जीत हमारी पक्की
जीत हमारी पक्की
सूरज ने नया काम शुरू किया था। घर के बाहर ही उसने ढाबा खोला था। खाना तो वह ठीक ठाक बना लेता था,मगर व्यापार करने में वह अनाड़ी था। इसके अलावा उसके पास और कोई चारा भी नहींथा। पढ़ाई ज्यादा की नहीं थी, इसलिए नौकरी के सारे प्रयास असफल रहे।
इधर दो दिनों से वह बड़ा परेशान था और सोच रहा था। अगर यह व्यापार भी पहले के व्यापारों की तरह नहीं चला तो क्या होगा।
शाम के समय सूरज अपने घर में बैठा हुआ था।अचानक दरवाजे पर दस्तक हुई। उसने दरवाजा खोला तो उसके बचपन का मित्र कुणाल सामने खड़ा था।
"अरे कुणाल तुम कब आये शहर से" ? सुरज ने कुणाल से गले लगते हुए पूछा।
कुणाल ने कहा "आज ही आया हूँ"।
दोनो दोस्त फिर बैठ कर बातें करने लगे। सूरज ने कुणाल से पूछा "कुणाल शहर में तुम क्या कर रहे हो ?"
कुणाल भी सूरज की तरह कम पढ़ा लिखा था।
कुणाल ने बताया "शहर में काम तो बहुत मिले लेकिन जितने पैसे कमाता हूँ, वह खर्च हो जाते है"।
इसलिए अब शहर से वापस लौट आया हूँ। यहीं कोई छोटा मोटा व्यापार शुरू कर दूँगा।
सूरज ने पूछा "कौन सा व्यापार शुरू करोगे"
कुणाल बोला "अभी सोचा नहीं है लेकिन कुछ तो करना पड़ेगा। लेकिन मुश्किल यह है कि कोई भी काम शुरू करने के लिए कुछ पूंजी की जरूरत होती है। मैंने बैंक में लोन के लिए अर्जी दी है। अगर मिल गया तो जल्द ही तुम्हारा भाई भी तुम्हारी तरह व्यापारी बन जाएगा।"
चाय बन कर आ चुकी थी। चाय का कप हाथ में लेते हुए कुणाल ने पूछा " और तुम बताओ तुम्हारा व्यापार कैसा चल रहा है ? वैसे तुम्हारा उदास चेहरा बता रहा है कि कुछ छुपा रहे हो मुझसे।"
सूरज से कुछ पल तो जवाब देते नहीं बना। फिर बोला "व्यापार तो बहुत तरह के किये, लेकिन सब में घाटा उठाया। जमा पूंजी भी सब समाप्त हो चुकी है। अब ले देकर यह ढाबा शुरू किया है। तुम्हारे आने के पहले यही सोच रहा था कि अगर इसमें भी किस्मत साथ नहीं देगी तो क्या होगा !"
कुणाल बोला "कितने दिनों में एक व्यापार जमता है पता है ?"
सूरज: "नहीं!"
कुणाल: तकरीबन दो से तीन साल लगते है। मैंने यह बात शहर में अपने मालिक से सीखी है।
सूरज बोला... "ओह्ह तभी मेरा कोई भी व्यापार जम नहीं रहा था क्योंकि कुछ ही दिनों में मैं एक काम से उकता कर दूसरा काम शुरू कर लेता हूँ।"
अचानक कुणाल ने कहा "देख भाई मुझे व्यापार शुरू करना और तुम्हारा व्यापार नहीं चल रहा है। मैंने शहर में रह कर यह तो सीखा है कि व्यापार कैसे किया जाता है। एक काम करते है। मैं और तुम मिल कर इस ढाबे को चलाते है। खाना बनाने की ज़िम्मेदारी तुम्हारी। ग्राहकों को लाना और उन्हें सँभालने की ज़िम्मेदारी मेरी।"
सूरज का चेहरा फिर से खिल गया और बोला ...."लेकिनssss....
तभी कुणाल का फोन बजा..... कुणाल ने फोन पर बात करनी शुरू कर दी
इधर सूरज सोचने लगा..."कहीं व्यापार की वजह से हमारी दोस्ती में दरार तो नहीं आ जाएगी।"
कुणाल फोन रखते ही खुशी से चिल्लाया बैंक कर्मचारी का फोन था। मेरा लोन पास हो गया है। उस पैसे से हम ढाबे को छोटे रेस्तरॉ का रूप दे देंगे। बाकी सब तुम मुझ पर छोड़ दो। देखना दोनो भाई मिल कर इस ढाबे को यहाँ का सबसे अच्छा होटल बनाएंगे।
सूरज सुन रहा था और अपनी पिछली सोच पर पछता रहा था।