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Arun Gode

Tragedy

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Arun Gode

Tragedy

जख्मी शेर

जख्मी शेर

7 mins
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      अनिल एक शिक्षक का सुपुत्र था। पिता शिक्षक होने के कारण घर में शुरु से पढ़ाई का वातावरण बना था। अनिल के अलावा उसे दो और छोटे भाई थे। अनिल शुरु से मेहनती छात्र था। वो अक्सर नियमित पढ़ाई किया करता था। उसके साथ में उसी स्कूल के अन्य शिक्षक का सुपुत्र पढ़ा करता था। दोनों के पिता एक ही स्कूल में शिक्षक थे। वे अनिल के पिता से सीनियर थे। दोनों में अकसर सांप -नेवले की पढ़ाई जंग चलती रहती थी। दोनों एक-दूसरे को काफी अच्छी टक्कर दिया करते थे। दोनों में उन्नीस-बीस का अंतर रहता था। दोनों की प्रथम नंबर के लिए हमेशा खींचतान चलती रहती थी। अनिल बहुत पढ़ने वाला छात्र था। अमर भी अच्छा पड़ता था। अन्य विद्यार्थी भी पढ़ने में तेज थे। लेकिन उनका ध्यान पढ़ाई के साथ खेल-कूद में ज्यादा रहता था। वे पढ़ाई के साथ अन्य बातों का भी आनंद लेना चाहते थे। अमर भी थोड़ा बहुत इस वर्ग में शामिल था। सुनिल की स्कूल में अच्छी साक बनी थी। उसे अपने आप पर घमंड भी था। पढ़ाई के साथ उसमें गाने और खेल-कूद का भी हुनर था। लेकिन उसकी प्राथमिकता पढ़ाई में ज्यादा थी। इसलिए वो शिक्षकों के आँख का तारा बन चुका था।  

      जब दसवीं बोर्ड के नतीजे आयें थे, तब अमर ने स्कूल में टॉप किया था। जब कि अनिल और अन्य मित्रों और स्कूल के शिक्षकों को अनिल मेरिट आनेकी अपेक्षा थी। अंत भला तो सब भला। अमर बहुत खुश था। लेकिन अनिल का सपना चकना चुर हुआ था। शायद अनिल को कुछ ज्यादा ही आत्मविश्वास अपने पर था। उसका आत्मविश्वास उसे ले डूबा था। अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत। शायद उसके परिश्रम कम पड़े थे। भारत सरकार के नई शिक्षा नीतिनुसार, 10वीं और 12वीं बोर्ड की परिक्षायें बोर्ड लेगा। 12वीं बोर्ड के बाद ही छात्र मेडिकल, इंजीनियरिंग, या अन्य स्नातक को प्रवेश ले सकते थे।

    अमर के पिता स्कूल में वरिष्ठ शिक्षक होने के कारण, तत्कालीन स्कूल के हेडमस्टर सेवानिवृत्त होने से उन्हे प्रबंधन ने स्कूल का नया मुखिया बनाया था। उनके और परिवार के सितारे बुलंद थे। उन्हें सब जानकारी होने के कारण, अपने बच्चे के उज्ज्वल भविष्य के लिए उसे जिल्हास्तर के जुनिअर कॉलेज में भेजा। अन्य छात्र उसी स्कूल में 12वीं पढ़ने लगे। अमर ने वहाँ जाकर बड़ी कड़ी मेहनत कि थी। उसने अपने पिता का मेरिट आने का सपना पूरा किया था। वह सब मित्रों के आँख का तारा बना था। उसने अपनी योग्यता सिद्ध कि थी। सुनिल ने भी अच्छा किया लेकिन उसका, ना इंजीनियरिंग, ना मेडिकल में नंबर लगा थ। लेकिन अमर का मेडिकल में अच्छे कॉलेज में दाखिला हुआ था।  अनिल को अपना सा मुँह लेकर रह जाना पड़ा था। इस बात से अनिल तिलमिला उठा था। अंत में उसने विज्ञान स्नातक में अच्छे गुण प्राप्त किये थे। उसी दौरान उसने बैंक का लिपिक पद के लिए परीक्षा पास कर ली थी। उसे ऑफर लेटर मिल चुका था। बचपन से ही वह काफी पढ़ाई करते आ रहा था। इस लिए वह शायद पढ़ाई से उब गया था। इसलिए, उसने बी। टेक में अडमिशन मिलने की संभावना होते हुयें भी नहीं गया था। उसने अपने पांव पर आप कुल्हाड़ी मार ली थी। उसने बैंक में नौकरी करने लगा था। आधी छोड़ पूरी को धावे, आधी रहे ना पूरी पावे । शायद वह अधिक लालच नहीं करना चाहता था, उसे जल्दी ही अपने पाँव पर खड़ा होना था। अन्य साथियों ने पढ़ाई करना देर से शुरु किया था। इसलिए उन में अभी काफी जोश था। वे आगे भी पढ़े थे। अनिल कि सोच थी कि अपना-अपना कमाना, अपना- अपना खना। उन्होंने अपना अनिल के अपेक्षा अच्छा मुकाम हासिल किया था। सुनिल शुरु से ही लालची था। उसने एक शिक्षिका से अपना विवाह कर लिया था। उसका पेशा स्थाई था। दोनों कमा रहे थे। अच्छा खासी दौलत जमा कर ली थी। इस कारण वह अंत तक बैंक में लिपिक के पद पर बना रहा। ताकि उसे स्थानांतर पर कही जाना ना पड़े । उसने इसलिये कभी बढ़ती नहीं ली थी। वह एक साधारण बैंक कर्मी करके सेवानिवृत्त हुआ था।

  सभी वर्ग मित्र हमउम्र के होने के कारण वे या तो सेवानिवृत्त हो चुके थे, या होने के कगार पर खड़े थे। अभी उनके पास काफी समय था। वे सब अभी फिर से भूले -बिसरे गीत सुनना चाहते। इसलिए कुछ उत्साही मित्र अपने स्कूल में 61वीं का सामूहिक कार्यक्रम लेना चाहते थे। वे सभी एक –दूसरे के साथ संपर्क करके एक बडा आयोजन करने की सोच रहे थे। इस आयोजन में वे अपने पत्नियों और पतियों को भी शामिल करना चाहते थे। सभी स्थानीय और अन्य आस-पास के शहरों के मित्रों-मैत्रीयोंनी में इस के लिए आम सहमती बनी थी। यह कार्यक्रम वे कम से कम दो दिन का रखना चाहते थे। इस में अपने गुरुजनों का, वे सत्कार करना चाहते थे। जो कुछ कोई कलाकार मित्रों या उनके परिवार के सदस्य थे, वे सांस्कृतिक कार्यक्रमों में हिस्सा लेने के लिए प्रावधान रखा था। सभी मित्र एक-दूसरे को मिल के अपनी भावनायें व्यक्त करना चाहते थे। लेकिन अनिल इस कार्यक्रम की सफलता पर हमेशा प्रश्नचिन्ह खड़ा करता था। हर कोई उसे समझाने का अपने –अपने तरीके से प्रयास कर रहा था। आग बिना धुआँ नहीं, सभी को धीरे-धीरे उसके विरोध का कारण समझ में आ रहा था।

     उसे यह भ्रम था कि अन्य सभी साथी कार्यक्रम में आने पर उसके असफलता पर हंसेंगे। यह दर्द, चिंता उसे खाई जा रही थी। इस लिए वह वर्गमित्र के पुनर्मिलन का कार्यक्रम का समर्थन खुले दिल से नहीं कर रहा था। इस विफल बनाने के प्रयास में लगा था। उसके महफिल के कुछ स्थानीय मित्रों में उसने इधर-उधर लगाना शुरु किया था। वह बात का बतंगड़ बना ने लगा था। ग्रुप में मित्रों के साथ इधर –उधर की हाँकना शुरु किया था। वह चाहता था कि इनका यह अभियान किसी तरसे विफल हो जाए। एक गंदी मछली सारे तालाब को गंदा कर देती है। । ऐसा मछ्ली के माफिक काम कर रहा था। वर्गा मित्रों के पुनर्मिलन कार्यक्रम का सभी दिल से समर्थन कर रहे थे। सभी मित्र उन पुराने यादों को याद करते थे। लेकिन याद करके उनको साझा करना संभव नहीं था। क्योंकि उस घड़ी के अन्य पात्र उनके साथ नहीं थे। जब कोई अपने साथ होता है तब हमें उसका ज्यादा महत्व नहीं लगता। लेकिन उस चीज को जब हम खोते है। तब हमें उसका महत्व समझता है। स्कूल जीवन में ,उन सभी ने एक दूसरे के लिए कुछ न कुछ जरूर किया होगा जो उसके सफलता में उसका निश्चित ही योगदान होगा। शायद उन में कई बार लड़ाइयाँ भी हुई होगी। लेकिन उस लड़ाई से भी वो कुछ-न-कुछ सीखे या कुछ पायें होंगे। इसलिए वे सब एक- दूसरे से बिना किसी अहंकार, मनमुटाव और सादगी के साथ मिलना चाहते थे। सुबहा का भुला अगर शाम को लौट आये, तो उसे भुला नहीं कहते । लेकिन अनिल एक जख्मी शेर था। वो जीवन में बहुत कुछ कर सकता था। उसके एक गलत स्वार्थी कदम ने उसे अन्य के तुलना में निचले पायदान पे खड़ा कर दिया था। उसे ये दर्द सता रहा था कि अन्य उसके मित्र यहाँ आने पर उनकी हैसियत मुझसे ज्यादा नहीं थी। लेकिन आज वे सभी, मेरे से ऊंचे बुलंदी पर पहुँच चुके है। इस बात को वह पचा नहीं पा रहा था। इस कार्यक्रम में वो सभी वर्गमित्र के अलावा, वे सभी शिक्षक भी उपस्थित रहने वाले थे। उनके लिए वो कभी चमकता आँखों का सितारा था। इनके सामने उसे अपमानित और लज्जित होना पड़ेगा। इसलिए वह अंदर ही अंदर जल के खाक हो रहा था। इस दर्द से छुटकारा पाने के लिए षड्यंत्र रचकर विफल करने का प्रयास कर रहा था। लेकिन अंत तक प्रयास करने पर भी उसे सफलता हाथ नहीं लगी थी। आग खाएगा तो अंगार उगलेगा। अन्य मित्रों ने इस बात को अच्छे से समझा लिया था। वे उससे दूरी बनाने लगे थे। और वे इस सफल बनाने में अधिक सक्रिय हो गये थे।

    ये बात सच है कि उगते सूरज को सभी नमन करते है। जो जिता वही सिकंदर होता है। समय के साथ ,कुछ सिकंदर बंदर बन जाते है। लेकिन कुछ ऐसे भी बंदर होते है, जो आगे चल कर सिकंदर बनते है। शिवाजी के स्वराज्य में उस योद्धा का कोई महत्व नहीं रहता था। जो समय के साथ कोई नया कीर्तिमान करने में सक्षम नहीं होता था। उसके पुराने योगदान को सम्मान तो दिया जाता था। लेकिन पुराने योगदान के बदले उसे कोई स्थान, रुतबा या जिम्मेदारी नहीं दी जाती थी। शिवाजी खुद अपने अंतिम सांस तक पराक्रम, नये कीर्तिमान स्थापित करते रहे थे। हमें इस बात का अफसोस है, रहेगा कि प्रकृति ने उन्हें लंबी उम्र इस देश की सेवा करने के लिए नहीं दी थी। इसलिए हम सभी ने, हमारे अंतिम सांस तक कुछ-न-कुछ छोटे- बड़े कीर्तिमान बनाते रहना चाहिये। अन्यथा अनिल जैसे दुविधा में पड़ सकते है।  



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