झीलों का पुनर्जीवन

झीलों का पुनर्जीवन

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"बच्चो, आज मैं आपका परिचय करवाउंगा आनंद मल्लिगावाद से जिन्होंने बेंगलुरु की पहली फ्रीडम लेक कयालासनाहल्ली झील को अतिक्रमण से मुक्त कर नया आयाम दे दिया। उन्होंने बेंगलुरु की करीब 130 लेक कम्युनिटी को तकनीकी सहयोग देकर झीलों को जीवनदान दिया है। वे जलामृत नामक कम्युनिटी की तकनीकी कमेटी में भी शामिल हैं।"

"चाचा जी विस्तार से बताएं कि यह झील कितनी विशाल थी और किस तरह से इसे पुनर्जीवित किया गया?"कस्तूरी ने पूछा।

"कयालासनाहल्ली झील छत्तीस एकड में फैली एक विशाल झील थी।जिसके एक हिस्से पर किसानों का अतिक्रमण था और शेष भूमि पर उद्योगों का डंपिंग ग्राउंड।और यह देखकर उन्होंने अपनी कंपनी के वरिष्ठ अधिकारियों के आगे इस झील को साफ करने में मदद देने का प्रस्ताव रखा। वे राज़ी हो गए।सनसेरा फाउंडेशन ने भी 17 लाख रुपए की आर्थिक मदद दी।इसके साथ ही झील विकास प्राधिकरण समेत अन्य सरकारी अधिकारियों ने सहयोग दिया और इस तरह झील के पुनरुद्धार का काम शुरू हुआ।"

"क्या यह कार्य इतना सहज और सरल है कि इसे कोई भी कर सकता है?"यश ने पूछा।

 "नहीं, बिल्कुल नहीं, इनके लिए भी यह काम आसान नहीं था क्योंकि वे झीलों की बायोडायवर्सिटी, इकोलॉजी, हाइड्रोलॉजी जैसी किसी चीज़ के बारे में नहीं जानते थे। उन्होंने एक साल शोध व अध्ययन किया। 180 से अधिक झीलों का दौरा व निरीक्षण किया और उसके बाद अप्रैल 2017 में इस झील पर काम करना शुरू किया।"

"यह कार्य काफी कठिन होता होगा! इस कार्य को करने में कितने चरण पार करने पड़ते हैं, चाचा जी?" कमल ने पूछा।

"बिल्कुल,यहां उन्होंने 23 फीट पानी रोकने के लिए जगह बनाई और साढे 3 किलोमीटर लंबा बांध बनाया। जो मिट्टी निकाली, उससे पांच द्वीप बनाए और मियावाकी तकनीक से 5600 पौधे लगाए। दक्षिण भारत में सबसे बड़ा मियावाकी जंगल इसी झील में है।"

"ये मियावकी तकनीक क्या है,चाचाजी ?"मनोज ने पूछा।

"इस तकनीक में पौधों को एक दूसरे से बहुत कम दूरी पर लगाया जाता है, जिससे पेड़ बहुत पास-पास उगते हैं और इसके चलते सूर्य की किरणें सीधे धरती तक नहीं पहुँच पाती। सूर्य की रौशनी न मिलने से पेड़ों के आस-पास जंगली घास नहीं उग पाती है और इस वजह से मिट्टी में नमी बरकरार रहती है।"

"क्या अब यह झील पूर्णतः स्वच्छ है?"आलोक ने पूछा।

 "इस कार्य में आईटी प्रोफेशनल्स ने वॉलिंटियर के रूप में काम किया। इसे फ्रीडम लेक का नाम दिया गया। इस तरह आज बेंगलुरु की 300 झीलों में से यह एकमात्र झील है, जिसका पानी पीने लायक है। इस झील में स्टील, कंक्रीट जैसी किसी आधुनिक सामग्री का इस्तेमाल नहीं हुआ है। पौधों से ही इसकी फेंसिंग हुई है।आज किसान यहां के फलदार पेड़ों से भी कमाई कर रहे हैं।"

"वाह, बहुत ही बढ़िया काम किया !"वरूण ने कहा।

"इस अच्छे काम के लिए उन्होंने 16 साल पुरानी नौकरी छोड़ दी है। वह आखिरी दम तक यही करना चाहते हैं। उनका लक्ष्य 2025 तक 45 झीलों को पुनर्जीवित करना है।"

"यदि कोई इनके साथ जुड़ना चाहते तो क्या यह संभव है?"यामिनी ने पूछा।

 "उन्होंने savelakes.com प्लेटफार्म लॉन्च किया है, जिस पर झीलों के पुनरुद्धार से संबंधित ब्लोगस, तस्वीरें और वीडियोज साझा होते हैं।इन्होंने' लेक रिवाइवरस कलेक्टिव' नाम से ग्रुप बनाया है।"

 " वाह,हमें उनके बारे में और भी जानकारी यहां से मिल जायेगी!"हर्षिल ने कहा।

"चलिए, तो सब काम पर लगिए,धन्यवाद।"

"नमस्ते और धन्यवाद चाचाजी।"



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