Raj Shekhar Dixit

Inspirational

4.5  

Raj Shekhar Dixit

Inspirational

अससलाम आलैकुम मलेशिया

अससलाम आलैकुम मलेशिया

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555


भारत देश आबादी क़रीब 135 करोड़, 28 राज्य, 10 यूनियन टेरिटोरी, कई धर्म और भाषाएँ. एक दूसरे को अभिवादन करने के लिए सबसे प्रचलित शब्द नमस्ते या नमस्कार हैं. पर अभिवादन में और गर्मजोशी लानी हो तो थोड़ा सा लोकल भाषा या मजहबी तह्बीज का स्पर्श जरुरी है, मसलन अगर सिख व्यक्ति से कहो- सत श्री अकाल, तो लगता हैं कि अभिवादन के जरिये समीपता आ गयी. एक करीबी का दिल का रिश्ता बन जाता हैं. ऐसा सभी धर्म के लोगो के साथ होता हैं. ईसाई अंकल से सबेरे गुड मोर्निंग कहो, उनके चेहरे में एक अलग ख़ुशी के भाव दिखते हैं. मुस्लिम व्यक्तियों से 'आदाब' कहो, तो लगता हैं कि गंगा जमुना का संगम हो गया हो. भारत के अलग-अलग प्रदेश की विभिन्न भाषाएँ हैं और अभिवादन में स्थानीय भाव सभी को अच्छा लगता हैं. तमिलियन से वडक्कम कहो, वो खुश हो जायेगा और आपको अपना करीब मानेगा. गुजराती से जय श्रीकृष्णा, यू पी वाले से राम-राम, इत्यादि अभिवादन के तरीके हैं. इंसानी रिश्तों की मजबूती के लिए इनका सही समय पर उपयोग कितना महत्वपूर्ण हो जाता हैं ये मैंने तब जाना जब मैं एक बार मुसीबत में पड़ गया.  


वर्ष 2004 की नवरात्री के बाद 12 दिन की 3 देशीय यात्रा पर मैं अपनी पत्नी और तीन साल के बेटे के साथ गया था. मैं चूँकि "मोर वैल्यू फॉर मनी" की संकल्पना पर चलता हूँ, लिहाजा रेडीमेड ट्रेवल पैकेज न लेकर अपना ट्रेवल प्लान बनाया, क्योंकि मुझे लगता था कि ट्रेवल पैकेज 20-30 प्रतिशत ज्यादा महंगे होते थे. पहले दो दिन श्रीलंका, फिर चार दिन सिंगापुर और अंत में पांच दिन की कुआलालंपुर (मलेशिया) की यात्रा की. मैं करीब 4000 यूएस डालर ले कर चला था. लोकल शॉप में तो करेंसी नोट देता, पर बड़े बड़े मॉल में कैश नहीं बल्कि अपना क्रेडिट कार्ड उपयोग करता था, ताकि दूकान वाले को मालूम पड़े कि इंडिया से कोई रईसजादा विदेशों में शौपिंग करने आया हैं. हर देश में जमकर खरीददारी की. हम सभी को विदेश यात्रा में मज़ा आ रहा था. कुआलालंपुर में हम हर शाम लिटिल इंडिया जाते थे क्योंकि वहीँ हमें शाकाहारी खाना मिलता था. दीपावली और रमज़ान के उत्सव होने के कारण सभी बाजारों में भी जबरदस्त भीड़ थी.


यात्रा समाप्ति के दो दिन पहले मेरे बेटे तबियत खराब हो गयी. उसे तेज बुखार था. कुआलालंपुर में किस डॉक्टर को दिखाए समझ नहीं आ रहा था तो बुखार के लिए दवाई की दुकान से एक सिरप लेकर आ गया. दवाई की दुकान भीड़भाड़ वाले इलाके में थी. जब मैंने दवाई के खरीदने लिए बटुआ खोला तब उसमे करीब 800 यूएस डालर, 1200 मलेशियन रिंगिट और 1500 भारतीय रूपये थे. मैंने पैसे दिए और पैदल वापस आने लगा. बहुत ज्यादा मुक्की हो रही थी. मुझे तो मालूम ही नहीं पड़ा कि इस भीड़ में किसी जेबकतरे ने पीछे की जेब से बटुआ साफ़ कर दिया. पर जेबकतरा शरीफ था, इसलिए डालर और रिंगिट निकालकर न जाने कैसे बटुए को पीछे की जेब में वापस भी रख दिया. मुझे इस बात की ज़रा भी भनक नहीं लगी. होटल पहुँच कर बेटे को दवाई पिलाई और जब उसका बुखार कम हुआ तो पास की दूकान से ब्रेड खरीदने चला गया. ब्रेड के लिए पैसे देने ज्योंही बटुआ खोला, मेरे होश उड़ गए. सारे डालर और रिंगिट गायब थे. दूकान छोटी थी, क्रेडिट कार्ड नहीं चलता था. बगैर ब्रेड लिए होटल आ गया. अपनी पत्नी को बताया. पहले तो उसने कहा कि आप अच्छी तरह से याद करें, कहीं और तो नहीं भूल गए. सारा कमरा छान मारा, सूटकेस को कई बार खंगाला, पर कुछ न मिला. परदेश में जेब कट गयी कोई जानने वाला भी नहीं हैं. किस से मदद मांगे. होटल का किराया, घुमने और खाने के लिए पैसा कहाँ से आएगा. 


पत्नी धार्मिक प्रवृत्ति की थी, उसने कहा भगवान को याद करो, वही हमारी रक्षा करेंगे. उसने हनुमान चालीसा का पाठ करना शुरू कर दिया और साथ ही साथ भगवान से वादा किया कि हम सुरक्षित पहुँचने पर सत्यनारायण की कथा करवाएंगे. पर कहते हैं न की भगवान को मन से याद करो तो समस्याओ का हल मिल जाता हैं. मैं मनी एक्स्चंगेर को ढूंढने निकल पड़ा जो भारतीय रूपये को मलेशियन रिंगिट में बदल सके. मेरी पत्नी की प्रार्थना स्वीकार हो गयी और होटल से महज 5 मिनट की दूरी पर मेरे 1500 भारतीय रूपये के बदले 90 रिंगिट मिल गए. हम जब विदेश यात्रा पर निकल रहे थे, तब हमारी पत्नी ने एक सच्ची भारतीय स्त्री की तरह कई प्रकार के नमकीन व मीठे नाश्ते और बिस्कुट साथ में रखे थे. हालाँकि यात्रा शुरू करने पर मैंने उसकी इस हरकत का मजाक भी उड़ाया था कि ये फालतू बोझा क्यूँ ढोकर ले जा रही हो. हम लोग स्टार होटलों में खाना खायेंगे. ये बेकार ले जा रही हो. आज जब जेब कट गयी, तब यही घर का खाना हमारे काम आ रहा था. 


होटल के मैनेजर को पूरा वाकया बता दिया था और कहा की क्रेडिट कार्ड से बिल चुका पाउँगा. उस होटल में क्रेडिट कार्ड नहीं चलता था. पर 10% कमीशन पर वो तैयार हो गया. मरता क्या न करता, सो मैं तैयार हो गया. उसने 1250 रिंगिट के साथ 10% एक्स्ट्रा चार्ज लेकर होटेल के बिल का हिसाब कर लिया था. इसके साथ ही मेरे क्रेडिट कार्ड की लिमिट भी खतम हो गयी. मेरे पास अब सिर्फ 90 रिंगिट कैश बचे थे जो भारतीय करेंसी के बदले मिले थे. टैक्सी से एअरपोर्ट तक का किराया 140 रिंगिट फिक्स था. मैंने होटल मैनेजर को समझा दिया कि वो टैक्सीवाले को मेरे हालत बताकर किराया 90 रिंगिट करवा दे. उसने टैक्सी बुलवा दी और कहा कि टैक्सीवाला कम करने से मना कर रहा हैं. उसने कहा कि मैं ही उस टैक्सीवाले से सीधे बात करूं. 


सुबह 7 बजे हम लोग सामान लेकर होटल से बाहर निकले. टैक्सी ड्राईवर शकल से ही मुसलमान दिख रहा था. तो मैंने उसे देखते ही कहा- " अस सलाम आलैकुम भाईजान". रमजान का महीना चल रहा था और ऐसे मौसम में कोई ग्राहक सुबह-सुबह अस सलाम आलैकुम से अभिवादन करे तो किसे अच्छा नहीं लगेगा. उसने तुरंत उत्तर दिया.- "वाले कु सलाम". फिर उसने अपना पहला प्रश्न दागा.- "मुस्लिम?" मैंने सर हिलाते हुए कहा – "यस". मैं ये भूल ही गया था की मेरी पत्नी ने तो बिंदी पहन रखी हैं और मांग में सिन्दूर हैं. वो थोड़ा ठिठका और कुछ सोच में पड़ गया. इस से पहले कि वो हमारे मुस्लिम होने का सबूत मांगे, मैंने तपाक से अंग्रेजी में कहा- " आई मुस्लिम, वाइफ हिन्दू. We are Indian and India is a secular country. We believe in all Gods. Visited Malaysia for Deewali & Ramazan Shopping. Malaysia is great country & I love Malaysian culture." और मलेशिया की तारीफों के झूठे पुल बांधने लगा. ड्राईवर टूटी फूटी अंग्रेजी समझता था. पूछ बैठा- " You have no full money for taxi. Pay me 80 Ringgit. You Indian brother, hindu wife." उसके बाद वो बहुत कुछ बोलता गया जिसमे कुछ समझ आया पर ज्यादातर सिर के ऊपर से निकल गया. एअरपोर्ट पर मैंने उसे 90 रिंगिट ही दिए. वो 10 रिंगिट वापस कर रहा था. मैंने मना कर दिया. बाद में उस से कहा "खुदा हाफिज़. हैप्पी रमज़ान". उससे गले मिला और एअरपोर्ट के अन्दर चला गया.


उस दिन मालुम पड़ा कि छोटे से मजहबी तह्बीज के अभिवादन के शब्द कितने महत्वपूर्ण होते हैं.  


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