Rupa Bhattacharya

Others

4.3  

Rupa Bhattacharya

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फ्री हेल्थ चेकअप

फ्री हेल्थ चेकअप

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हमारे पति महोदय के डिपार्टमेन्ट के तरफ से फूल बाॅडी चेकअप का आयोजन किया गया था। सुबह खाली पेट "फ्री" बाॅडी चेकअप के लिए जाना था। जाने का बिल्कुल दिल न था। शरीर में जब तक कोई तकलीफ़ न हो, हम डाक्टर के पास जाना नहीं चाहते , मगर "फ्री" का लालच भी था !

रात में ही साहब ने चेतावनी दे दी थी , "सुबह जल्दी तैयार होना, चाय भी न पी सकूँगा ! जितनी जल्दी निपट जाये, उतनी जल्दी कम से कम चाय तो पी लूँगा।

मैं मुस्कुरा पड़ी "हाय ! कल सुबह एक प्याली चाय के लिए कितने लोग तड़पेंगे । "

सुबह हमलोग वहां के लिए जल्दी ही निकले। सुबह का समय, महानगर की सड़कों में आपाधापी नहीं थी। प्रायः सभी दुकानें बंद थी। कुछ चाय के स्टाल ही खुले थे। उधर देखो,

क्या ? महोदय ने पूछा

चाय से धुआँ निकल रही है।

साहब चाय लाऊँ, ड्राइवर ने कुछ न समझते हुए कहा।

तुम गाड़ी चलाओ और जल्दी पहुंचो, रूके क्यों हो ? साहब ने कुछ तेज आवाज़ में कहा।

"साहब जी" गाड़ी तो सिगनल में खड़ी है, मैंने मुस्कराते हुए जवाब दिया ।

कुछ पैसे दे दो, भूख लगी है, ब्रेड ख़रीद कर खाऊँगा। एक बच्चा खिड़की के बाहर हाथ फैलाकर माँगना शुरू कर दिया, मैं पर्स से उसे पैसे देने ही वाली थी कि बत्ती हरी हो गई और गाड़ी सरपट आगे निकल गई।

पति देव ने तंज कसा ," कहो तो गाड़ी घुमाने के लिए बोलूँ ,चंद सिक्के तुम्हारे हाथ में ही रह गये।

कुछ ही क्षणों में हम अपने गंतव्य पहुंच गए। जाकर देखा भीड़ काफी था। एक बड़ा हाॅल था, जिसे दुल्हन की तरह सजाया गया था। उसे अलग- अलग खेमों में बाँटा गया था, प्रत्येक खेमे में अपने- अपने क्षेत्र के" विशेषज्ञ डाक्टर" विराजमान थे।

पहुँचते ही श्रीमती कृष्णा मेरे कानों में फुसफुसाई "ये क्या, थीम के अनुसार कपड़े नहीं पहनी ? साॅरी, मैंने तत्परता से माफी माँग ली। वैसे,क्या पहनना था ?

"सफेद के साथ कोई चटकीला रंग " कहकर गोल-गोल आँखों से मेरी ओर देखते हुए वह आगे बढ़ गई। मैं मुस्कुरा कर लम्बी लाइन के पीछे खड़ी हो गई।

सबसे ज्यादा भीड़ डायबिटीज वाले खेमे में थी, क्योंकि "डायबीटिज " की जांच खाली पेट ही कराना था, एवं जांच के बाद सब खाने -पीने के लिए आज़ाद थे।

ऊपरी तल्ले पर जलपान की व्यवस्था थी। एक कोने मे रंग बिरंगे फूलों से सजी हुई " फ्रूट जूस एवं चाय-काफी" का स्टाल था।

खून जांच के बाद लोग जीते हुए योद्धा की तरह चेहरा लेकर फ्रूट सलाद और जूस आदि पर टूट पड़ रहे थे। कुछ एक तो पानी की तरह ग्लास पर ग्लास जूस गटक रहे थे।

लाइन में खड़े लोग पिजंरे में कैद पंछी की तरह फड़फड़ा रहे थे।

मैंने कनखियों से देखा, चौधरी साहब गटागट पूरी जूस एक ही बार में पी गये! देखा, थोड़ी सी मूछों पर भी लग गई थी। जीभ ऊपर तक निकाल कर मूंछों पर फिराया और मूंछ साफ-'।


साहब जी मेरे पास आकर बोले, तुम अभी तक खड़ी हो? मैंने तो जांच के बाद " चाय " भी पी ली।

बधाई हो ! मैंने मुस्कराते हुए कहा।

खून जांच के बाद अतिशय भीड़ के कारण मेरे पग "जूस सेंटर " की ओर नहीं बढ़े, और मैं ब्लड प्रेशर जांच की ओर मुड़ गयी। ब्लड प्रेशर मेरा 140 ओवर 80 आया ।

डाक्टर ने चेतावनी दी ! खबरदार! हाईपरटेंशन की शुरुआत हो चुकी है, नमक खाना छोड़ दें! कच्चा नमक बिल्कुल न ले।

मैंने थोड़ा मायूस होते हुए कहा, " डाक्टर साहब मैं तो कच्चा नमक बिल्कुल नहीं खाती हूँ, क्या वजन कम करने से फायदा होगा?

नहीं, प्रेशर मशीन ख़रीद ले और उससे रोज़ प्रेशर चेक करें, उससे ब्लड प्रेशर कम होगा।

लेकिन डाक्टर साहब--'' कुछ जिज्ञासा शांत करती, कि पति देव पर नजर पड़ी, जो बगल में बैठे हुए आँखों ही आँखों में बोल पड़े " बेवकूफ एक डाक्टर से जिरह करोगी ? मैंने सकपकाते हुए नज़रें झुका ली।


मैं अपनी B.M.D टेस्ट का रिपोर्ट लेकर हड्डी रोग विशेषज्ञ के पास पहुँचीं। देखा डाक्टर साहब जूस पीते हुए फोन पर किसी बात पर खिलखिला कर हँस रहे थे। दस मिनट बाद उनका खिलखिलाना कम हुआ और उन्होंने फोन रखा। मैंने अपनी रिपोर्ट उन्हें सौंप दी। अरे वाह ! रिपोर्ट तो काफी बढ़िया है, आपकी हड्डी तो काफी मजबूत है ! लगता है पनीर वगैरह खूब खाती होंगी ! मगर डाक्टर साहब ! मेरे हाथों में आजकल प्रायः दर्द रहते हैं, कपड़ें निचोड़ने में बहुत तकलीफ़ होती है ! डाक्टर फिर से खिलखिला पड़ें, बोले- कोई बात नहीं, कपड़े निचोड़ना बंद कर दे।

धन्यवाद । कहकर मैं वहां से निकल गई। पीछे मुड़कर देखा, डाक्टर साहब फोन पर फिर से खिलखिलाने लगे थे।

अब तक मेरे पेट में भी चूहे दौड़ने लगे थे। जहां भोजन की व्यवस्था थी , वहां जाकर देखा तो अधिकांश लोग भारी जलपान कर डकार लेते हुए निकल रहे थे। मधुबाला जी "फायर पान" खाती हुई सेल्फी ले रही थी।

अरे निविदा! कितनी देर कर दी तूने ! मिसेज तिवारी ने मुझे टोका ।

मैडम आपने जलपान कर लिया ?

अरे हाँ, थोड़ा ही किया, फिर सूप पी रही हूँ ! अभी तो मैं डायटिंग पर हूँ। मैं खीसें निपोरती हुई खाने -पीने की समानों में नज़रे दौड़ाने लगी। जलपान की काफी भारी व्यवस्था थी-----

डोसा, इडली, सांभर, उपमा, समोसा, पिज़्ज़ा, चाट, दही बड़ा, कचौड़ी, छोले , रसगुल्ले, गुलाब जामुन ,बेक्ड मिठाई ,और भी न जाने क्या क्या !

पति देव ने अपनी प्लेट भर लिया था- चार-छह कचौड़ियाँ,

दो-चार इडली और ऊपर से एक आमलेट, क्या कम्बीनेसन था ! ! खैर मेरा मन भी गरमा-गर्म जलेबियों पर जा अटका , रस से सराबोर 'केसरी जलेबी।' मैंने दो गटके ही थे कि--" कुछ पैसे दे दो न, भूख लगी ---" सुबह का वह बच्चा याद आ गया। मन कसैला हो गया , मैं वहां से बाहर निकल आयी।

कुछ देर बाद महोदय जी भी आ गये, कहा- -तुम ने खाया नही?? इतनी जल्दी निकल गई !

मैंने कुछ रोष प्रकट करते हुए कहा ,"सुनो ! दो-चार घंटे भूखे रहकर खाने पर इस तरह से टूट पड़ते हो , सोचो फुटपाथ पर रहने वाले उन लोगों की दशा ,जिन्हें एक वक्त का खाना भी नसीब नहीं होता।

यहाँ इतना ढेरों खाने का अगर एक अंश भी उन्हें दे दिया जाता तो--।

तो क्या???

तो वह जलेबी मेरे गले की फांस नहीं बनती ! लगता है तुम्हें "मेंटल हेल्थ चेकअप "की भी आवश्यकता है। पति देव ने आगे बढ़ते हुए कहा ।

गेट के पास फिर मैं श्रीमती कृष्णा के गिरफ्त में आ गई।

सुनो निविदा ! तीज में आ रही हो न? हमारी थीम पार्टी होगी "ग्रीन - इंडो -वेस्ट ", समझी?

मैं मुस्कुरा कर" न" में सिर हिलाया और आगे बढ़ गई। कानों में सुनाई पड़ा, ढोंगी कहीं की।


घर आकर देखा तो उन गाढ़ी मिठास वाली जलेबी खाकर जीभ बुरी तरह से छिल गये थे। हे प्रभु , मेरी लालच कुछ कम कर, रात को महोदय जी ने पूछा, "तीज पार्टी में जा रही हो न?? मुझे सुनाई नहीं दिया, मैं गाढ़ी नींद सो चुकी थी।

अगले दिन से मैंने खाने पर "कुछ" कंट्रोल किया और सुबह- शाम टहलने लगी। एक महीने बाद वजन में मैंने मात्र छटाक भर की कमी की ! कोई बात नहीं, कोशिश जारी रहेगी।



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