समझदार पत्नी
समझदार पत्नी
आकांक्षा और अमित की नयी नयी शादी हुई थी। आकांक्षा कॉल सेंटर में कार्य करती थी। वही अमित बैंक में क्लर्क था।
अमित और आकांक्षा की दिनचर्या लगभग एक जैसी थी। दोनो सुबह एक ही वक्त में कार्य करने जाते थे और एक ही समय वापस आते थे।
शनिवार की शाम थी अमित पड़ोस में अपने मित्र से मिलने चला गया। आकांक्षा खाना बना रही थी। उसके खाना बनाने के पहले ही अमित वापस लौट आया था।
खाना खाते हुए उसने आकांक्षा को कहा कि मैं फ़िल्म की टिकट लेने जा रहा हूँ, तुम तैयार रहना।
आकांक्षा ने कहा "ठीक है"।
अमित अपने कमरे में गया और उसने अलमारी से अपना बटुआ निकाल कर जेब में रखा और चला गया।
सिनेमा हॉल की खिड़की पर जब उसने टिकट के लिए बटुआ निकाला तो देखा उसमें से पाँच सौ रुपये कम थे।
उसने सोचा "आकांक्षा ने लिए होंगे"।
टिकट लेकर अमित घर आ गया। आकांक्षा तैयार हो रही थी।
अमित ने उससे पूछा तुमने मेरे बटुए से पाँच सौ रुपये निकाले थे क्या।
"नहीं" आकांक्षा बोली।
अमित बोला "फिर कहाँ गए रुपये"
"कहीं खर्च किये होंगे ध्यान से निकल गया होगा" आकांक्षा ने कहा
"खैर चलो सिनेमा के लिए देर हो रही हो रही है" अमित ने बात खत्म करते हुए कहा।
दो दिन बाद अमित के बटुए से फिर पैसे गायब हो गए। अमित ने फिर आकांक्षा से पूछा, लेकिन आकांक्षा लेती तो बताती न।
ऐसे करते हुए महीने में छह सात बार अमित के बटुए से पैसे निकल गए। अब अमित थोड़ा खिन्न रहने लगा। उसे समझ नहीं आ रहा था कि पैसे कौन निकाल रहा है।
इतवार का दिन था अमित घर में आराम करने के मूड में था। आकांक्षा अपने आफिस का कुछ कार्य लैपटॉप पर कर रही थी। अमित ने कहा "मैं बाज़ार से आता हूँ कुछ सामान लेकर"।
अमित घर के बाहर निकल गया लेकिन कुछ ही देर में वापस आ गया। आकांक्षा हाल में बैठी थी उसने उसे देखते ही पूछा क्या हुआ?
"गाड़ी की चाभी भूल गया हूँ" अमित बोलते हुए अपने कमरे में गया।
कमरे में घुसते ही उसने देखा सोनू (अमित का छोटा भाई) के हाथ में आकांक्षा का पर्स था।
अमित का पारा अचानक चढ़ गया। इतने दिनों से वह अपनी पत्नी पर शक कर रहा था; जबकि चोरी उसका भाई कर रहा था।
उसने खींच के एक थप्पड़ सोनू को जड़ दिया। आकांक्षा दौड़ती हुई कमरे में आई।
उसने अमित को सोनू से दूर किया और उसे शांत होने का बोलने लगी।
अमित आकांक्षा से नजरे नहीं मिला पा रहा था।
उसने लगभग रोते हुए कहा कि मेरे भाई की कारण मैं तुम्हे शक की नज़रों से देख रहा था।
मैंने उसके लिए क्या क्या नहीं किया है। उसने जो माँगा सब दिया।
आकांक्षा अमित को शांत करते हुए बोली "उसे चोरी करते हुए दो दिन पहले मैं देख चुकी थी। लेकिन मैं चाहती थी समय अनुसार तुम्हें बताऊ और फिर उसे समझा कर सही राह पर ले आउँ।
अगर मैं सीधा कह देती कि तुम्हारे भाई ने तुम्हारे बटुए से पैसे निकाले हैं, तो तुम मुझ पर विश्वास नहीं करते।
इस उम्र के बच्चों को मार पीट कर समझाना आसान काम नहीं है। मारने पीटने से वह कुछ समय के लिए शायद सुधर भी जाये लेकिन तुम्हारे प्रति उसके मन में नफरत जगने लगेगी।
हम उसे प्यार से समझाएंगे तो वह सही राह पर हमेशा चलेगा और न तुमसे न ही मुझसे नफरत करेगा।
अमित का गुस्सा शांत हो चुका था। उसे आकांक्षा की बाते स्पष्ट रूप से समझदारी वाली लग रही थी।
उसने आकांक्षा को कहा " मैंने कोई पुण्य ही किया होगा जो तुम मेरी पत्नी बनी हो"
आकांक्षा के गाल लाल हो गए।