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Ervivek kumar Maurya

Abstract Tragedy Classics

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Ervivek kumar Maurya

Abstract Tragedy Classics

जिस्म की कीमत

जिस्म की कीमत

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जिस्म क्यों है तुझे बेचना पड़ा 

लग रहा है तू दुनिया से डरा 

सबने कीमत तेरी यहाँ है लगाई 

तू जी के भी जिन्दा है मरा 


नाम बदनाम करते हैं तेरा 

तार-तार करते हैं चरित्र तेरा

जिनकी खुद की कोई इज्जत होती नही 

वो बतलाते हैं ईमान तेरा 


लग रहा है ईमान सबने यहाँ बेच के है धरा 

तू जी के भी जिन्दा है मरा जिनकी नजरें बुरी हैं

वो कुछ खुद को कहते नहीं 

तेरे चलन को बदचलन, कहने से थकते नहीं 


तूने प्रेम करने वाले को समझा है बड़ा 

पर प्रेम भी झूठे आशिकों से भरा है पड़ा 

तू जी के भी जिन्दा है मरा 

वो नही चाहता है उसे कोई बदनाम करे 

वो नही चाहता अपने जिस्म की नुमाइश करे 


जिंदगी जीने का सलीका है उसे भी पता 

भूख के खातिर है जिस्म उसे बेचना पड़ा

तू जी के भी जिंदा है मरा।


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