Raj Shekhar Dixit

Others

5.0  

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मेरी दादी आतंकवादी नहीं हैं

मेरी दादी आतंकवादी नहीं हैं

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मेरी दादी माँ को बचपन से ही नियमित समाचार पत्र यानी अखबार पढ़ने की आदत है. उनकी उम्र 86 वर्ष है इसके बावजूद वो रोजाना सुबह चार बजे उठकर नहाती हैं, चाहे कैसा भी मौसम हो. यहाँ तक कि वो अपने कपडे भी स्वयं धोती हैं. सुबह नहाने के बाद वो पूजा पाठ और योग करने में करीब दो घंटे का समय लेती हैं. फिर चाय भी खुद बनाती हैं. इस उम्र में भी वे हमेशा उर्जावान बनी रहती हैं और हमेशा मुस्कुराती रहती हैं. पर वो चाय की चुस्कियाँ तब तक नहीं लेतीं जब तक उनके पास सुबह सुबह अखबार सामने न हो. बगैर अखबार के वो अपने आप को बहुत असहज महसूस करती हैं. मेरी दादी माँ की माँ याने मेरी परदादी ने एक बार मुझे बचपन में बताया था कि दादी ने समाचार पढने को अपनी दिनचर्या का हिस्सा तब से बना रखा हैं जब वो 5वीं कक्षा में पढ़ती थी. तब उनकी उम्र महज दस वर्ष की थी. उन दिनों हमारा देश आज़ाद नहीं हुआ था. वो सदा से स्त्री अधिकारवाद की वकालत करती आई हैं. वो उन गिनी-चुनी महिलाओं में से एक हैं जिन्होंने स्त्री होते हुए एक दकियानूसी माहौल में रहकर वर्ष 1955 में समाज शास्त्र से पोस्ट ग्रेजुएशन किया था. पर शादी के बाद परिस्थियोँवश वो अपनी पी.एचडी. पूरी न कर सकीं.


हम हिन्दुस्तानियों में एक ख़ास गुण होता है, वो अखबार को पूरा पढ़ने के बाद उसे दूसरे कामों में इस्तेमाल करते हैं. पेपर के लिफ़ाफ़े बनाकर पैकिंग मटेरियल के तौर पर इस्तेमाल करना, या फिर खिडकियों के शीशे पर चढ़ाकर बाहर से आ रही तेज धूप को रोकना अथवा उसे टेबल-कुर्सी, बर्तन या अन्य सामानों को पोंछना, कभी पेपर प्लेट के तौर पर इस्तेमाल करके उसमे नाश्ता देना या पूजा का परशाद वितरित करना. गाँव के मिट्टीवाले चूल्हे में लकड़ी सुलगाने में या धोबी की कोयलेवाली इस्त्री में आग सुलगाने में भी इसका उपयोग होता है. स्कूली बच्चे इसका पेपर किताब कापियों में जिल्द चढाने में इस्तेमाल करते हैं. छोटे बच्चे उस पेपर का हवाई जहाज बनाकर उड़ाते हैं या फिर कागज की नाव बनाकर पानी में चलाते हैं. कई लोग अखबार में छपी फुल साइज़ हीरो या हेरोइन की फोटो को अपने कमरे में पोस्टर के तौर पर दीवारों पर चिपका देते हैं. ऐसे अनगिनत उपयोग हम अखबारों का करते हैं. और जो उनका अन्यत्र उपयोग करना नहीं जानते वे उसे रद्दी भाव में बेचकर कुछ पैसे कमा लेते हैं.


जब मुझे अपनी कंपनी की ओर से तीन साल के लिए अमेरिका के लॉस एंजेलिस ऑफिस में भेजा गया था, तब मैंने अपने मम्मी पापा और दादी माँ को भी वहाँ गरमी के मौसम में घूमने के लिए बुलाया था. मेरे मम्मी पापा ग्रामीण पृष्ठभूमि वाले हैं तो वो अमेरिका जाने में थोड़ा झिझक रहे थे. उन्हें डर लग रहा था कि वे किस तरह अजनबियों से बातें करेंगे या अनजानी जगह बगैर सहायता के भटक जायेंगे. पर जब मैंने उनको आश्वस्त किया कि एयरलाइन का स्टाफ और सहयात्री सफ़र के दौरान उनकी मदद कर देंगे तो वो तैयार हो गए. ये उन सबकी पहली हवाई यात्रा थी वो भी सीधा विदेश के लिए. दादी ने अपने कपडे, धार्मिक किताबे, मंजीरा व खाने-पीने का सामान रखा था ताकि उन्हें विदेश में कोई दिक्कत न हो. दादी उस समय बहुत प्रसन्नचित हो गयी जब उन्होंने अमेरिका की धरती पर अपने कदम रखें. उन्हें विश्वास नहीं हो रहा था कि वे इस जन्म में जीते जी कभी अमेरिका घूम पाएंगी. उनके यहाँ पर पहुँचने के बाद करीब पंद्रह दिनों तक उन्हें अमेरिका के विभिन्न हिस्सों की सैर कराई. इन यात्राओं के दौरान दादी माँ के रोजाना के कार्य जैसे पूजा, योग और समाचारपत्र पढ़ना बाधित रहे. इसीलिए जब पंद्रह दिनों की सैर के बाद हम जब लॉस एंजेलिस वापस पहुंचे तब उन्होंने सबेरे सबेरे हिंदी का समाचारपत्र पढने की इच्छा जाहिर की. मैंने उन्हें बताया कि उनको हिंदी का अखबार तो नहीं मिलेगा पर अंग्रेजी का न्यूज़पेपर मिल जाएगा. दादी को अंग्रेजी पढ़ना लिखना तो आता हैं, हालांकि वो अंग्रेजी बोलचाल में कमज़ोर है. मसलन मैंने सुबह सुबह उनके लिए अंग्रेजी न्यूज़पेपर की व्यवस्था करा दी.


अगले दिन मैंने देखा कि दादी माँ ने अपनी दिनचर्या के अनुसार सुबह नहाने के बाद अपनी साड़ी और पेटीकोट को धोकर बालकनी में सुखाने डाल दिया. मैंने उन्हें ऐसा करने से तुरंत रोका और बताया कि अमेरिकन नियमों के हिसाब से इस तरह कपडे सुखाने की अनुमति नहीं हैं. ये जानकार दादी माँ बहुत दुखी हुईं. उन्होंने जब घर के आँगन में मंजीरा बजाते हुए राग के साथ भजन गाना चाहा तब भी मैंने उन्हें यहाँ की सामाजिक व्यवस्थाओं का हवाला देकर रोक दिया. इस प्रकार के सामाजिक बन्धनों से वो बहुत असहज महसूस करने लगी. उन्हें अपने घर की याद सताने लगी क्योंकि वो तो भारत में अपने घर में जोर जोर से भजन गाती रहती थीं और मजे से बालकनी में कपड़े सुखाती थीं. चूँकि वे लोग एक महीने की लिए अमेरिका आये थे तो मैंने उन्हें समझाते हुए कहा कि वे लोग बाकी दो हफ्ते किसी तरह से अमरीकी तौर तरीकों के अनुशासित वातावरण में रह ले. मुझे स्वयं इस तरह की सामाजिक गुलामी परेशान कर रही थी.  


अंततः वो दिन आ गया जब दादी माँ और मम्मी-पापा को भारत वापस जाना था. हमेशा की तरह दादी माँ ने उस दिन भी सुबह उठकर नहाया, कमरे के अन्दर ही योग और पूजा की और उसके बाद अपने सारे कपड़ों को अपने सूटकेस में पैक करके रख दिया. उस दिन दादी माँ ने क्रीम रंग की साड़ी पहन राखी थी. वो उसमें बहुत सुन्दर और भव्य लग रहीं थीं. सुबह आठ बजे हम सब टेक्सी में सवार होकर एअरपोर्ट की ओर रवाना हो गए. दादी माँ की आँखों में आंसूं थे. वे बार बार मुझे प्यार करते हुए मेरे माथे को चूम रही थीं. साढ़े नौ बजे उन्हें एअरपोर्ट पर अन्दर भेजकर बिदा करा दिया. उन्हें अन्दर भेजने से पहले पूरी तरह से समझा दिया कि किस तरह से उन्हें बोर्डिंग पास लेना हैं, लगेज को स्कैन करवाना हैं और इमीग्रेशन में उत्तर देना हैं. उनकी फ्लाइट को साढ़े बारह बजे रवाना होना था. उन्हें बिदा करने के बाद मेरा मन भी बहुत दुखी था. दुखी मन के ही साथ मैं टेक्सी लेकर वापस अपने घर की ओर जाने लगा. करीब आधे घंटे बाद मेरे मोबाइल पर एक फ़ोन आया जिसे सुनकर मैं अचंभित हो गया और टेक्सीवाले से कहा कि वापस एअरपोर्ट ले चलो. वो फ़ोन एअरपोर्ट के पुलिस विभाग से था जहाँ दूसरी तरफ से एक लेडी ऑफिसर ने मुझे तुरंत बुलाया था. उसने मुझे जो बातें बतायी मुझे उन पर विश्वास नहीं हो रहा था. मुझे उन बातों को सुनकर बड़ा धक्का लगा था. मेरे मम्मी-पापा और दादी माँ को पुलिस ने एअरपोर्ट पर रोक रखा था. उन पर इलज़ाम था कि वो किसी गैर कानूनी गतिविधियों में संलिप्त हैं और पुलिस के किसी भी प्रश्न का सही सही जबाब नहीं दे पा रहे हैं.


मैं एअरपोर्ट के अन्दर दाखिल हुआ और सीधा पुलिस विभाग की ओर चला गया जहाँ पर उन्हें बैठा रखा था. वहाँ पर पाया कि मेरी दादी माँ जोर जोर से रो रही थीं. मुझे देखते ही वो मेरे पास आने लगी, पर दो महिला पुलिसों ने उन्हें दबोच लिया और मेरे पास आने नहीं दिया. मैंने वहाँ पर बैठी लेडी ऑफिसर से पूछा कि माजरा क्या है? इस पर उसका जबाब आया कि वो वृद्ध औरत यानी मेरी दादी माँ अपने साथ कोई ज्वलनशील पदार्थ छुपाकर ले जा रही हैं. उन्हें शक हैं कि वो एक आतंकवादी हैं. इतना सुनकर मैं झल्लाकर बोला- ऑफिसर प्लीज टॉक इन सेंस. माय ग्रैंडमा इस नाट अ टेररिस्ट. प्लीज रेस्पेक्ट हर ऐज ( अधिकारी महोदया, कृपया होश में बातें करें. मेरी दादी माँ आतंकवादी नहीं हैं. कृपया उनकी उम्र का ख़याल करे.) अगर आपको इनके सामान पर कोई शक हैं तो सूटकेस को वापस बुलवा लीजिये और मैं आपको खोलकर सामान चेक करवा देता हूँ. चूँकि मामला ज्वलनशील पदार्थ को सूटकेस में ले जाने सम्बन्धी था, लिहाजा पुलिस ने बम स्क्वाड टीम और फायर-फाइटिंग टीम को बुलाया और कहा कि सूटकेस को किसी खुली जगह ले जाकर चेक किया जाए. सूटकेस की चाबी दादी माँ के पास थी, उसे मैंने दादी माँ से माँग लिया और हम एक खुले मैदान में चले गए. बम स्क्वाड टीम ने आहिस्ता-आहिस्ता उसे खोला, फिर एक-एक सामान चेक किया. सामानों के नाम पर दादी माँ के अखबार में लिपटे गीले कपड़े, कुछ धार्मिक किताबें, पुराने नमकीन के पैकेट और मंजीरा पड़ा था. उस टीम ने कई बार सूटकेस के अन्दर-बाहर चेक किया, पर कुछ नहीं मिला. अब पुलिस को शर्मिन्दगी हुई कि उन्होनें बेवजह दादी माँ पर शक किया.


पुलिस की टेक्निकल टीम जांच में जुट गयी कि उनसे कहाँ गलती हो गयी. उन्होनें पाया कि जब दादी माँ का सामान लगेज स्कैनर से पास कर रहा था तब दादी माँ के गीले कपडे सूटकेस के अन्दर पुराने अखबार में लिपटे थे. जब अखबार पानी से गीला होता हैं तब उसकी स्याही पानी के साथ क्रिया करके बदबूदार गैस बनाती हैं.शायद सूटकेस के अन्दर से कोई बदबूदार गैस रिस रही थी जिसे स्कैनर के सेंसर ने ज्वलनशील पदार्थ समझकर हूटर बजा दिया. पुलिस चौकन्नी हो गयी और दादी माँ को घेरकर उनसे प्रश्न करने लगी. दादी माँ और मम्मी-पापा उनके अमेरिकन एक्सेंट को नहीं समझ पा रहे थे. वे बार बार दादी माँ से सूटकेस की चाबी भी मांग रहे थे. पर भाषा नहीं समझ पाने की वजह से और पुलिस के जोर जोर से पूछने पर मेरे दादी माँ घबरा गई और कुछ उत्तर न दे सकीं. इस पर पुलिस को शक हुआ कि कहीं कुछ गड़बड़ हैं.


फ्लाइट के छूटने में अब सिर्फ डेढ़ घंटा बाकी था. मैंने लेडी पुलिस ऑफिसर से कहा कि कृपया इनकी सामान वापस पैक करने में मदद करे. तुरंत एक फ्रेश पेपर का रोल बुलाया जिसमे दादी माँ के गीले कपड़े पैक करके वापस सूटकेस में रखा गया.पुलिस ने अपनी गलती को स्वीकारते हुए माफ़ी मांगी और अपने विभाग के एक कर्मचारी को बुलाया जो भारतीय मूल का था और टूटी फूटी हिंदी जानता था. उस कर्मचारी की मदद से मम्मी-पापा और दादी माँ का बोर्डिंग पास का काम और इमीग्रेशन सहजता के साथ हो गया. अंत में सबके चेहरे पर मुस्कान आ ही गयी.


ये थी मेरी दादी माँ की यादगार अमेरिकन यात्रा.



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