जिम्मेदारी

जिम्मेदारी

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खेम चन्द्र आज बहुत खुश थे| घर में घुसते ही मिठाइयों के डब्बे आँगन में रखी चौकी पर रख कर जोर से अपनी पत्नी को आवाज़ दी “शुभद्रा बाहर आओ, बहु को भी बुलाओ, अमरेश कहाँ है?”

शुभद्रा अपनी गोद में अपने आठ माह के पोते के साथ बहार आई और बोली “अमरेश तो सुबह आपके बाद ही निकल लिया था| आप तो कोरट गए थे तो बाकी काम वो ही देखेगा| क्या हुआ? इतने उछलते आ रहे हो?”

तब तक बहु श्यामा भी बाहर आ गयी, थी वो रसोई में कुछ काम कर रही थी|

खेम चन्द्र ने जोश में पोते को अपनी गोदी में लेते हुए कहा “अरे बहुत ही भाग्यशाली है हमारा छुटकू, आते ही 18 साल पुराना मुकदमा जितवा दिया इसने”

शुभद्रा खुश होते हुए बोली “क्या? फैसला आ गया! क्या फैसला सुनाया जज साहब ने?”

खेम चन्द्र : अरे जज साहब ने ऐसा फैसला सुनाया है कि अक्ल ठिकाने लग जाएगी इस दलबीर की| दो महीने के भीतर मकान खाली करना होगा और किराया और हर्जाना भी देना पड़ेगा २० लाख|

तभी श्यामा बोल पड़ी “पिताजी अभी तो वो ऊपर भी अपील कर सकते हैं”

खेम चन्द्र : पेशगार बता रहा था| कोर्ट से बाहर निकल कर जब उसके वकील ने कहा कि हम ऊपर अपील करेंगे तो साफ़ मना कर दिया दलबीर ने| आधी जमीन तो बिक ही चुकी है उसकी अबतक और फैसला ऊपर की अदालत का भी ये ही आना है|

शुभद्रा : तो अब मकान भी खाली करना पड़ेगा|

खेम चन्द्र : हाँ दो महीने के भीतर और 20 लाख मुआवजा भी देना होगा|

शुभद्रा : कहाँ से लायेंगे दलबीर

भाईसाहब 20 लाख?

खेम चन्द्र : इससे हमें क्या? मुझे तो ये मकान खाली करवाना था उससे| इज्जत पर बात आ गयी थी|

खेमचंद्र अपने पोते के साथ खेलने में व्यस्त हो गया|

शुभद्रा और श्यामा कुछ निराश लग रही थी अब

श्यामा निराशा के साथ बोली “अभी तो विवेक भैया का भी कहीं कुछ काम नहीं लगा है और सलोनी दीदी का रिश्ता पक्का कर रखा है सुना जल्दी ही शादी करने का विचार था|

खेमचंद्र के भाव भी अब बदल चुके थे वो शांत होते हुए बोल पड़े “अब क्या कर सकते हैं?”

शुभद्रा ने दीर्घ उच्छ्वास के बाद कहा “एक बात थी| आप दोनों के बिच कैसी भी मुक़दमे बाज़ी रही लेकिन विवेक या सलोनी ने हमेशा मुझे ताई का सम्मान दिया| दलबीर भैया और सुजाता (दलबीर की पत्नी) जहाँ देखते थे पैर छुते थे| पूरा गाँव कहता था कि भले ही इन दोनों घरो में मुकदमेंबाज़ी चल रही हो, लेकिन परिवारो ने अपने कर्त्तव्य और संस्कार नहीं छोड़े| आप दोनों की बोलचाल भले ना थी लेकिन विवेक अमरेश बड़ा भाई ही मानता था|”

खेम चन्द्र की दृष्टि जमीन की तरफ झुकी हुई थी|

श्यामा ने छुटकू को खेम चन्द्र की गोद से लेते हुए कहा “उस दिन छुटकू रोये रोये जा रहा था तो चाची जी और सलोनी एकदम से आ गयी थी और फिर उन्होंने ही चुप करवाया इसे|”

शुभद्रा : ये भी तो उन दोनों का ज्यादा ही मोहता करता है|

शुभद्रा ने रसोई की तरफ जाते हुए कहा “सुना परसों सलोनी के लिए लड़के को अपनाने जाने वाले थे| अब पता नहीं कैसे करेंगे?”

अपने कमरे के भीतर जाते हुए श्यामा बोली “हमारे पुरे कुनबे में विवेक भैया, सलोनी दीदी और सुजाता चाची जी से मिलनसार नहीं है कोई| सुजाता चाचीजी ने संस्कार ही ऐसे दिए हैं”

खेम चन्द्र जो थोड़ी देर पहले जो में था अब एकदम से उदास हो गया और उठकर चुपचाप अपने कमरे में चला गया|

.........

दलबीर और खेम चन्द्र दोनों सगे भाई थे| खेमचन्द्र का व्यापार अच्छा था जबकि दलबीर खेती बाड़ी पर ही निर्भर रहा| इन दोनों भाइयों के मध्य पुस्तैनी मकान को लेकर मुकदमा था| बंटवारे में वो मकान खेम चन्द्र के हिस्से में आया था लेकिन जब तक दलबीर का दूसरा मकान नहीं बन जाता उसे रहने देने की बात तय हुई थी| पिता के मरते ही दोनों में तल्खियाँ बढती चली गयी और अब मामला मुकदमे बाज़ी तक आ गया| दोनों के मुकदमें का असर इनके परिवारों के संबंधो पर आश्चर्यजनक रूप से कभी नहीं पड़ा| दोनो के मकान एक साथ ही बने थे तो वैसे भी आपस में व्यवहार बना रहता था|मुक़दमेबाज़ी के बाद भी घर के अन्य लोगो में मधुरता का मुख्य कारण दलबीर की पत्नी सुजाता ही थी| उसने अपने बच्चो को कभी ये नहीं सिखाया की तुम्हारे ताऊ तुम्हारे शत्रु हैं|

........

फैसला आने के दुसरे दिन तक भी दलबीर के घर में मौत का मातम पसरा था| उनके घर में पिछली शाम से चूल्हा नहीं जला था| इस मुक़दमे ने आर्थिक रूप से पहले ही दलबीर को तोड़ दिया था| अगले दिन उसे सलोनी के लिए लड़के को अपनाने जाना था पर अब क्या करे? नया घर देखे, जो हर्जाना भरना है उसका इंतजाम करे या इन पारिवारिक जिम्मेदारियों को निभाये?

दलबीर आज सुबह से ही अपने कमरे से बाहर नहीं निकला था| दिन ढलने लगा था| तभी बाहर खेम चन्द्र के मठारने (खासने) की आवाज़ सुनाई दी| आवाज़ सुनते ही चोक में बैठी सुजाता ने घूँघट कर लिया और भीतर जाकर सलोनी को बुलाया|

तब तक खेम चन्द्र आँगन में आ चूका था| सलोनी के साथ विवेक भी बाहर आ गया और खेम चन्द्र के पैर छुए| सुजाता भी खेम चन्द्र के पैर छुने को बढ़ी लेकिन खेम चन्द्र ने दूर से ही आशीर्वाद देते हुए कहा “नहीं बहु तू घर की लक्ष्मी है तू मेरे पैर मत छु” खेम चन्द्र किसी भी लड़की या महिला से पैर नहीं छुवाते थे|

खेम चन्द्र ने कुर्सी पर बैठते हुए कहा “दलबीर को बुलाओ”

लेकिन दलबीर तब तक बाहर आ चूका था| दलबीर खेम चन्द्र के पैर छुने के बाद बोला “ जी भैया जी”

वर्षो बाद दोनों भाइयो में बात हो रही थी| हालाँकि ऐसा कभी नहीं हुआ कि जब दलबीर ने सामने आने पर खेम चन्द्र के पैर ना छुए हों लेकिन बात कभी नहीं हुई दोनों की|

खेम चन्द्र ने दलबीर को सामने बैठने का इशारा किया और दलबीर सामने कुर्सी खिसका कर बैठ गया|

तब तक सलोनी पानी ले आई थी| खेम चन्द्र ने पानी का गिलास लेते हुए कहा “ वो मै कहने आया था की सुबह तुम और विवेक 9 बजे तक तैयार हो जाना” फिर पानी के घूंट भरा और फिर बोला

“चलेंगे”

दलबीर आश्चर्य में बोला “कहाँ भाईसाहब?”

खेम चन्द्र ने गिलास सलोनी को पकडाते हुए कहा “वो लड़का अपनाने नहीं जाना है सलोनी के लिए?”

दलबीर सुनकर और ज्यादा आश्चर्य में पड गया और बोला “जाना तो था लेकिन भैया मैंने तो उनसे बात भी नहीं की और क्या करता बात करके? अभी तो मकान का इंतजाम करना है

और....” इतना कहकर दलबीर ने अपनी दृष्टी झुका ली और चुप हो गया|

खेम चन्द्र : मेरी बात हो गयी थी उनसे| कल चलना है, तू, विवेक, मैं और अमरेश चलेंगे| उधर मैंने जीजाजी को भी बोल दिया है वो भी आ जायेंगे सीधे ही|

फिर खेमचंद्र सुजाता की तरफ देखते हुए बोले "आज वैसे तो सारी जरुरी खरीदारी कर लायी है शुभद्रा लेकिन फिर भी बहु देख लेगी जाकर.... कुछ कमी लगेगी तो कल ले लेंगे| भले थोडा देर हो जाए वहां पहुचने में|"

दलबीर अचकचा गया था आश्चर्य मिश्रित शब्दों में बोला “लेकिन लड़के वालो ने मुझे तो कुछ बताया ही नहीं”

खेम चन्द्र ने सख्त लहजे में कहा “तुझसे क्या कहेंगे वो, घर का बड़ा मै हूँ और मेरी बात हो गयी है उनसे”

फिर खेम चन्द्र ने कहा “ तू और हम अब कितने दिन और रहेंगे? छाती पर रख कर नहीं ले जायेंगे ये सब हम| ये मकान विवेक का है और वो हर्जाना-वर्जाना जो भी है वो सब अदालती चोचले हैं| मुझे ना है जरुरत...”

इतना कहते कहते खेम चन्द्र की आँखे गीली और आवाज़ भारी हो गयी थी वो कुर्सी से खड़े हो गए थे| खेम चन्द्र थोडा रुककर बोले “मुझे मेरा परिवार खुश चाहिए| तेरी जिम्मेदारी मुझ पर छोडकर गए थे पिताजी”

दलबीर भी अपनी कुर्सी से खड़ा हो गया था| अब दोनों के भीतर भावनाओं का ज्वार फुट पड़ा था| दलबीर से रुका नहीं गया और वो आग बढ़कर खेम चन्द्र से लिपट गया| दलबीर हिडकियां देकर रोते हुए

बोला “भैया जी इतने सालो में कभी तो बड़ा भाई बनकर समझाया होता मुझे, इतने बरस अनाथ बनाये रखा”

दोनों भाइयो की आँखों से प्रवाहित अश्रु धारा से दोनों के मनों का मैल बह गया था और दोनों के कंधें एक दुसरे के आसूंओं से भीग गए थे|


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