तरक्की की भूख
तरक्की की भूख
रवि और कुमार एक ही दफ्तर में काम करते है, दोनो अच्छे मित्र भी है। नयी कंपनी थी इसलिए उसके शुरुआती दौर में ही उन्हें कार्य मिल गया था। रवि ने जहाँ स्नातक तक पढ़ाई की थी वहीं कुमार दसवीं के बाद पढ़ाई छोड़ चुका था।
नौकरी के आरंभ में शुरू शुरू में रवि को कुमार से ऊंचा पद दिया गया था। काम करने में दोनो ही माहिर थे। लेकिन धीरे धीरे कुमार ने कंपनी में अपनी अलग पहचान बनानी शुरू कर दी। कुछ ही महीनों में कुमार रवि से आगे निकल गया। रवि उसकी सफलता पर खुश था। कुमार ने रवि से आगे निकलने के बाद रवि से अपना दोस्ताना कम कर दिया। अब औपचारिकता वाली बातें करता था।
इस साल फिर तरक्की की घोषणा होने वाली थी। कुमार निश्चिन्त था कि इस बार उसे मालिक मैनेजर का पद जरूर दे देगा।
शनिवार को जब कार्यालय से जल्दी काम खत्म हो गया, तो कुमार रवि के पास गया। उसने रवि से कहा, "यार तुमसे कुछ बात करनी है।”
रवि ने शांत स्वर में कहा, “बोलो! क्या बात करनी है।"
"यहाँ नहीं चलो बरिस्ता (कॉफ़ी शॉप) में चलते है।" कुमार ने कहा।
रवि बोला, "ठीक है।"
अपना खाली वक्त और बातचीत करने के लिए दोनो हमेशा बरिस्ता में ही बिताते थे।
बरिस्ता पहुँचने के बाद कुमार ने दो कॉफी का ऑर्डर दिया।
रवि ने फिर कहा, "अब बोलो, क्या बात करना चाहते हो?"
कुमार ने कहा, "सीधे मुद्दे पर आता हूँ। हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी कंपनी में तरक्की के लिए नामों की घोषणा होने वाली है।"
"हाँ! मुझे पता है।", रवि बोल उठा।
"क्या तुम नहीं चाहते हो कि तुम्हारी भी तरक्की हो?" कुमार ने पूछा।
"मेहनत से काम करने वालों को तरक्की कम ही मिलती है।", रवि ने निराश होते हुए कहा।
कुमार सुन कर अचंभित हुआ और बोला, "मुझे देखो मेहनत तो मैने भी की है तुम्हारे बराबर लेकिन, मुझे तरक्की जल्दी मिली। इसके पीछे का कारण नहीं जानना चाहोगे। मैं जो कहता हूँ वह तुम करो देखना तुम्हारी भी तरक्की पक्की होगी।"
रवि ने कहा, "मुझे सब पता है कुछ छुपा नहीं है। तुम्हारे पीठ पीछे दफ्तर के लोग तुम्हें मालिक का ग़ुलाम, मालिक की कठपुतली कहते फिरते है। मेरे लिए तरक्की से ज्यादा अहमियत मेरी इज़्ज़त रखती है और सच यह है कि जिस दिन तुमने मालिक के एक भी कार्य के लिए इंकार कर दिया उस दिन तरक्की तो दूर तुम्हारी नौकरी भी रहेगी या नहीं इसका भरोसा नहीं है। इसलिए मैं मेरे काम से खुश हूँ। किसी की कठपुतली मुझे नहीं बनना है।”
बरिस्ता से निकल कर दोनो अपने अपने घर चले गए।घर पहुँच कर कुमार रवि की बातों पर गौर करने लगा। उसके शब्द उसे चुभ रहे थे। इसलिए नहीं कि रवि ने उसकी तरक्की से जल कर कहा हो बल्कि इसलिए कि रवि ने उसे आज आईना दिखाया था। लोग पीठ पीछे क्या बोलते थे यह सब कुमार को भी पता था। उसने कभी इन सब बातों को तरक्की की भूख में ध्यान नहीं दिया। रात भर कुमार सो नहीं सका। सुबह 4 बजे जाकर उसकी नींद लगी।
दूसरे दिन उसकी नींद देरी से खुली तो दफ्तर के लिए देरी हो चुकी थी।
आनन फानन में वो तैयार हुआ और दफ्तर के लिए निकल गया।
दफ्तर पहुँचते ही चपरासी ने कहा, "बड़े साहब ने आपको याद किया है।"
कुमार मालिक के चेम्बर में गया, "सर आपने बुलाया?"
"हाँ! कुमार बैठो", मालिक ने कहा।
"इस साल की तरक्की देने के लिए लिस्ट तैयार कर रहा था। कोई नाम तुम सजेस्ट करना चाहते हो?" मालिक ने पूछा,
"यस सर! एक नाम है।मेरा मित्र रवि, मेरी तरह ही मेहनती है।”, कुमार ने कहा।
“मैं देखता हूँ।”, मालिक ने कहा।
"मैं जाऊँ तब? " कुमार ने पूछा।
“अच्छा सुनो मेरी पत्नी कुछ दिनों मायके जा रही है। बच्चों को सुबह स्कूल पहुँचाने और वापस लाने का तुम देख लेना।”
कुमार ने जैसे यह सुना उसके कान में रवि की बातें गूंजने लगी।
उसके मुँह से सीधा निकल गया, "सर! मुझसे नहीं होगा।"
मालिक ने घूर कर उसे देखा जैसे किसी ग़ुलाम ने इंकार कर दिया हो।
मालिक ने गुस्से में कहा, "तुम्हारी इतनी हिम्मत मुझे मना कर रहे हो, मैं चाहू तो तुम्हें एक पल में नौकरी से निकाल सकता हूँ।”
"सर! आपको जो करना है, कर सकते है। लेकिन मैं आपके निजी कार्य करने के लिए दफ्तर नहीं आता हूँ। मुझे आपके हाथों की कठपुतली बन कर नहीं रहना है।", कुमार ने निर्भय होकर कहा और केबिन से निकल गया।
अपनी टेबल पर जाकर लगा। इतने साल से उसे जो खुद पर अभिमान था कि, वह कम्पनी में सबसे महत्वपूर्ण कर्मचारी है। वह हकीकत नहीं मेरा भ्रम था।
“क्या सोच रहे हो???”, अचानक रवि ने उससे पूछा।
“यार तुम बिल्कुल सही थे। मैं ही भ्रम में जी रहा था। मुझे लगा कि मैं अपनी काबिलयत से इस मुकाम पर पहुँचा हूँ।”, कुमार ने लगभग रोते हुए रवि से कहा।
“सर! आपको बड़े साहब ने बुलाया है।”, चपरासी ने आकर कहा।
कुमार ने रवि को यह कहते हुए मालिक के केबिन में पास जाने लगा, "शायद मेरा इस कम्पनी में आज आखिरी दिन है।"
मालिक के केबिन में गया तो मालिक ने उससे कहा,
"मैं तुम्हें कंपनी में रखूं या नहीं रखूं इसपर बहुत देर से निष्कर्ष निकाल रहा था। तुमने पहली बार मुझे किसी कार्य के लिए मना किया है। तुमने ऐसा क्यों किया? यह जाने बिना मैं तुम्हें निकाल भी नहीं सकता।"
“सर! ऐसा है कि तरक्की की भूख में, मैं क्या कर रहा था? क्यों कर रहा था? इसका मुझे अंदेशा भी नहीं था। मैं एक ऐसी कठपुतली बन कर रह चुका था जिसकी डोर आपके हाथ में थी। आपने भी मुझे बहुत नचाया है। लेकिन मैं अब वह डोर आपके हाथ से या तो छीनना चाहता हूँ या तोड़ देना चाहता हूँ। मेरे मित्र रवि ने मुझे इसका अहसास कल दिलाया कि मैं दरअसल इस कंपनी में कर्मचारी नहीं बल्कि आपका ग़ुलाम बन कर रह रहा हूँ।” कुमार ने एक ही सांस में अपनी सारी बात कह दी।
मालिक ने सुना तो उसने तुरंत रवि को बुलाया।
रवि के आते ही मालिक ने पूछा, "तुमने ऐसा क्या कह दिया इसे जो अब यह मुझे इनकार करने लगा है । तुम्हारी तरक्की कभी नहीं हुई और इसे तरक्की मिलती रही कभी इसपर तुमने सोचा ?"
रवि ने कहा, "सर कुमार मेहनती है इसमें कोई शक नहीं है। उसकी तरक्की से मुझे कभी जलन नहीं हुई। लेकिन जब कंपनी के सब लोग इसे कठपुतली, ग़ुलाम इत्यादि शब्दों से बुलाते है तो मुझे हमेशा बुरा लगता था कि इसने तरक्की की भूख में खुद को क्या बना लिया है। छुट्टी के दिनों में भी यह आपके घर के कार्यों में व्यस्त रहता था। यह सब करना कोई नहीं चाहता है। वह कम पढ़ा लिखा है। उसे कभी समझ नहीं रही कि क्या करना है क्या नहीं। उसके इस हालत का जिम्मेदार जितना वो खुद है, उतना ही आप हो और करीब उतना ही मैं भी हूँ। क्योंकि सही वक्त पर मैंने उसे रोका नहीं।
अगर आप इसे कम्पनी से निकालने का सोच रहे हो, तो मैं भी इसके साथ निकलूंगा।”
मालिक ने हँसते हुए कहा, "अरे ! तुम इतनी दूर की क्यों सोच रहे हो। मैं तो सोच रहा था कि कुमार को इतने दिनों तक तुमने सही राह क्यों नहीं दिखाई। कुमार से मैं निजी कार्य करवाता था वह मेरी गलती थी। अब से उसे सिर्फ कंपनी का काम ही करना होगा। मुझे एहसास हो गया कि कर्मचारियों से घर का काम नहीं करवाना चाहिए। उसके लिए मैं अलग से किसी को रख लूंगा।”
