Aprajita 'Ajitesh' Jaggi

Romance

5.0  

Aprajita 'Ajitesh' Jaggi

Romance

झील के किनारे

झील के किनारे

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पिछले चार घंटों से प्रतीक्षा कर रहा हूँ। पर वो नहीं आयी। सच कहूँ तो, मैं खुद भी नहीं चाहता कि वह आये। ह्रदय की गति पल-पल तीव्र होती जा रही है। अकस्मात ही वह आ गयी तो क्या होगा ? हम दोनों बचपन के साथी थे। संग खेलते कूदते कब यौवन की दहलीज पर आ कर, एक दूसरे का हाथ जीवन भर थामे रखने का निर्णय हमने लिया, ये मेरे लिए भी अबूझ पहेली है। हमारे घरों में किसी को भी हम पर कोई शक नहीं हुआ। शायद हम दोनों ही मर्यादा की रेखाओं में इस तरह बंधे थे कि कभी किसी को हम दोनों की दोस्ती में कुछ भी आपत्तिजनक नहीं लगा। काश हम भी मनोज और स्वाति की तरह किसी पार्क में झाड़ियों के पीछे पकड़े जाते..तो शायद घरवाले हमें बुरा भला कहते पर हमारे विवाह के विषय में तो सोचते। ये तो जान जाते कि हम एक दूसरे से प्रेम करते हैं। पर अब इन बातों से क्या लाभ ?

काश वह अपने मामाजी के घर न गयी होती, और वहीं पड़ोस में रह रहे परिवार के सदस्यों का दिल न जीता होता। काश उसके मामाजी ने बिना उसे पूछे, लड़के के माता -पिता के द्वारा लाया रिश्ता स्वीकार न किया होता। काश उसके माता -पिता ने, मामाजी के निर्णय को स्वीकृत कर, चिट्ठी रुपया की रस्म न निभायी होती। काश उसने अपने माता -पिता और मामाजी की इज़्ज़त के ख़ातिर, चुपचाप ये विवाह न किया होता। कितने ही काश मुझे परेशान करते रहते हैं। आज उसके विवाह के महीने भर बाद वो मायके आयी है। जिंदगी में पहली बार मैंने उसके हाथों में आज कागज़ का पुर्जा दिया है। सिर्फ इतना लिख कर :

" रात को पास वाली झील के दो वृक्षों के बीच मैं तुम्हारा इंतज़ार करूंगा। जरूर आना।"

झील के पास के ये दो वृक्ष दूर- दूर हैं। बचपन से हम यहाँ ही खेलने आते थे। वो हमेशा कहती थी : "ये वृक्ष इतने दूर दूर क्यों हैं ? पास- पास होते तो इनकी पत्तियाँ और टहनियाँ एक दूसरे से बात तो करते ?"

उसे बुद्धू बता मैंने समझाया था :

"धत। ये पेड़ तो वहीं उगे हैं जहाँ इनके बीज किस्मत से पड़ जाते हैं। ये इंसान की तरह खुद किसी के करीब थोड़े न जा सकते हैं !"

पर आज लगता है मैं ही नासमझ था, इंसान होकर भी मैं कहाँ उसके करीब रह पाया। पलक झपकते ही वो परायी हो गयी, सात फेरे लेते ही वो अनजाना पुरुष उसके लिए ज्यादा करीबी हो गया। चाँद मुझे देखकर मुस्कुरा रहा है, शायद मुझ पर हँस रहा है। वो भी जानता है कि वह नहीं आएगी, मैं रात भर इंतज़ार करूंगा। फिर सुबह का सूरज निकलेगा। मैं घर लौट जाऊँगा और, वो अपनी ससुराल।


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