जीने की जुगत
जीने की जुगत


प्रिय डायरी,
लाॅकडाउन का एक और दिन बस गुजरने ही वाला है। अब फोन से भी ऊब होने लगी थी। घर में अकेले बैठे- बैठे भविष्य की अनिश्चितताओं के बारे सोच कर जब दिमाग फटने लगा तो कुछ खाने के जरूरी सामान लेने निकल पड़ीं। मकान मालिक पैसों का आग्रह कई दिनों से कर रहा था। चेहरे पर मास्क लगा कर और हाथ में थैला लिए, मैंने पहले एटीएम से दस हजार रुपये निकाले फिर सब्जी मंडी में चली गई। देखा सभी सब्जी वाले बिना मास्क लगाए सब्जी बेच रहे है !
भैया तुमने मास्क क्यों नहीं लगाया ? एक से मैंने पूछा।
उसने जवाब देते हुए कहा, "अरे ई कोरोना वोरोना हमको न होई, ई सब अमीर लोगों का चोंचला है !"
कुछ था उसकी बातों में, मैं जवाब न दे पायी। शायद वस्तुओं पर छिड़के जाने वाले सेनेटाइजर की बौछार गरीबों पर इसलिए की गई होगी ताकि वे इलीट क्लास के लोगो में वायरस न फैला सके !
लौटते समय पीयरलेस अस्पताल के सामने से गुजरते हुए मैंने अंदर की तरफ डरी नजरों से देखा और बगल वाली फुटपाथ पकड़ ली।
फुटपाथ पर इक्के - दुक्के लोग ही नजर आये। पकौड़ी बेचने वाली 'लाली' पड़ नजर पड़ते ही उसके सामने रूक गई। आने जाने के क्रम में कई बार उससे गरमा गर्म पकौड़ी खरीद कर खाया था। इसलिए उससे कुछ पहचान हो गई थी।
लाली सर झूकाये हुए अपलक अपने बुझे हुए चुल्हे की तरफ देख रही थी।
लाली कैसी हो? पूछते हुए मेरी नजर उसकी पेट पर ठहर गई !
कितना महीना चल रहा है?
आठवा।
फिर उसने पूछा, हमरा मरद वापस लौट पाएगा न दीदी जी ? ऊ दिल्ली से पैदले अउर लोगोन के साथ आइ रहा है ! बड़ा फिकीर हो रहा है!
ओ माई गाॅड ! क्या कहा ? क्या पैदल आने वालों में तुम्हारा आदमी भी शामिल है? ?
उ का करता दीदी जी ! ओकरे पास कौनो उपाय नहीं था! एक हफता जैइसे तइसे कट गिया, मिस्त्री का काम था,
काम बंद हो गिया। मालिक बोला,यहाँ से सब चले जाओ, कोई मत रूको !
बीमारी फैल गया है ! सब अपने घरों में भाग रहे थे, उ अकेले कइसे रहता?
एक बार फोन आया था। कह रहा था, कोई गाड़ी -घोड़ा मिलेगा तो पकड़ लेंगे!
अब तो सारा दिन गुजर गिया, कौनो खबर नही आया ! बड़ी चिन्ता हो रही है दीदी जी ! बगल में उसकी बेटी उसके आँचल से खेल रही थी। करुण आवाज में उसने कहा,रोटी दो न माई ! भूख लगी है !
लाली, तुम घबराओ मत ! अंदर जा के आराम करो !
मैं घर लौट आई।यह सोचते हुए कि जो लोग रास्ते में हैं, पता नहीं वे घर लौट पाएँगे कि नहीं ! नहीं- नहीं मुझे अशुभ नहीं सोचना चाहिए !
घर आकर खाना बनाया, फिर खाने के लिए जैसे ही बैठी, लगा, लाली की बेटी कह रही हो, खाना दो ना ! भूख लगी है !
मुझसे खाया न गया, कुछ खाना पैक कर मैं लाली के एक कमरे वाली भोपड़ी में पहूँची।
लाली एक टुटी सी खटिया में अपनी उभरी हुई पेट लिए पसरी हुई थी। एक बुढ़ी औरत कोने में बैठी शुन्य में निहार रही थी। बच्ची शायद अपनी दादी की लाठी से खेल रही थी।
लाली ! मेरी आवाज सुनकर बच्ची ने अपनी बड़ी- बड़ी आखों से मेरी ओर देखा !
कुछ रुधें कंठ से खाने का पैकेट मैंने बच्ची को पकड़ाया।
लाली उठकर बैठ गई थी।
दीदी जी ! गाड़ी से उ लौट रहे हैं !
अच्छा ! गाड़ी मिल गया था !
जी दीदी! मुक्ति पाने के बाद ! लाली ने सपाट स्वर में कहा.
क्या मतलब ?
देखिए न दीदी, रास्ते में गाड़ी के लिए कितना छटपटाये होंगे ! मगर कुछ जुगाड़ न हुआ। जब मर गए तो तुरंत गाड़ी मिल गिया। पुलिस एम्बुलेंस में उ को भेज रही है !
सुना कि डाक्टर कह रहे थे कि उ को किडनी का कोई बीमारी था।
मैं बुत बनी सब सुनती रही।
दीदी ! उ को कौनो बीमारी नहीं था ! गरीबी ही गरीबन का सबसे बड़ा बीमारी है !
लाली अब क्या ?
दीदी जी, मौत हमरे इँहा उतनी डरावनी नहीं होती, जितनी आप के यहाँ !
ऊ का मौत पहले से ही लिखा हुआ था, इसलिए होना ही था। अब इनके तेरहवीं के लिए पइसा कहाँ से आवेगा ?
आगे और सुनने की शक्ति मुझमें नहीं थी !शुक्र था, किराए वाला पैसा मेरे पर्स में ही पड़े हुए थे ! मैंने दस हजार रुपये उसके हाथों में थमाते हुए कहा, अपने आप को संभालो ! तेरी बेटी की जिम्मेदारी मैं लेती हूँ।
अब लाली के आखों में आंसू थे, और वह जोरों से रोने लगी थी।
लौटते समय मैंने उस बुढ़ी औरत की ओर एक नजर देखा, वह अभी भी बुत बनी बैठी थी !
घर पहुंच कर देखा मकान मालिक दरवाजे पर ही खड़े हैं ! मैं उनसे कन्नी काटकर निकलने लगी थी !
उन्होंने टोकते हुए कहा, " बेटी किराया नहीं माँग रहा हूँ ! जब सहुलियत हो दे देना ! "
फोन में मेरे बेटे का नंबर जरा सेव कर देना, पता नहीं नंबर कैसे डिलीट हो गया है !
मेरी तो जान में जान आई !नंबर सेव कर मैं अपने कमरे में चली आई।
प्रिय डायरी, आज दिल में एक हल्का सा सुकून है, शायद किसी गरीब की दर्द की परवाह की है मैंने ! मगर नींद नहीं आ रही ! किसी ने ठीक ही कहा है------
अगर रातों को जागने से होती गमों में कमी तो मेरे दामन में खुशियों के अलावा कुछ भी न होता !