Raj Shekhar Dixit

Comedy Drama

4.0  

Raj Shekhar Dixit

Comedy Drama

नशेड़ी अंकल

नशेड़ी अंकल

7 mins
313


कहते हैं, बद अच्छा बदनाम बुरा। इसीलिए हर कोई कोशिश करता हैं कि ऐसा कोई काम न करे जिससे उसकी छवि धूमिल हो। बुराई तो सब में होती हैं किसी में कम किसी में ज्यादा। मगर आप अपनी छवि कुछ ज्यादा ही चमका कर प्रदर्शित कर रहे हैं, तो याद रखिये आपकी कोई भी चूक आपकी बनी बनायी शराफत की इमेज में ऐसा दाग लगा देगी कि आपके लाख समझाने पर भी आपको शक भरी निगाह से देखा जाएगा। समाज को राई का पहाड़ बनाने में देर नहीं लगती। ख़ास करके अगर महिला मंडली तक कोई ऐसी-वैसी बात पहुँच जाए। 

चूँकि मैं शराब व सिगरेट को हाथ भी नहीं लगाता और खानपान के मामले में सात्विक आहार लेता हूँ, मेरी इसी खूबी के कारण मेरी श्रीमती जी मुझे बहुत ज्यादा सम्मान देती हैं। जब कभी भी कॉलोनी की औरतें अपने पतियों की बुराई के चिट्ठे खोलती तो हमारी श्रीमती जी बड़े गर्व से कहती कि उनके शौहर यानी मैं तो सद्गुण की खान हैं। इस बात पर अन्य औरतें चिढ़कर कहती कि अपने मियांजी की शराफतायी भरी आदत पर इतना न इठलाओ, ना जाने बाहर क्या क्या गुल खिलाते होंगे। मेरी आवश्यकता से ज्यादा शराफत और जेंटलमैन वाली इमेज के कारण मेरे घर के आसपास के पेइंग-गेस्ट में रहने वाली लड़कियों का मैं पसंदीदा अंकल हूँ। वे अक्सर हमारे घर आकर टीवी दखती हैं और उनकी पसंदीदा आंटी यानी मेरी श्रीमतीजी उन्हें नए-नए व्यंजन खिलाती हैं, इसलिए आंटी से उनकी खूब जमती हैं।  

एक दिन मैं रविवार को सुबह दूध लेने पास के बाजार पैदल जा रहा था। रास्ते में मेरे पड़ोस के पेइंग गेस्ट वाली लड़की एकता ने मुझे देखा और आदतन नमस्ते किया। चूँकि मैं अपनी धुन में था तो मैंने उसे अनदेखा कर दिया और नमस्ते का जवाब न दे सका। एकता को मेरा ये व्यवहार बड़ा अटपटा लगा। करीब पांच मिनट के बाद एकता ने मुझे मिनी मार्किट के मिल्क बूथ से निकलते देखा। उस समय मैं तेज क़दमों से पास के ही एक रेस्तौरेंट एंड बार(शराबखाना) के अन्दर चला गया। वो रेस्तौरेंट रविवार को भी सुबह आठ बजे से ही खुल जाता हैं। आधा घंटे बाद मैं जब रेस्ट्रॉन्ट से बाहर निकला ही था कि लड़खड़ाकर गिर पड़ा। गिरने के दौरान पास लगी रेलिंग में मेरी कमीज फंसकर फट गयी। थोड़ी बहुत चोट आई और बाएं हाथ से खून टपकने लगा। वहाँ से कुछ दूरी पर खड़ी एकता ने मुझे गिरते हुए देखा और कुछ सोच में पड़कर कहीं गायब हो गयी। पास में ही मेरे जानने वाला एक मेडिकल की दुकान का कर्मचारी मेरे पास आया और उसने मेरे बहते खून को स्पिरिट से साफ़ कर दिया। थोड़ा बहुत स्पिरिट मेरे कपड़ों पर भी गिर गया। चूँकि चोट ज्यादा लगी थी तो दूकानवाले ने मुझे वहाँ पर आराम से बैठने कह दिया। करीब आधा घंटे बाद मेरा दर्द कम हुआ तो मैं मेडिकल वाले के दुकान से वापस घर को चल पड़ा । 

चोट के कारण चलने में तकलीफ हो रही थी। लड़खड़ाते कदम से मैं जब घर के अन्दर घुसा और श्रीमतीजी से कहा-"आज लौटते समय एक पत्थर से ठोकर लग गयी और मैं गिर पड़ा। बड़ी गहरी चोट लग गयी हैं और मेरी कमीज भी फट गयी हैं।" ऐसा कहते हुए मैंने अपनी फटी कमीज और चोट की तरफ इशारा किया। मुझे लगा श्रीमतीजी तुरंत मेरी सहायता करने लग जाएगी। पर मैंने पाया उनके हाव-भाव कुछ और ही बयाँ कर रहे थे। वो मेरे नजदीक आई और जोर से कुछ सूंघने लगी। स्पिरिट की बदबू मेरी कमीज से आ रही थी। बस फिर क्या था, वे जोर जोर से चिल्लाकर बोली- "ठोकर तो हमारी किस्मत को लगी हैं। आप ये गिरी हुई हरकतें करते हैं। मेरे साथ इतना बड़ा धोका।" मैंने बीच में उनकी बात काटते हुए अचरज भर अंदाज़ में कहा – "तुम्हें अचानक क्या हो गया हैं ?" उन्होंने कुछ नहीं सुना और लगातार बोलना शुरू कर दिया – "साथ की सभी औरतें सही कहती हैं कि अपने पति की शराफत पर बहुत ज्यादा मत इठलाया करो, वो बाहर गुलछर्रे उड़ाता होगा। वे सब सच कहती थी। एक मैं ही मूर्ख थी जो आपको न पहचान सकी।" इस बात पर मैं उन पर झल्ला पड़ा और बोला- "मैंने क्या कर दिया जो तुम छुट्टी के दिन सबेरे-सबेरे मेरे ऊपर दाना- पानी लेकर चढ़ी जा रही हो?" उसने फिर गुस्से में उत्तर दिया " ज्यादा भोला बनने की कोशिश मत करो। आपको शरम नहीं आती ऐसी हरकतें करते हो?" 

मैं परेशान हो गया और सोच में पड़ गया कि ऐसी क्या मैंने हरकत कर डाली? एक बार थोड़ा सा डर लगा कि कहीं मेरी ऑफिस की सेक्रेटरी लूसी ने सबेरे-सबेरे मेरी अनुपस्थिति में घर पर फ़ोन तो नहीं कर दिया। चूँकि लूसी मेरी बचपन से अच्छी दोस्त रही हैं और साथ में कॉलेज में पढ़ी है, इसी कारण वो फ़ोन पर हेलो के बदले हाय हैण्डसम से बात शुरू करती हैं और कभी कभी तो 'राज डार्लिंग' नाम से भी सम्बोधित कर देती हैं। इसलिए लगा कि आज लूसी ने कहीं घर पर फ़ोन करके बिंदास अंदाज़ में कुछ ऐसी वैसी बात तो नहीं कर डाली जिसके कारण श्रीमतीजी मेरे ऊपर शक करने लगी हो। स्वभावतः मेरी श्रीमतीजी जैसी भारतीय नारी कभी पसंद नहीं करती कि उनके पति को कोई अन्य स्त्री हैंडसम या डार्लिंग जैसे सम्बोधनों से पुकारे। 

खैर, इस तरह गुस्से में चिल्ला-चिल्ली का सिलसिला और उसका एक तरफ़ा हमला लगातार चलता रहा। मैंने क्या गलत काम कर डाला मैं इस बात से पूरी तरह बेसुध था। अन्दर ही अन्दर डर गया था। इस दौरान श्रीमतीजी ने कई बार धमकी भी दे डाली कि वे मेरी हरकतों को मेरे माँ और बाबूजी तक बतायेंगी। करीब एक घंटे बाद माजरा समझ आया और श्रीमतीजी की सारी बातें सच सच बताई। सच जानकार मेरी जान में जान आई और मैंने तुरंत फ्रिज से कोल्ड ड्रिंक की बोतल निकाली और चैन के साथ पूरी बोतल गटगट करके पी गया। 

हुआ ये था कि एकता रविवार को सबेरे डोसा खाने के लिए मिनी मार्किट में अन्ना भाई के ठेले पर गयी थी, जो मिल्क बूथ से थोड़ी दूर पर हैं। उसने साढ़े आठ बजे मुझे तेजी से रेस्तौरेंट की ओर जाते हुए देखा जहाँ से मैं करीब आधा घंटे बाद वापस निकला था। रेस्तौरेंट से निकलते ही उसने मुझे लड़खड़ाकर गिरते हुए देखा। हमारी देसी लड़कियाँ और औरतें किसी भी छोटी सी घटना को रोचक कहानी बनाने में माहिर होती हैं। एकता को लगा कि अंकल चुपके-चुपके सबेरे रेस्ट्रॉन्ट एंड बार चले गए और दो-चार पैग लगाए होंगे। शायद जल्दबाजी में थोड़ी ज्यादा पीने के कारण बहक गए और लड़खड़ाकर गिर गए। उसे लगा कि अंकल चोरी- छुपे शराब पीने जाते हैं इसीलिए उन्होंने मुझे जान बुझकर अनदेखा किया और नमस्ते का जवाब भी नहीं दिया। एकता को लगा कि उनकी प्यारी आंटी को अंकल की इन बेशर्म हरकतों के बारे में कुछ नहीं मालूम हैं, इसलिए आंटी को इत्तला कर देना चाहिए ताकि वे इस गुमान में न रहे कि उनके पति देवता स्वरूप हैं। 

इसलिए वो मुझे गिरता-पड़ता देखकर तुरंत घर वापस आई और अपनी बाकी रूम-मेट के साथ मेरे घर आकर आंटी से बोल बैठी की अंकल यानी मुझ पर ध्यान रखे। वे चोरी-चोरी पैग लगाते हैं। हमने अपनी आँखों से देखा हैं। 

वास्तविकता इन बातों से कोसों दूर थी। 

दरअसल मैं जब दूध लेने गया, मेरे पास एक हज़ार रुपये का नोट था। दूधवाले ने दूध तो दे दिया पर कहा कि उसके पास एक हज़ार के खुले नहीं हैं और बताया कि पास के रेस्तौरेंट में मुझे एक हज़ार का छुट्टा मिल जाएगा। मैं जब वहाँ पहुँचा तो रेस्तौरेंट का मैनजर सफाई करवा रहा था, लिहाजा उसने मुझे कुछ देर इंतज़ार करने कहा। करीब आधा घंटे बाद मुझे  एक हज़ार के छुट्टे नोट मिल गए। मैं जब नोट गिनते हुए बार से बाहर आ रहा था, मैंने ध्यान नहीं दिया कि सामने एक बड़ा पत्थर पड़ा हैं, जिससे मुझे ठोकर लग गयी और मैं लड़खड़ाकर गिर गया। दूर से मुझे गिरते हुए एकता ने देखा फिर उसके दिमाग में एक चटपटी कहानी का सृजन हो गया। 

श्रीमतीजी की ग़लतफ़हमी तो दूर हो गयी। एकता और उसके सभी रूम मेट को सारी घटना की सत्यता से परिचित करवा दिया। पर ऐसी कई बात हमारे आसपास होती हैं जिसकी सत्यता जाने बगैर लोग आज भी चटखारे लेकर खुस्पुसाते हैं। 

आजकल व्हाटसैप ने ऐसी मनोरंजक कहानी गढ़ना और आसन बना दिया। उन दिनों अगर व्हाटसैप होता तो शायद मेरे घर पहुँचने से पहले पूरे शहर को मालूम पड़ जाता कि राज अंकल बहुत बड़े नशेड़ी हैं। इसीलिए बड़े बूढ़े कहते हैं कि जरूरी नहीं जो आँखों ने देखा हैं वो सच हो। 


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