Rupa Bhattacharya

Others Inspirational

3.6  

Rupa Bhattacharya

Others Inspirational

कुछ दाग अच्छे होते हैं

कुछ दाग अच्छे होते हैं

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माँ... देखो मेरा रिजल्ट आ गया है। मैं प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुई हूँ ! मैं खुशी से चिल्लाई थी। बहुत- बहुत बधाई हो बेटी! तुम अब प्रोफेशनली क्वालिफाइड हो चुकी है। दामाद जी सुनेंगे तो खुश हो जाएंगे ! जी माँ, मैं फोन करने दौड़ पड़ी थी।

हैलो- - सुनो जी ! मैं प्रथम श्रेणी डिस्टिंगशन के साथ पास हुई हूँ।

ओह अच्छा है, मैं कल आ रहा हूँ, यहाँ माँ से काम नहीं होता है। तुम्हें लेता आऊँगा। जी।

मैं मायुस हो गई थी, इतनी फीकी रेस्पांस..

खैर, शायद फोन पर ज्यादा बोलना नहीं चाहते होंगे।

अभी शादी के मात्र चार महीने ही हुए थे। शादी के बाद "पहली सावन" मैं माँ के पास आयी हुई थी। उसी समय मुझे फाइनल रिजल्ट का भी पता चला था। मैं बहुत उत्साहित थी, "अब मैं भी जाॅब करूँगी! मेरा भी एक अलग परिचय होगा, घर-बाहर मैं दोनों संभाल लूंगी वगैरह- वगैरह।

अगले दिन "रोहित जी" आये और उनके साथ मैं ससुराल लौट आयी थी। घर में केवल सास ही थी। बीमारी की वजह से वह सारा दिन या तो बैठी रहती थी या सोई रहती थी। बहु के बाहर जाकर काम करने के नाम से ही वह खफा हो गई थी। मैंने नोटिस किया कि रोहित जी को भी मेरा जाॅब करना पसंद नहीं था। उनका कहना था, चुकी उनकी डयूटी का शेडूयल फिक्सड नहीं है, अतः मेरे कार्य पर जाने से समय पर नाश्ता, टिफ़िन, खाना सब चौपट हो जाएगा, मैं चुप रह गई। "घर में शांति थी।"


इस बीच "सुहाना " का पदार्पण मेरे जीवन में हुआ। कुछ समय के लिए मैं उसी में रम गई थी। थोड़े दिनों बाद सास भी चल बसी। घर-बाहर की सभी काम, रोहित को समय पर दफ़्तर भेजना, सुहाना की जिम्मेदारी सब मैं बखूबी निभा रही थी। परन्तु, मैं जब भी अलमारी खोलती, मुझे मेरे सर्टिफिकेटस नजर आते, ऐसा लगता मानो मेरी बड़ी- बड़ी डिग्रियाँ मुझे चिढ़ा रही हो, आँखों के कोर भींग जाते "मैं कुछ न कर पायी। "

रोहित से कहने पर वही घिसा-पिटा सा जवाब देते,"मेरी डयूटी का कोई समय निश्चित नही है, सुहाना का खयाल कौन रखेगा? एक बार मैंने कहा था, "क्यों न मैं सुहाना के स्कूल में ही काम करना शुरू कर दूँ ? हम दोनों एक साथ आना-जाना करेंगे।

मगर तुम्हें तो शनिवार को भी जाना पड़ेगा, जबकि सुहाना की उस दिन छुट्टी रहेगी, उसका क्या? रोहित ने कुछ तैश में आकर कहा।

एक दिन आप ध्यान रख लेना, उस दिन तो आपका भी ऑफ रहता है, मैंने भी कुछ जोर से कहा था।

पागल हो ? छुट्टी के दिन भी काम, मुझसे नहीं होगा ।

सुहाना कुछ बड़ी होगी तो जाॅब कर लेना। तुमने किसी अनपढ़ से शादी कर ली होती, मैंने जोर से चिल्लाकर कहा। घर की शांति भंग होने लगी थी। मगर रोहित जी से विरोध का साहस मुझ में कभी नहीं था।

माँ ने भी समझाया, "बेकार ये जाॅब - वाब का चक्कर छोड़, अपना परिवार ठीक से देख, बेटी की परवरिश सही से कर, और खबरदार "दामाद जी" के विरुद्ध मत जा। मैंने माँ की बातों की गाँठ बाँध ली। "घर में शांति रहने लगी।"

रोहित जी को केवल आँफिस में ही मन लगता। सुहाना किस कक्षा में पढ़ती है ? ये भी उन्हें पता न था, कभी टोकने पर कहते ," इतनी ऊँचाई तक पहुँचने के लिए कितनी मेहनत की आवश्यकता होती है, इसे तुम घर बैठे -बैठे नहीं समझोगी।" मैं चकित होकर उन्हें देखते रह जाती। अलमारी खोलकर अपने प्लास्टिक कवर में बंद 'सर्टिफिकेटस "को सहलाती, और मन ही मन सोचती, मैं तेरे कुछ काम न आ पायी !


समय बीतते देर नहीं लगती। सुहाना अच्छे नंबरों से पास कर गई और आगे की पढ़ाई के लिए बाहर चली गई। कुछ ही दिनों में नाते-रिश्तेदारों ने कहना शुरू कर दिया, "सारा दिन करती क्या हो ? घर में मन कैसे लगता है?"

एक दिन भाई का फोन आया, " तुम ने तो जीवन भर कुछ नहीं किया, अपनी बड़ी- बड़ी डिग्रीयाँ बर्बाद कर दी, मैंने तुम्हारी भाभी को एक स्कूल में ज्वाइन करवा दिया है।" एक दिन रोहित जी ने कहा, कुछ कोशिश क्यों नहीं करती? घर में बैठे- बैठे "कुएँ की मेढक हो गई हो।"

अब इतने वर्षों बाद फिर मैं जाॅब के लिए कोशिश करूँ?

क्या इस उम्र में मुझे जाॅब मिलेगा? मन में अनेक प्रकार के प्रश्न थे? मैंने आनलाइन फार्म भरा और साहस कर अपने सर्टिफिकेटस लेकर एक कम्पनी पहुंच गई। जाकर देखा इंटरव्यू के लिए लम्बी लाइन है, अधिकतर कम उम्र के फ्रेशर ही थे।

इंटरव्यू कक्ष में मुझसे पूछा गया, इससे पहले आपने कहाँ काम किया है? जी पारिवारिक परिस्थितियों के कारण मैंने पहले कहीं काम नहीं किया है, जवाब देते हुए मुझ में कुछ 'हीन भावना ' आ गई थी।

तो इतने वर्षों तक आप घर में थी। एक फ्रेशर के रूप में आपकी उम्र अधिक है, एवं आपके पास कोई अनुभव नहीं है, अतः हम आपको 'हायर' नहीं कर सकते।

मैं घर लौट आयी, अब परिस्थिति बदल चुकी थी, अनुभव के अभाव में मेरी डिग्रीयों का मोल घट गया था। कुछ और जगह मैंने कोशिश की पर नाकामयाब रही।

अंत में एक जगह और सही, सोचते हुए मैं एक कम्पनी जा पहुँचीं। यहां भी फ्रेशर की ही भीड़ अधिक थी।

यहाँ हमें कहा गया कि एक लिखित परीक्षा होगी, जिसके आधार पर नियुक्ति होगी। लिखित परीक्षा का फार्म भरते हुए मैंने सोचा कि ये मेरा अंतिम प्रयास होगा। लिखित परीक्षा के प्रश्नों का उत्तर मैं अपने सामान्य ज्ञान के आधार पर दिया।

रिजल्ट चार घंटे बाद निकलनी थी। मैं रिजल्ट के इंतजार में बैठी रही। मुझे पास होने की कुछ खास उम्मीद नहीं थी। मगर जब रिजल्ट आया तो तीसरा नाम मेरा ही था। मैंने अपने आप को "बधाई "दी और रोहित जी को फोन पर यह खुशी की खबर सुना दी। मगर पता नहीं क्यों मुझे उतनी खुशी नहीं थी। शायद मुझ में उत्साह की कमी थी।

अपना बैग उठाते वक्त देखा कि बगल में एक अभ्यर्थी की आँखें नम है। सांत्वना देने के उद्देश्य से मैंने कहा,"कोई बात नहीं, अगली बार जीत पक्की है।" लड़की रोने लगी थी। पता नहीं आंटी अगली बार दे पाऊंगी या नहीं, "क्यों ऐसा क्यों?" मैंने पूछा।

दरअसल अगले सप्ताह मेरी शादी होने वाली है। पता नहीं ससुराल वाले मुझे जाॅब करने देंगे या नहीं, अगर ये जाॅब मुझे मिल जाती तो वे मना नहीं कर पाते। मात्र एक नंबर से मैं पिछड़ गई। कोई बात नहीं, सब अच्छा होगा, कहकर मैं वहां से निकल आयी।

शाम को रोहित ने कहा, अब तो तुम्हारी जाॅब पक्की हो गई। नहीं, सेकेन्ड राउंड इंटरव्यू मैं पास न कर पायी, मेरी जगह एक फ्रेशर को ले लिया गया।

हाँ पता था, कुछ ऐसा ही होगा , "घर बैठे- बैठे तुम्हारी बुद्धि में भी जंग लग गई है।"

मुझे उनकी बातों का बुरा नहीं लगा, क्योंकि "कुछ दाग अच्छे होते हैं।" मेरे न करने से उसे फ्रेशर लड़की की नियुक्ति हो गई थी। अलमारी में सर्टिफिकेटस रखते हुए मैं मन ही मन मुस्कुरा रही थी। मैंने पहली बार अपनी मन की सुनी थी।



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