Raj Shekhar Dixit

Abstract

4.8  

Raj Shekhar Dixit

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अधेढ़ उम्र का प्यार

अधेढ़ उम्र का प्यार

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आपको जानकर पक्का भारी झटका लगेगा कि मेरे पति मेरे समधी भी हैं। लेकिन मेरी कहानी सुनकर शायद आप भी धर्म संकट में पड़ सकते हैं कि इस असंभव दिखाई देने वाले सम्बन्ध को स्वीकार करना चाहिए या नहीं? वैसे मैं बता दूँ, मुझे आपके स्वीकार या अस्वीकार से कोई फर्क नहीं पडता। खैर, तो कहानी कुछ यूँ है। 

मैं विनीता हूँ। शादी से पहले मेरा नाम विनीता खन्ना था ,शादी के बाद विनीता खोसला हो गया था अब मैं विनीता वर्मा हूँ। जिंदगी में ऐसा अद्भुत मोड़ आया कि मेरी शादी इस अधेड़ उम्र में उस व्यक्ति से हो गई जिसे मैं कॉलेज के ज़माने में पसंद करती थी, पर तब पा न सकी।  हम दोनों को मिलाने में नियति ने बड़ा लम्बा समय लिया। इतना लम्बा कि हमारे बच्चे बड़े हो गए। इतने बड़े कि मेरे बेटे की मेरे भावी पति की बिटिया से शादी हो गई। 

इन सम्बन्धों के ताने -बाने की  शुरुवात कॉलेज में पढाई के दौरान  हुई। राजेश से कॉलेज के दिनों में मेरा थोड़ा बहुत परिचय था। वे तब रोहिलखंड विश्वविध्यालय मुरादाबाद में बी।ए। कर रहे थे। मैं वहीं पर बीएससी कर रही थी। हम दोनों ने एक नाटक में साथ-साथ काम किया था। चूँकि उसके और मेरे पापा दोनों ही उत्तर प्रदेश सरकार में कार्यरत थे, इसलिए एक-दूसरे के परिवार से परिचित थे।

बाद में राजेश ने कॉलेज की ही एक लड़की खुशबु से प्रेम विवाह किया।और दोनों मुंबई चले गए। राजेश एक विज्ञापन कंपनी में नौकरी करने लगे। वहीँ उनकी बेटी पायल पैदा हुयी।

खुशबु  फिल्म तारिका बनने की तमन्ना रखती थी। राजेश चाहते थे कि खुशबू घर रहकर पायल को संभाले, पर खुशबू के ऊपर हेरोइन बनने का भूत सवार था, तो वो एक दिन साउथ के कास्टिंग डायरेक्टर हरिबाबू के चक्कर में पड़कर राजेश और पायल को छोड़कर हैदराबाद भाग गयी। पायल को तब बहुत छोटी थी इसलिए उसे सँभालने के लिए राजेश ने अपनी माँ को मुंबई बुला लिया। खुशबु की बेवफाई के बाद राजेश का शादी जैसी परम्परा से विश्वास उठ गया था इसलिए उसने फिर दोबारा शादीनहीं की।

पायल को तो अपनी माँ के बारे में कुछ भी नहीं पता था। जब वह 18 साल की हुयी तब राजेश ने उसे खुशबू की सच्चाई से अवगत कराया।

खुशबू का फ़िल्मी कैरिएर 5-6 साल चला था और वो गुमनामी की जिंदगी में खो गयी। राजेश को किसी दोस्त के जरिये मालुम पडा था कि खुशबू चेन्नई के पास किसी रोड एक्सीडेंट में मारी गयी थी और उसे लावारिस समझकर उसका अंतिम संस्कार पुलिस ने कर दिया था।

इधर कॉलेज की पढाई के बाद पापा ने मेरी शादी गाज़ियाबाद एक जाने-माने खोसला ज्वेलर्स परिवार के बड़े लड़के विकास उर्फ़ विक्की के कर दी।  विक्की बहुत ही बिगडैल किस्म का लड़का था। रोज रात को शराब पीना और दोस्तों के साथ महफ़िल सजाना उसकी दिनचर्याका हिस्सा थे। मैं अगर कुछ कहूं तो मेरे साथ जानवरों की तरहव्यवहार करता। अपने ससुर-सास, ननद और देवर को भी उसकी हरकतों के  बारे में बताया पर वे सब मुझे ही गलत कहते।  मैंने उनसे कई बार कहा कि मैं नौकरी करना चाहती हूँ तो वे कहते हमारे घर की औरतें पैसों के लिए बाहर नौकरी नहीं करती।

इस बीच हमारा बेटा यश पैदा हुआ। बच्चे के आने के बाद धीरे-धीरे विक्की को भी अपनी जिम्मेदारियों का अहसास होने लगा था। पर तब तक बहुत देर हो चुकी थी। शराब की आदतों की वजह से उनकी किडनियाँ खराब हो गयी और वे कुछ ही दिन में चल बसे। तब यश सिर्फ दो साल का था। मैंने अपने आप को व्यस्त करने के लिए नौकरी करने की ठान ली तो मुझे अपने ससुराल वालो ने काफी जलील किया। लिहाज़ा मेरे पापा मुझे घर लेकर मुरादाबाद ले आये और मैं वहीँ  एक कॉलेज में शिक्षिका की नौकरी करने लगी।

वक़्त निकलता गया। इसी बीच मेरे माता-पिता का भी स्वर्गवास हो गया। भाई- बहन भी अपनी अपनी जिंदगी में मस्त हो गए। अब मुरादाबाद में मैं और यश रहते थे।

कुछ साल बाद यश मणिपाल के इंजीनियरिंग कॉलेज में कंप्यूटर साइंस की पढ़ाई करने चला गया। एक दिन यश ने बताया कि वो अपनी सहपाठिनी जिसका नाम पायल था, को चाहता हैं। वे दोनों कॉलेज की पढाई के बाद कनाडा जाना चाहते थे। यश पर प्यार का भूत सवार था तो मुझे उसके आगे झुकना पडा।  यश  इंजीनियरिंग की पढाई करके मुरादाबाद आ रहा था तब उसने बताया कि पायल और उसके उसके पापा भी आयेंगे। बातों बातों में मालूम पडा कि पायल के पापा पहले मुरादाबाद में रह चुके थे।

उस शाम जब पायल अपने पापा को लेकर हमारे घर आई। उन्होंने अपना परिचय देते हुए कहा कि वे राजेश वर्मा हैं। फिर मेरीऔर देखकर पूछा- "क्या आप विनीता जी है, खन्ना अंकल की बेटी?" फिर राजेश ने पुरानी बातों का सिलसिला छेड़ दिया। राजेश ने अपनी और खुशबू की दुःख भरी दास्ताँ सुनाई। उनकी बातें सुनकर मेरी आँखे नाम पड़ गयी। मैंने भी बेझिझक विक्की के बारे में और अपनी आपबीती बता डाली। रात्री भोजन के बाद जब राजेश बाहर निकले तो उन्होंने रुंधे गले से विनम्रतापूर्वककहा-"विनीताजी,पायल मेरे आँगन की कली हैं। आप उसे अपने बहू के तौर पर स्वीकार करेंगे तो मुझे अत्यंत प्रसनंता होगी।"

इधर यश और पायल दोनों की पढाई पूरी हो गयी। करीब एक साल उन दोनों ने पुणे में टीसीएस कंपनी में काम किया और फिर उन्हें कनाडा जाने का अवसर मिला। व्यक्तिगत तौर पर न तो मैं चाहती थी कि वे बाहर जाए न ही राजेश चाहते थे। पर बच्चों की ख़ुशी के आगे माँ –बाप कुछ नहीं कर पाए। कनाडा जाने से पहले उनकी धूमधाम से नॉएडा के एक फॉर्म हाउस से शादी कर दी। सबकी जिंदगी ठीक-ठाक चल रही थी। बच्चे कनाडा में खुश थे। राजेश अपने कारोबार को जमाने  में व्यस्त थे। अचानक एक दिन मेरे सिर में जोरदार दर्द उठा और शरीर में अजीब सी ऐंठन होने लगी। मुरादाबाद में डॉक्टर को दिखाया पर वे कुछ ज्यादा नहीं कर सके। मालूम पडा कि मेरे ब्रेन की कोई नस फट गयी थी और खून के थक्के दिमाग में फ़ैल रहे थे। राजेश को फ़ोन किया और उन्होंने बगैर समय गवाएं मेरे लिए मुरादाबाद से नॉएडा एम्बुलेंस की व्यवस्था करा दी।

मेरा ऑपरेशन हुआ और वहाँ अस्पताल में  एक महीने तक रही। इस दौरान राजेश कितनी ही रातें अस्पताल की बेंच पर बैठकर काटते गए। मैं तो जैसे जिंदगी से हार चली थी, पर वो मुझे बार बार हिम्मत दिलाते, मेरा हौसला बढ़ाते और कहते  कि विनीताजी तुम्हे अभी और जीना हैं। मैं ठीक तो हो गयी पर बहुत कमज़ोर हो गयी थी। बगैर सहारे के चलना फिरना संभव न था। हॉस्पिटल से छुट्टी मिलने से पहले राजेश ने मुझसेआग्रहपूर्वककहा- "विनीताजी, आप जब तक पूरी तरह स्वस्थ नहीं होती, मेरे साथ रहिये और अब आपको नौकरी करने की आवश्यकता नहीं हैं।" मेरे लाख मना करने के बाद भी वे मुझे अपने घर ले आये। मेरे लिए एक पार्ट -टाइम नर्स भी रख ली। उनका घर छोटा था तो वे ड्राइंग रूम के सोफे पर चुपचाप सो जाते थे। ये सब देखकर मैं बहुत व्यथित हो जाती।  मुझे अन्दर से आत्मग्लानी होती कि मेरी वजह से उन्हें परेशानियां हो रही थी। वे स्वयं मेरे लिए खाना बनाते और अपने हाथो से खिलाते। शायद इतना अपनापन मुझे अपने मायके में नहीं मिला और ससुराल के बारे में क्या कहूं। रिश्ते में ये मेरे समधी हैं पर आज जिस तरह से इन्होने इंसानियत के साथ मुझे सहारा दिया, इतना तो कोई सगा भी नहीं करता।

करीब 3 महीने बाद मैं एकदम स्वस्थ हो गयी। नर्स की भी छुट्टी करा दी। मैंने जिद की कि मैं अब वापस मुरादाबादजाना चाहती हूँ तो उन्होंने कहा- " कुछ दिन तुम मेरे साथ और रुक जाओ अब हम दिल्ली और आसपास की सैर करेंगे।" राजेश ने मेरे ऊपर इतने अहसान किये थे कि मैं उनको ना न कह पायी।  

पर मुझे क्या मालूम था कि हमारे आसपास के समाज के ठेकेदारों की निगाहें हम पर तब से थी जबसे मैं इनके घर पर हॉस्पिटल से रहने आई थी।  राजेश जिस अपार्टमेंट में रहते थे वहाँ के एक निवासी अश्वनीकुमार ने खबर फैला दी थी कि राजेश वर्मा अपने साथ रखैल को रखा हैं। इसी बात को लेकर अपार्टमेंट के प्रेसिडेंट एक बार घर में जानकारी लेने आये और मेरे और राजेश के रिश्ते के बारे में पूछा। राजेश ने सिर्फ इतना कहा कि मैं उनकी करीबी रिश्ते में हूँ, और प्रेसिडेंट को आगाह किया कि वे हमारी प्राइवेसी का ख़याल रखे। प्रेसिडेंट को ये बात बुरी लगी। दूसरे दिन प्रेसिडेंट सुबह सुबह पुलिस को साथ लेकर आ धमके और इल्जाम लगाया कि इस घर में धंधा चलता हैं। राजेश को ये सुनकर बहुत बुरा लगा और वो चिल्ला बैठे।-" ये मेरी पत्नी है।विनीता वर्मा और किसी को यहाँ पूछताछ करने की जरूरत नहीं हैं"। पुलिस ने सख्ती दिखाई तो इन्होंने कहा की वे शादी का प्रूफ भी दे देंगे।

मेरी वजह से राजेश को इतना अपमान सहना  पड़ा। मैंने फैसला कर लिया कि तुरंत वापस मुरादाबाद चली जाऊं।पर राजेश ने समझाया कि हम दोनों उम्र के ऐसे मोड़ पर हैं कि अब हमे एक दूजे के सहारे की जरूरत हैं। हमारे बच्चे हमसे कोसों मील दूर हैं। वे तो हमारे साथ नहीं रह सकते, ऐसे समाज  से क्या डरना जो प्यार की गहराइयों को न समझता हो। बाकी तुम्हे ये निर्णय लेना हैं कि तुम मेरे साथ खुश रह पाओगी या नहीं? फिर हमने समाज की परवाह किये बगैर शादी कर ली। कुछ लोगों ने काफी भला-बुरा कहा। बच्चों को मालूम पड़ा तो वे भी नाराज हुए और पायल और यश ने तो ये तक कह दिया कि वो हमसे अब कोई रिश्ता नहीं रखेंगे।

आज हम सिर्फ जीवन साथी ही नहीं, बल्कि पति-पत्नी का धर्म भी अच्छे से निभा रहे हैं।  बच्चों ने भी 6 महीने बाद हमारे रिश्ते की अहमियत को स्वीकार कर लिया और हमसे बातचीत शुरू कर दी। हमारे एक पोता और एक पोती हैं या कह सकते हैं एक नाती और एक नातिन हैं। हम उन छोटे बच्चों के लिए ग्रैंडफादर और ग्रैंडमदर हैं।



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