STORYMIRROR

Rupa Bhattacharya

Tragedy

4  

Rupa Bhattacharya

Tragedy

तृप्ति

तृप्ति

6 mins
395

सावन का महीना और रात का वक्त,आसमान पर काली घटाएँ छाई थी।अंधेरे का आलम यह था जैसे कभी रोशनी थी ही नही।अचानक बिजली कड़क उठती 'धनिया' के तीनों बच्चे उससे और चिपक जाते।चारो ओर डरावनी खामोशी थी।बीच-बीच में मेढ़कों की आवाजें

खामोशी तोड़ देती।

तभी धनिया का 'छुटकू' बोल पड़ा- "अम्मा !रोटी दो न, भूख लगी है।" बड़ी बिटिया 'बुधनी," जो बारह वर्ष के करीब रही होगी, बोल पड़ी--‐"छुटकू ! रूक जा ,बारिश थमेगी तभी तो अम्मा आटा लाने बाहर जा सकेगी।"

"हे भगवान !आज रात बारिश को मत रोकना ! अब तो वह दुकानदार उधारी देने से रहा , सौ रुपए का कर्जा जो हो गया है ! शाम को जब आटा मांगने गई थी तो कितनी गंदी नजरों से वह मरदूद उसे घूर रहा था ।

कांपती हुई नजरें झुकाकर धनिया ने कहा,था "हुजूर कुछ आटा दे दो, बच्चे दो दिनों से भूखे पड़े हैं"।

"तेरे बच्चों का ठेका मैंने तो लिया नही है ! और न ही यहां खैरात बँटते है । पहले पैसे चुका, फिर आटा ले जाना_----। जा , सामने से हट जा , दुकान मे हवा आने दे____।"


आह ! अभागी मैं , पूर्व जनम के कर्मो के फल से आज ये दिन दिखाए कि अपमानित होकर भी आंखों सेआंसू नही टपकते हैं । खुद के किस्मत को कोसती हुई धनिया अपनी खंडरनुमा घर में चली आई थी।हाथ में खाली झोला देखकर बच्चों का चेहरा लटक गया था।

"अम्मा ! कुछ खाना नही लाई ??" धनिया फट पड़ी , "हरामजादो ! क्या हर समय खाना _खाना रटते रहते हो !सुअर के बच्चे ! रोटी क्या पेड़ पर उगते हैं जो मैं तोड़कर ले आऊँ?

तोहार बाप क्या खजाना छोड़कर गया है ? साला मर के आराम फरमा रहा होगा और इन जी के जंजालो को मै झेल रही हूँ-----।" तीनो बच्चे सहमकर एक कोने में दुबक गये,वैसे मां का यह रूप नया नही था।

महीने भर पहले उनकी यह दशा नही थी।धनिया का मर्द 'बजरंगी' अपने नाम के अनुरूप एक गठीला जवान था । वह कारखाने में सुरक्षा गार्ड की नौकरी करता था। उनके दिन सहुलियत से गुजर रहे थे। फिर एक दिन शराब ने बजरंगी का जीवन लील लिया। रात में पीकर आया था। कुछ देर बाद पेट मे दर्द होने लगा।दर्द बढता ही गया। दर्द से बेचैन होकर कभी पेट को दबाता, कभी बैठ जाता। उसने जोर-जोर से कराहानाऔर रोना शुरू किया। धनिया कुछ कर पाती, इससे पहले ही उसने जमीन पर तड़प-तड़प कर प्राण त्याग दिया।

अभागिन धनिया का घर उजड़चुका था अब उनका निर्वाह कैसे होगा ? काफी दौड़-धूप कर उसने कारख़ाने के मालिक 'श्याम किशोर ' के बंगले मे साफ-सफाई का काम शुरू किया । अब उसकी ज़िन्दगी फिर से पटरी पर आने लगी थी कि अचानक इस महामारी ने सबकुछ सत्यानाश करके रख दिया। 

सेठानी ने धनिया की काम पर आने से मना कर दिया था। थोड़े ही दिनो मे घर में रखे अन्न समाप्त हो गए और दुकानदार ने भी उधारी देने से मना कर दिया ।

दो दिन फाकाकशी में बीत गए। आज भी सुबह से बच्चों का पेट में अन्न का एक दाना भी नहीं गया था। 

"अम्मा ,कुछ खाने को दे दो-----"।

सन्नाटे को चीरते हुए छुटकू ने धनिया की खुशामद की।उसने छुटकू के सिर पर ममता से हाथ फेरा, पर स्नेह मात्र से कहां बुझती है, क्षुधा की आग ! धनिया उठकर कच्ची लकड़ी जलाने लगी और उस पर पानी से भरा भगोना चढ़ा दिया ।

"क्या बनाओगी अम्मा, भात ?" मंझला ,जो की सो रहा था उछलकर बैठते हुए बोलाकच्ची लकड़ी के धुएं से सारा घर भर गया था । भगोने में रखा पानी खोलने लगा था ,मगर धनिया उसमे डालेगी क्या ? उसकी आंखो से गिरने वाले आंसू भगोने के पानी के साथ वाष्पित होते चले गए। 

जैसे ही भगोने में रखा पानी सुखने लगता, वह उसमें और पानी डाल देती।भात के इंतजार मे बच्चे सो गए फिर बचे हुए पानी को उड़ेलकर वह भी पस्त  होकर सो गई।बाहर बारिश थम गई थी, पर मेढ़को का टर्राना जारी था।

पौ फटते ही कुछ आशा लेकर धनिया सेठानी के बंगले में पहुँची ।वहाँ भी सन्नाटा छाया हुआ था। बरामदे में सेठानी गंभीर मुद्रा मे बैठी थी। 'मथुरा' जो बंगले का हलवाई था,ने फुसफुसाते हुए कहा ," बड़ी मालकिन को दिल का दौड़ा पड़ा है और डाक्टर साहब उन्हे देख रहे है "। धनिया पेशोपेश में पड़ गई कि ऐसी स्थिति में वह सेठानी से मदद के लिए क्या कहे ? तभी सेठानी की नजर उसपर पड़ी और वह बोल पड़ी--- "अरे धनिया तू कहाँ गायब हो गई थी" ? 

मालकिन आपने आने -------"सुन धनिया", सेठानी ने उसकी बात काटते हुए कहा,"मांजी अपनी अंतिम सांसे गिन रही है।मालूम होता है बचेगी नही। तु अभी यहीं रूक, घर धो-धाकर ही जाना"।

तभी श्याम किशोर जी कमरे से निकल आए, "माँ नही रही"।

'मांजी------' चिल्लाते हुए सेठानी कमरे की ओर दौड़ी और दहाड़े मारकर रोने लगी।फिर तो धनिया को सांस लेने की फुर्सत नही रही।लोगो कि आने का सिलसिला देर तक चलत रहा।

पार्थिव शरीर को ले जाने के पश्चात सारे घर की सफाई, धुलाई कर वह घर जाने के लिए बेचैन हो गयी।

सेठानी से एक बार बोलना भी चाहा था। अश्रु भरे आंखो से कहा----, "मेमसाहब , बड़ी विपत्ति में हूँ----।

"हाँ धनिया, आसूं पोछ ले, जानती हूँ , तू मांजी से बहुत प्यार करती थी । चली गई अच्छा हुआ । जाने वाले को कौन रोक सकता है ! सुन , आज तो हमारा' छुतका' लगा है ।घर के चूल्हे में बना खाना हम नही खाएंगे ।मथुरा ने तो सुबह ही खाना पका दिया था । तु सारा खाना ले जाकर तालाब मे बहा दे। "

धनिया ने रसोई मे जाकर देखा।चमकदार रसोई में अलग -अलग भगोने में खाना करीने से ढका रखा था।वह एक-एक कर भगोना उठाकर देखती गई--लंबे -लबें दाने वाले बासमती चावल के बने झक-झक सफेद भात ,गाढ़ी मलाईदार पनीर की सब्जी , रायता , हीग की छौंक वाले अरहर की दाल , पूड़ी , काजू-किशमिश वाली चटनी, और इलायची की खुशबू से सराबोर गाढ़ी खीर । 

हे भगवान ! ये अमीर लोग क्या दावत वाले पकवान रोज खाते हैं ? क्या करूँ ? इन्हे घर ले जाऊँ ? मगर ये तो 'छुतका' वाला खाना है-------।

 सारा भोजन अपने झोले में डाल कर धनिया तेज कदमो से अपने घर की ओर चल पड़ी।बच्चे दो दिनो से भूखे है, मुझे शीघ्र घर पहुंचना है।घर पहुंचता ही धनिया ने झोला खोलते हुए कहा, " देखो बच्चो , तुम्हारे लिए क्या- क्या लाई हू ! आ छुटकू, खाना खा ले !"

"अम्मा, देखो न ,छुटकू तो कब से उठ ही नही रहा है---‐-,"बुधिया ने रोआंसे भरी आवाज मे कहा ।

धनिया का दिल तेजी से धड़का , उसने देखा छुटकू की आखें उल्टी हुई थी और शरीर ठंडा पर चुका था।वह हमेशा के लिए सो चुका था इस स्वप्न को देखते हुए कि उसकी माँ उसे 'भात' खाने देगी।

धनिया के हाथ से झोला गिर पड़ा और मलाईदार पनीर, रायता , सब बिखर गए ।धनिया गला फाड़कर चिल्लाई----" छुटकू, उठ खाना खा ले, ले 'भात' खा तेरे लिए भात लाई हूँ-- मगर उसका छुटकू तो संसार के बंधनों से मुक्त हो चुका था। अब उसे भात की आवश्यकता नही थी।

रोते - रहते धनिया बेसुध हो गई। उसने दैखा मंझला जमीन पर गिरे हुए पनीर को बटोरकर खा रहा था।

पूरा घर पकवान की खुशबू से भरा हुआ था। धनिया अपने स्थान से उठी और बाकी बचेहुए भोजन को खाने लगी।तीनों ने जी भर के खाया, भरपेट भोजन किया। उनकी क्षुधा तृप्त हो चुकी थी।

मंदिर की सैकड़ो सीढ़ियां चढ़ने के पश्चात ईश्वर का दर्शन पाकर मन मे जो तृप्ति की अनुभूति हो ती है, कुछ वैसी ही तृप्ति धनिया के चेहरे से झलक रही थी। 


खाना खाकर उसने बची हुई पूड़ियों को उठाकर बाहर एक कुत्ते के सामने डाल दिया जो खड़ा इनकी ओर भूखी आंखो से ताक रहा था धनिया ने देने के इस गौरव और आनंद की जीवन में पहली बार अनुभव किया।उसने अपने दोनो बच्चों को अपने साथ चिपका लिया, मानो कह रही हो---

" मुश्किलों हमसे और उलझा न करो,

हमे हर हाल में जीना आता है।"


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Tragedy