Gulafshan Neyaz

Abstract

4.7  

Gulafshan Neyaz

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झुमकी

झुमकी

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झुमरी जैसा नाम वैसे ही अंदाज़ मदमस्त बेफिक्र जैसे उसे कोई फ़िक्र या परवाह ही ना हो। हमेसा खुद मे मस्त शक्ल सूरत आम थी

ऐसा कुछ तो नहीं था उसके चेहरे मे जो उसे ख़ास बनाये पर कुछ तो खास था उसके चेहरे पर एक अजीब सी मासूमियत जो एक बार देखता वो दुबारा जरूर मूर कर देखता।

ज़ब देखो हस्ती रहती। उसकी बाते उसके अंदाज़ अलग थे अगर उसको थोड़ा सही मौहोल मिलता तो पक्का नेता या गाँव की मुखिया बनती छोटे से गाँव मे रहने के बाद भी उसकी सोच उसे इस गाँव के लोगो से अलग बनाती ऐसा लगता जैसे पंख लगा कर उड़ना चाहती हो।

पढ़ने की अथाह चाह थी उसे कुछ बनाना चाहती थी गाँव के लिए कुछ करना चाहती

अपने माँ बाप की तरह दिहाड़ी मजदूर बनना नहीं चाहती। उसे सबसे जायदा लगाओ अपने बापू से था। वो चाहती के वो पढ़ लिख कर अपने बापू का नाम रोशन करे।

अरे वो झुमरी जरा खेत मे कमेनी कर देना कल।

झुमरी, नहीं काकी कल मेरा मेरी परीक्षा है। मुझे कल सुबह सुबह स्कूल जाना है

काकी, रे झुमरिया ऐ पढ़ाई कर के तू कोई कलेक्टर ना बन जेएबे काम करेगी तो कम से कम दिहाड़ी मिलेगा और घर चलेगा। झुमरी कुछ बोलने के लिए मुँह खोला तो माँ ने हाथ पकड़ लिया और घर की तरफ खिंच लिया माई तुमने मुझे बोलने क्यों नहीं दिया। बिटया हर बात का जवाब देना जरूरी नहीं है। कुछ बातो का जवाब वक़्त होता है।

गाँव की कुछ औरते झुमरी के पढ़ाई से चिढ़ती और तरह तरह के कमैंट्स करती लगता है। पढ़ के डॉक्टरनी बनेगी। घर पर छपड़ नहीं पाओ मे चप्पल नहीं खाव्ब तो देखो छोरी के पर अब झुमरी को इन बातो से फर्क नहीं परता अब उसे आदत सी हो गई थी इन बातों की।

यही ताने उसके हिम्मत और लगन को मजबूत करते आज मेट्रिक का रिजल्ट आया था। झुमरी ने अपने स्कूल मे टॉप किया।

आज तो झुमरी के बापू की खुशी का ठिकाना ही नहीं था।

अब इस से झुमरी को और हिम्मत मिली। पहले जो लोग झुमरी की शिकायत करते है आज वही लोग उसकी तारीफ कर रहे थे। गाँव मे दसवीं तक का ही स्कूल था। कॉलेज गाँव से बहुत दूर था। जिसके लिए झुमरी के पिता त्यार नहीं थे। पर झुमरी ने हार नहीं मानी और अपने पिता को राज़ी कर लिया। कॉलेज जाने के रास्ते पर एक चौराहा था। जँहा पर एक पान की दुकान थी।

उस दुकान पर कुछ लफंगे खड़े होकर बीड़ी सिगरेट पान लेते रहते। पान की दुकान पर भोजपुरी गाना बजत रहता और लफंगे आते जाते लड़कियों पर फब्तियां कसते।

झुमकी को तो पहले बहुत डर लगता पर धीरे धीरे उसे इन सब की आदत सी हो गई। उसका सारा ध्यान अपने पढ़ाई पर था। झुमकी के क्लास मे एक लड़का था जुगनू जो झुमकी को चोरी चोरी देखा करता।

झुमकी ये सब भाप चुकी थी

वैसे भी लड़की का दिमाग़ इन सब मामलो मे काफ़ी तेज़ होता है। की उन्हें कौन कैसी निगाह से देख रहा है अक्सर दोनों की नज़रे टकराती पर झुमकी जल्दी से अपनी नज़र फेर लेती। अक्सर उनदोनो का अब कलास मे आँख मिचोली चलती।

जुगनू झुमकी से बात करने की कोशिश करता तो झुमकी जल्दी से क्लास से निकल जाती या कोई बहाना बना कर उस से बच निकलती।

ऐसा नहीं था। की वो जुगनू को पसंद नहीं दिल ही दिल वो भी उस से बहुत प्यार करती थी। पर उसे गाँव का नियम पता था। गाँव मे प्यार की सजा क्या है।

ये बात गाँव मे पता चल गई तो क्या होगा उस के बापू की इज्जत क्या रह जायेगी वो किसी को मुँह दिखाने के लायक नहीं रहेगी। कितनी मुश्किल से तो बापू ने उसे पढ़ने की इज्जाजत दी है। वो अपने सपने को पूरा करेंगी वो प्यार के चक्कर मे नहीं पर सकती यही सोच कर वो खुद को तस्सली देती। और खुद को पढ़ने मे वयस्त कर लेती। पर कंही ना कंही ये बाबरा मन जुगनू के बारे मे सोचने पर मजबूर हो ही जाता पर जैसे ही मन मे बापू का ख्याल आता।

वो अपने सपनो से बाहर आ जाती। आखिर वो अपने दिल के जज़्बात को कब तक छिपाती जो दिल मे जुगनू के लिए प्यार भरा था। वो बाहर आ ही गया। अब दोनों एक दूसरे को देख कर मुस्कुरा ही देते आँखों ही आँखों मे बात होती। अब तो झुमकी की सहेलिया ज़ब जुगनू का नाम लेकर चिढ़ाती तो झुमकी की आँखे शर्म से झुक जाती और गाल पर सुर्खिया आ जाती।

जो झुमकी साजो सज्जा से दूर रहती थी। चढ़ती उम्र के इश्क़ ने उसके चाल बदल दिए। अब उसे सजना सावरना अच्छा लगता। जो झुमकी के माँ के मन मे भी प्रश्न चिह दिया। झुमकी और जुगनू कॉलेज के पीछे आम के बगीचे मे एक दूसरे का हाथ पकड़े दुनिया से बेफिक्र बैठे थे।

झुमकी अब कुछ दिनों मे बारहवीं की परीक्षा हो जायेगी अब हम दोनों नहीं मिल पायेंगे। मे आगे की पढ़ाई के लिए शहर चला जाऊंगा तुम मेरा इंतजार करना। ज़ब मे पढ़ लिख के बड़ा आदमी बन जाऊंगा तो तुम्हारे बापू से तुम्हारा हाथ मांग लूंगा जुगनू ने झुमकी के आँखों मे झाकते होये बड़ी मासूमियत से कहा तो झुमकी हस पड़ी

अच्छा जुगनू बाबू तो आप अभी छोटे है। जुगनू नाराज़ होते होये बोला तुम हमेशा मज़ाक लगता है। मे तुमसे दिल की बात कर रहा हु और तुम्हे मज़ाक

अरे नहीं बाबा ऐसा बिलकुल नहीं झुमकी थोड़ा सीरियस होते होय बोली जुगनू मे तुमसे बहुत प्यार करती हु। पर मुझे बहुत डर लगता है कंही बाबू को पता चल गया तो सब गरबर हो जैईगा मैं पढ़ना चाहती हु अपने गाँव के लड़कियों के लिए कुछ करना चाहती हूँ। मेरे कुछ ख्वाब है

जुगनू। अच्छा मैं उस ख्वाब में हूँ या नहीं झुमकी। वो ख्वाब हम दोनों ही तो मिल कर पूरा करेंगे। अपने गाँव के लड़कियों के लिए एक साथ तभियात पान की दुकान वाले कुछ लफंगे वंहा पहुँच गए। अरे ये देखो यही पढ़ाई हो रही है छोड़े और छोडिया आम के बगीचे मे बैठ कर स्पेशल पढ़ाई कर रही है। पूरे लफंगों ने मिल कर पूरा कॉलेज को जमा कर लिया देखते देखते हर तरह इसी बात के चर्चे होने लगे। झुमकी और जुगनू के पैरो से जमीन खिसक गया। बात गाँव तक पहुँच गई। गाँव मे पंचायत बुलये गई। झुमकी के बापू और झुमकी सर झुकाये खड़े थे ऐसा लग रहा था जैसे झुमकी ने किसी का खून कर दिया हो। औरते आपस मे काना फुसी कर रही थी। देखो बड़ा पढ़ने वाली बनती थी। यही पढ़ाई था। हूँ यही पढ़ाई करती थी

गाँव का तुकलगी फरमान जारी होवा। झुमकी ने जो किया उस से गाँव के लड़कियों पर गलत असर पड़ेगा। इसलिए आज से झुमकी की पढ़ाई बंद कर दी जाय और उसका अच्छा लड़का देख जल्दी से शादी कर दी जाय। झुमकी के पाओ के निचे से जमीन खिसक गए वो सरपंच के कदमो मे गिर गए कृपा मुझे एग्जाम देने दे इतनी छोटी सी गलती की इतनी बड़ी सजा नहीं तभी एक औरत बोली कितनी बेशर्म लड़की है। पुरे गाँव का मुँह काला कर फिर से पढ़ाई की दुहाई झुमरी रोती गिरगिराती रही। पर गाँव के पांचो पर कोई फर्क नहीं परा

रात मे झुमरी बैठी रो रही थी। अचानक बहुत तेज़ अंधी और तूफान आया। उसके फुस के छप्पर से पानी टपक कर उसके किताबों को भिगो रहा था। झुमकी अपने आँखों के सामने अपने सपनो को भीगते होये देख रही थी। अचानक उस के बदन मे बिजली के करंट सा दौरा और उसने किताबों को उठा लिया और अपने दुप्पटा से साफ करने लगी।

झुमरी के लाख गिर गिराने और रोने से कुछ नहीं होवा। कुछ दिनों के बाद उसकी शादी बगल के गाँव मे मनोज संग कर दी गई। जुगनू के सामने से अपने मासूम जुगनू का चेहरा घूम गया झुमरी चाह कर भी कुछ नहीं कर पाई। शादी के पहली रात ही रात मनोज शराब के नशे मे झूमते हॉय आया और उसके नाजुक जिस्म पर भूके भेड़िया की तरह टूट परा। ज़ब तक वो बेहोश ना हो गई। उसके जिस्म को नोचता रहा।

मनोज अक्सर शराब के नशे मे टुन रहता। झुमकी उसे बहुत समझाती पर उस पर कोई असर ही नहीं होता अब झुमकी को घर और बाहर दोनों के काम करने पड़ते ऊपर से सास ननद के ताने।

अब तो मनोज झुमकी से शराब के पैसा भी मांगता इंकार करने पर मार पिट करता। वक़्त गुजरता चला गया झुमकी दो बच्चो की माँ बन गई एक बेटा जो चार् साल का गोद मे छह महीने की बेटी।

अब झुमकी की हालत और दयनीय हो गई उसे लगा था सयैद बाल बच्चे होने पर सुधर जाय पर सब उल्टा हो गया। अब तो वो जुहा भी खेलता झुमकी दिन भर बैल की तरह खटती और वो मार पिट कर सारे पैसो का शराब पी जाता।

एक दिन तो हद ही हो गई। दिवाली का दिन था। मनोज जुहा खेलने बैठा और शराब के नशे मे खेलता ही रहा। और झुमकी को जुहे मे हार बैठा। उसके चार लफंगे दोस्त झुमकी के पीछे हाथ धो कर पीछे पर गए। झुमकी ने किसी तरह खुद को बचाया आस पड़ोस के लोग जमा हो गए। झुमकी रात भर सोचती रही अचानक उसे कँहा से हिम्मत आये उसने बेटे का हाथ पकड़ा और बेटी को गोद मे उठाया। दरवाजे पर मनोज खर्राटे मार कर सो रहा था। जैसे कुछ होवा ही ना हो। झुमकी चुपके से बच्चो के साथ घर से निकल गई और तेज़ तेज़ कदमो से बस स्टेशन का रुख किया। और शहर चली गई। वंहा उसके मामा का लड़का रहता है। उसी के यंहा कुछ दिन रहेगी फिर वो उसे काम लगा देगा। वो कोई भी काम करेगी झाड़ू पोछा बर्तन पर अपने बच्चो को पढियेगी। एक औरत हार सकती है पर माँ नहीं यही सब सोच कर उसने मजबूत इरादों के साथ वो रेल मे बैठ गई। मंज़िल दूर थी पर हिम्मत चट्टानों से मजबूत।


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