जिंदगी का इम्तिहान
जिंदगी का इम्तिहान
खिड़की के पास खड़ी रमा को यूँ लग रहा था मानो सर पर आसमान नहीं रहा, पाँव के नीचे जमीन नहीं है फिर भी पूरी ताकत के साथ उसे खड़े रहना है यही वक्त की जरूरत है। अचानक उसके सामने इतनी बड़ी मुसीबत आ खड़ी हुई है लेकिन वह कमजोर नहीं पड़ सकती। बल्कि पूरी ताकत के साथ किस्मत के इस खेल को जीतना है। आज कोई भी मुसीबत माँ की ममता से बड़ी नहीं हो सकती। कल रात तक तो सब ठीक था। बेटे विनय को आज बारहवीं का पहला पेपर देने जाना था। रमा और उसके पति ने उसे पढ़ाई में सहयोग देने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी, लेकिन कल रात को विनय के सोने के बाद पति ने सीने में दर्द की शिकायत की। विनय को उठाना उचित न समझा और खुद ही कैब मंगवाकर दोनों पति पत्नी अस्पताल के लिए निकल पड़े। बेटी जिया को भी विनय को कुछ न बताने की हिदायत दी। अस्पताल के एमरजैंसी वार्ड के बाहर कभी एक तो कभी दूसरे डाक्टर को आते-जाते देखती रही। पूछने पर बताया गया कि पति को मेजर दिल का दौरा पड़ा है। समझ में नहीं आ रहा था करे तो क्या करें या फिर इंतजार के सिवा और कोई चारा नहीं था। एक एक पल काटना मुश्किल हो रहा था। आखिर वो काली रात किसी तरह खत्म तो हुई लेकिन रमा के जीवन में कालिख छोड़ गई। सुबह पाँच बजे डाक्टरों ने बताया कि वे उसके पति को नहीं बचा पाए। एक पल के लिए लगा मानो सब कुछ लुट चुका है फिर दूसरे ही पल खुद को याद दिलाया नहीं नहीं मैं सिर्फ एक पत्नी ही नहीं माँ भी हूं। कल तक मुसीबत की हर घड़ी में पति चट्टान की तरह साथ रहे लेकिन आज उसे अकेले ही लड़ना है। शायद आज बेटे से पहले इम्तिहान में खुद को साबित करना है बस यही सोच दिल पर पत्थर रख आंसू पोंछे और घर वापस आकर अपने कामों में ऐसे जुटी मानो कुछ हुआ ही नहीं। बच्चों ने पापा की तबीयत के बारे में पूछा तो सब ठीक है कह दिया। उसे पता था अगर सच बता दिया तो विनय कभी इम्तिहान देने नहीं जाएगा और फिर साल बरबाद हो जाता। आधी दुनिया तो लुट चुकी थी अब बाकी को संभालना था उसे। परन्तु अपनी लाख कोशिशों के बावजूद दिल का दर्द बेटी से ज्यादा देर न छुपा पाई। जिया समझ चुकी थी कि कुछ तो है जो माँ उससे छुपा रही है। पूछा तो माँ ने टाल दिया लेकिन विनय के जाते ही रमा के सब्र का बांध टूट गया। माँ बेटी एक दूसरे के गले लगकर खूब रोई। होश संभाली तो रिश्तेदारों, पड़ोसियों को सूचना दी गई। डैड बाडी घर लाई गई। पूरे घर का माहौल बदल चुका था। न जाने कितने सगे सम्बन्धी पहुँच गये दुःख की घड़ी में साथ देने। मिलकर सब रमा को सांत्वना देने की कोशिश कर रहे थे लेकिन रमा को भीतर से एक ही चिंता सता रही थी बेटा विनय जब इम्तिहान देकर घर आएगा तो यकायक यह सब देखकर उसके बाल मन पर क्या बीतेगी पर इस सच्चाई को और छिपाया भी तो नहीं जा सकता था। खैर परिवार के कुछ सदस्यों ने जिम्मेदारी बखूबी निभाई। सबके सहयोग से विनय ने भी हालात का डटकर सामना किया। सारी रस्में भी निभाई और बाकी के इम्तिहान भी दिए। रमा की समझदारी ने विनय का साल बचा लिया। अच्छे अंक लेकर पास भी हो गया लेकिन जिंदगी के इस इम्तिहान में आज एक माँ अव्वल आ चुकी थी।