मानता। शायद मेरी जली हुयी बाँह के कारण ही मुझे उस नजर से नहीं देखता। मेरी इस कमी से मेरी बाक़ी अच्छाइयां हार ही जाती हैं। ठीक ही है एक हाथ से अपाहिज लड़की को भला कैसे सुशील पसंद कर सकता है। अक्सर ही रूपाली सोचती थी पर दिल में फिर भी एक आस थी की शायद कभी...

खैर, ऐसे ही कुछ और वर्ष बीत गए। रूपाली और सुशील दोनों की ही अच्छी नौकरी लग गयी। रोज दोनों कम से कम एक घंटा फ़ोन पर बातें करते, घर की, ऑफिस की दोस्तों की। हर शनिवार बिना नागा कॉफ़ी हाउस में भी मिलते पर अभी तक सिर्फ दोस्ती पर ही अटके हुए थे।

इधर मामला दोस्ती से आगे बढ़ ही नहीं रहा था और उधर घर वाले रूपाली पर जल्द से शादी करने का दबाव बना रहे थे। आखिर थक हार के रूपाली ने मान ली अपने परिवार की बात और तय हो गया की अगले शनिवार को लड़के वालों को घर बुला लिया जाएगा रूपाली को देखने के लिए।

रोज की तरह शुक्रवार को सुशील का फ़ोन आया तो रूपाली ने बताया की इस बार शनिवार को वह कॉफी होम नहीं आ पायेगी। 

"क्यों ऐसा क्या काम आ पड़ा ?" सुशील ने पूछा।

"वो लड़के वाले मुझे देखने आने वाले हैं न।" रूपाली बोली। 

थोड़ी देर तक दोनों के बीच में चुप्पी छा गयी।

फिर सुशील बोला "तुम मुझे नापसंद करती हो क्या ? जो किसी दूसरे लड़के को देखोगी। मुझे तो लगा था की हम दोनों शादी करेंगे !"

अब रूपाली खुश भी थी और गुस्से में भी। शायद गुस्सा ज्यादा आ रहा था। बोली "तुमने कभी कहा भी ! मुझे लगा की मेरी कमी मेरी जली बांह के कारण..."

"कैसी कमी की बात कर रही हो ? पूरी की पूरी पसंद हो मुझे, हमेशा से। कोई कमी हो ही नही सकती तुम में। बेहद प्यार करता हूँ तुम्हें, तुम्हारे बिना जीने की तो सोच भी नहीं सकता।" सुशील बोला। 

फिर तो रूपाली की आँखों से टप टप आँसू ही टपकते रहे, खुशी के ! बेहद खुशी के !

और अगले दिन हमेशा की तरह फिर वो मिले, बस इस बार दोनों के परिवार वाले भी साथ थे। सब खुश थे इस रिश्ते से। बस फिर चट मंगनी और पट ब्याह हो गया। 

दो दोस्त हमेशा के लिए जीवनसाथी बन गए। 


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