Apoorva Singh

Drama Romance

4  

Apoorva Singh

Drama Romance

इश्क़ के रंग में...!#रंग बरसे

इश्क़ के रंग में...!#रंग बरसे

30 mins
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'चाय..चाय गरमा गरम चाय! ' मथुरा स्टेशन पर ट्रेन के रुकते ही ये शब्द चाय की केतली पकड़े हुए एक व्यक्ति बोला और ट्रेन की खिड़की से गुजरते हुए आवाज लगाने लगा चाय.. चाय...!

'सुधा! चल उठ जा स्टेशन आ गया है! हम लोग मथुरा पहुंच गये! 'अठारह वर्ष की छरहरी काया और आकर्षक नैन नक्श वाली वृंदा ने अपनी दोस्त सुधा को आवाज लगाते हुए कहा! जो ट्रेन में बैठे बैठे ऊंघ रही थी! वृंदा की आवाज सुनते ही सुधा हड़बड़ाते हुए उठी और आँखे मलते हुए बोली 'हम मथुरा पहुंच गये! सच में हम पहुंच गये! ' 'जी हां सुधा हम मथुरा पहुंच गये है! अब चलो नहीं तो ये ट्रेन अब हमें सीधे आगरा पहुंचा कर ही रुकेगी' वृंदा बोली और अपना सामान उठाने लगी! 'ऐसे कैसे हमें आगरा पहुंचा कर रुकेगी इससे पहले तो हम ही यहां उतर जाएंगे' सुधा बोली और अपना सामान उठा ट्रेन के दरवाजे की ओर बढ़ गयी! वृंदा मुस्कुराई और वो भी उसके पीछे लपकी! अगले ही पल दोनों ट्रेन से नीचे उतर गयी! वृंदा ने सुधा की ओर देखा तो सुधा मुस्कुरा दी और बोली 'कृष्ण नगरी और मेरे प्यारे मथुरा में तुम्हारा स्वागत है बालिके! 'वृंदा हंसते हुए बोली 'बहुत बहुत धन्यवाद सुधा! चले अब तेरे घर सभी इंतजार कर रहे होंगे! मां बाबूजी, तेरी दादी मां और हमारे कान्हा जी! सो बाते बाद में बनाती रहना चपला! पहले घर पहुंचते है! ' 'हम्म सो तो है वृंदा! मेरे घर सभी तुमसे मिलने को तबसे बहुत उत्सुक है जबसे उन्हें पता चला है मेरे साथ मेरी रूममेट वृंदा भी आ रही है जो दिल्ली में रहते हुए भी सुबह शाम राधे राधे करती रहती है! 'वृंदा बोली 'ये सब तुम्हारी ही मेहरबानी है जो हमारी हर बात तुम अपने घर पर सबको बताती रहती हो! ' बातें करते करते दोनों बाहर आयी और ऑटो करते हुए बोली, 'द्वारिकाधीश मंदिर जाना है' 'ठीक है, ऑटो वाले ने कहा तो दोनों ऑटो में बैठ गयी! 'अच्छा वृंदा ये बता तुम होली तक तो यहीं रुक रही हो न! कहीं बीच में निकल तो नहीं जाओगी वापस दिल्ली! 'सुधा ने पूछा तो वृंदा उसकी ओर देखते हुए बोली, 'इस बार तो हम वृन्दावन की होली के रंगों में रंगने आये है बिन रंगे तो नहीं जाने वाले! '

'फिर ठीक है तो इस बार हम मिलकर बहुत मस्ती करने वाले है और उस पर वृन्दावन की होली के क्या कहने! 'सुधा ने खुश होते हुए कहा और आसपास देखते हुए ऑटो वाले से बोली ,'बस बस भैया यही रोक दो! चल वृंदा' सुधा ने कहा और दोनों ऑटो से उतर कर आगे बढ़ गयी! कुछ आगे चलकर सुधा एक घर के पास रुकी और डोरबेल बजाते हुए सुधा वृंदा से बोली 'सब तुमसे मिल बहुत खुश होंगे वृंदा! ' दरवाजा खुला जिसके उस ओर सुधा की मां खड़ी है जिनके चेहरे पर प्रसन्नता के साथ साथ उत्सुकता भी है! मां को देखते ही सुधा खुशी से उनके गले लग गयी तो वहीं वृंदा ने हाथ जोड़ उनसे कहा 'राधे राधे! ' वो मुस्कुराई और राधे राधे कहते हुए बोली 'तुम सुधा की रूममेट हो न वृंदा! ' 'जी हम वही है' वृंदा ने कहा और चुप हो गई! ' चल अंदर चलते है' कहते हुए सुधा वृंदा और अपनी मां के साथ घर के अंदर चली आई और सोफे पर बैठ गयी! वहां तीन सदस्य और होते है जिन्हें देख वृंदा हाथ जोड़ते हुए बोली राधे राधे! सभी मुस्कुराये और एक साथ बोले 'राधे राधे! ' सुधा सबसे वृंदा का परिचय करवाते हुए बोली, 'वृंदा, मां से तुम मिल ली हो पापा अभी घर है नही है और वो जो सोफे वाली कुर्सी पर बैठा है वो मेरा छोटा भाई मनोहर है और ये जो हमारे पास बैठी हुई है वो मेरी दादी है और वो मां के पास आकर खड़ी हो गयी न मेरी छोटी बहन वैशाली! ' वृंदा ने सबको अभिवादन किया! सुधा आगे बोली,' दादी, मां, वृंदा अगले तीन दिनों तक हमारे साथ ही रुकेगी! ये यहां स्पेशली वृन्दावन की होली उत्सव में शामिल होने आई है! इसका बहुत मन था इस उत्सव को पास से देखने का और आप सब भी कह रहे थे इसे साथ लाने को तो मैं इसे यही बुला लाई! 'सुधा ने अपनी मां और दादी की ओर देखा जो सुधा की ओर गम्भीरता से देख रही थी! उसकी बात खत्म हुई जान सुधा की दादी बोली 'ये तुम्हारी दोस्त है यहां आराम से रुक सकती है! कोई परेशानी नहीं है हमें तो खुशी हुई बिटिया से मिल के! ' 'थैंक्यू दादी सुधा चहकते हुए उठी और अपनी दादी के गले लग गयी! ' कुछ देर बाद वो उनसे अलग होते हुए बोली हम दोनों कुछ देर बाद आप सबके पास आती हैं ठीक है कहते हुए सुधा वृंदा से बोली 'चल वृंदा मेरे साथ चल कुछ देर बाद आकर बात करते हैं! ' वो उठी और वृंदा को ले अपने कमरे में चली गयी! कमरे में आ वो वृंदा से बोली,' अब तुम चेंज कर कुछ देर रेस्ट कर लो मैं फिर मैं तुम्हें मथुरा दर्शन कराती हूँ! तुम्हे बड़ा मजा आयेगा सच में! ' 'हम्म ठीक है' वृंदा ने कहा और बेग से अपने कपड़े निकाल कर चेंज कर रेस्ट करने लगी! कुछ ही देर रेस्ट कर सुधा तैयार हो गयी उसे देख वृंदा उसके पास आई और 'बोली चले मथुरा दर्शन करने! ' 'हम्म चलते है चल' सुधा ने कहा और दोनो बाहर आ गयी! सुधा अपनी स्लीपर पहनते हुए अपनी मां को आवाज दे बोली,' मां मैं, वृंदा को मथुरा घूमने के लिए बुला ले जा रही हूँ! शाम तक आती हूँ वापस ठीक है! ' उसने कहा और वृंदा को साथ ले वहां से निकल आई! दोनों वहां से बातें करती हुई पैदल ही निकलती जा रही थी! रास्ते में एक जगह कुछ लोगों को एकत्रित देख रुक गयी! वृंदा उस ओर देखते हुए बोली, 'सुधा वहां इतने लोग क्यों एकत्रित है कुछ हुआ है शायद चलो चल कर देखते है' कहते हुए वृंदा ने सुधा का हाथ पकड़ा और उस ओर बढ़ गयी! वहां जाकर दोनों ने देखा राह चलते हुए कुछ संत भाव विभोर हो फुटपाथ पर ही बैठ गये है और बैठे हुए झूम रहे हैं! वहीं राह चलते लोग उन्हें ऐसे देख चकित हो देखने के लिए रुक रहे हैं! ये दृश्य देख सुधा बोली, 'ये दृश्य तो यहां आम हो चले है वृंदा अब ये अध्यात्म नगरी ही है तो यहां ऐसा होना कोई बड़ी बात नहीं है! चल आज मैं तुम्हें यमुना के पावन घाट की सैर कराती हूँ! ' वहां तुम्हें बहुत अच्छा लगेगा! ' 'हम्म ठीक है' वृंदा बोली और सुधा के साथ आगे बढ़ गयी! दोनों कुछ ही आगे बढ़ पाई होंगी तभी आगे से आता हुआ एक लड़का उन्हें टोकते हुए बोला, 'राधे राधे, आप इस रास्ते से न होकर दूसरे रास्ते चली जाइये आगे मधुमक्खियों ने रास्ते को बन्द कर रखा है! किसी बालक ने उनके छत्ते में कंकड़ मार उन्हें छेड़ दिया अगर आप आगे गयी तो वो आपको नुकसान भी पहुंचा सकती है! ' वृंदा ने उसे 'धन्यवाद' कहा तो वो 'राधे राधे' कह आगे बढ़ गया! सुधा और वृंदा ने देखा आगे से और भी लोग लौटते हुए आ रहे है उनके चेहरे पर थोड़ा सा तनाव है! लगता है वो लड़का सही बोल रहा था सामने से कुछ लोग लौटते हुए आ रहे है चल वृंदा मैं तुम्हें दूसरे रास्ते से ले चलती हूँ' सुधा बोली! तो वृंदा बोली 'अब यहां के रास्ते हम जानते नहीं है सुधा सो तुम जहां बोलोगी हम चल देंगे! ' 'ठीक है तो चलो' सुधा बोली और थोड़ा पीछे आकर दूसरी गली से मुड़ते हुए यमुना तट की ओर बढ़ गयी..!

वृंदा और सुधा दोनों ही चलने लगी! रास्ते में जगह जगह रंग अबीर गुलाल बिखरे पड़े हुए हैं ! कुछ ही देर में दोनों यमुना घाट पर पहुंची जहां इस समय बहुत शांति थी! सुधा और वृंदा दोनों ही सीढ़ियों पर जा बैठ गयी और दूर तक फैले हुए जल को देखने लगी! बैठे हुए ही सुधा की नजर घाट के दूसरे किनारे पर यमुना में डुबकी लगाते हुए स्नान करते कुछ लोगों पर पड़ी! जो रंगों में डूबे हुए थे! 'काका डुबकी जरूर लगाइएगा लेकिन साबुन का इस्तेमाल मत करियेगा 'आवाज आई! वृंदा और सुधा दोनों ने मुड़ कर देखा तो उसी लड़के को सबसे ऊपरी सीढ़ी पर बैठा हुआ पाया! जो वहीं फूलो की पोटली रखे बैठा था! उसने पोटली खोली और उसमें रखे फूलो को सीढ़ियों पर बिछाने लगा! तीन तीन के गुच्छे में फूलो को रखते हुए वो नीचे की ओर आने लगा! जिसे देख वृंदा को थोड़ा आश्चर्य हुआ वो सुधा से बोली, 'ये कर क्या रहा है, यूँ फूलो को लाकर सीढ़ियों पर कौन बिछाता है सुधा! सुधा धीमी आवाज में बोली 'कौन क्या जो भी जा वो सामने ही तो है देखते है आखिर माजरा क्या है! ' हम्म सही कहा देखते है आखिर ये कर क्या रहा है! वृंदा बोली और चुपचाप दोनों उस लड़के पर नजर रखने लगी! ए वेणु, तुम्हारा अगर ये यमुना तट को सजाने का कार्य हो गया हो हो तो बता दो फिर हम लोग मिलकर फाग खेलने का प्लान ही बना लेते हैं! वैसे भी तेरे बिन कहां कोई प्लान बन पाता है! जैसे तैसे बन भी जाये तो सफल ही नहीं हो पाता! 'पीछे से आते हुए एक और लड़के गोविन्द ने कहा जिसे सुन उससे तीसरी सीढ़ी नीचे कार्य में लगे वेणु ने ऊपर देखा और तेज आवाज में बोला, 'बस बस गोविन्द ये होने ही वाला है कुछ फूल और बाकी है फिर वो परसों वाले मुरझाये फूल उठा लूं तब आराम से बैठ कर फाग खेलने के नये नये तरीके सोचते है! इस बार भी कुछ अलग ही करना है! ' वो फिर से गर्दन नीचे कर अपना कार्य करने लगा! कुछ ही देर में उसने फूलो को सुन्दर तरीके से सजाते हुए फूलो की रंगोली बना दी! उसने देखा मुस्कुराया और खाली बैग उठा ऊपर उस जगह से थोड़ी अलग जाकर कुछ बहुत ज्यादा मुरझाये हुए फूल इकट्ठे करने लगा! ये सब कोई यूँ ही बेवजह क्यों करेगा सुधा! वृंदा ने सोचते हुए कहा! जिसे सुन सुधा बोली ये मथुरा है वृंदा यहां के कह कह में अध्यात्म बहता है! वृंदा ने एक बार फिर मुड़ कर उसे देखा और वापस से आगे युमना जल की लहरे देखने लगी! कुछ घड़ियां ही बीती होगी कि उसकी नजर सामने नाव में बैठे वेणु पर पड़ी जो माझी को हाथों के इशारे से उस पार चलने के लिए कह रहा था! वृंदा सुधा से बोली, 'सुधा अभी तो ये यहां ऊपर बैठ फूल चुन रहा था और अभी तुरंत नाव में सवार हो उस ओर जा रहा है! बड़ा अजीब सा लग रहा है इसका किरदार! ' सुधा बोली 'अजीब किरदार इसलिए क्योंकि हम इसके बारे में जानते ही कितना है और तुम कबसे किसी पर इतना ध्यान देने लगी वृंदा! 'सुधा की बात सुन वृंदा बोली 'हम ध्यान नही दे रहे है सुधा बस जो देख रहे है वो बता रहे हैं! 'सुधा तुनकते हुए बोली,' अच्छा लेकिन आज से पहले तो नहीं बताया तूने कभी ,यहां मथुरा आते ही ध्यान भटक गया तेरा क्यों?' 'तुम न अपने इत्तू से दिमाग को आराम दे लो, नही तो हम फोड़ देंगे समझ गयी चिन्दी बातूनी कही की' वृंदा बोली तो सुधा हंसी और वृंदा के कंधे पर हाथ रख बोली, कहीं की नहीं वृंदा मैं मथुरा की चिन्दी बातूनी हूँ चल अब चलकर देखते है वेणु ने क्या बनाया है! सुधा ने कहा तो वृंदा उठी और एक बार फिर सामने देखने लगी! वेणु उस पार जाकर फूलो को एक खाली जगह में बिखेर रहा है! बिखेरने के बाद वो आगे बढ़ा और उस जगह एक दो छोटे छोटे पौधे घास के थे उन्हें उखाड़ने लगा! देखते हुए वृंदा पीछे मुड़ी और रंगोली डिजाइन देखते हुए उसने उसकी कुछ पिक्चर क्लिक की और सुधा से बोली,' कुछ भी हो सुधा इन फूलो से रंगोली उसने बहुत सरस बनाई है! ' 'हम्म ये बात तो तेरी मानी मैंने' सुधा बोली और आसपास बनी कुछ और रंगोली देखने लगी! वहीं वृंदा ने पीछे मुड़ देखा जो अब उस पार स्नान कर रहे लोगों से बाते करने में व्यस्त है! रंगोली देख सुधा,' वृंदा के पास आते हुए बोली अब हम यहां से चलते है बहुत देर हो गयी है वृंदा हम दोनो को आये हुए अब तो मन्दिरो के पट भी खुलने लगे होंगे! दोपहर को बन्द रहते है न! ' हम जानते है चलो वृंदा ने कहा और दोनो पैदल ही मन्दिरो में घूमते घामते घर पहुंची! जहां सुधा की दादी और मम्मी से वृंदा ने ढेर सारी बातें करी!

अगले दिन दोनों ने बरसाने घूमने का प्लान बनाया जहां इस समय फाग उत्सव जोरों शोरो से चल रहा है और दोनों सबको बता कर एक बार फिर निकल पड़ी घूमने के लिए! मथुरा से बरसाना के लिये दोनो ने बस पकड़ी और सीट पर बैठ बातें करने लगी! सुधा कहने लगी, 'वृंदा बरसाने की होली तो जग प्रसिद्ध है! लोग तो देश विदेश से विशेष रूप से इस उत्सव में शामिल होने के लिए आते हैं! 'कहते जिसने एक बार यहां झुक कर लट्ठ खा लिया उसे जीवन में फिर कभी कहीं झुकना नहीं पड़ता! ' 'सुना तो हमने भी कुछ कुछ ऐसा ही है सुधा! सच बताये तो हम इतने उत्सुक है इस दृश्य को देखने के लिए कि हम शब्दों में नहीं बता सकते! हमारा तो मन है इसमें शामिल होने का लेकिन हमें ये होली आती नहीं न तो दूर से ही काम चला लेंगे' वृंदा सोचते हुए बोली! उसे सोच में डूबा देख सुधा कहने लगी 'कोई बात नही वृंदा तू न मन छोटा तो मत ही कर हम लोग अबीर से ही प्रेम के रंग में रंग जाएंगे! बहुत मजा आयेगा! ' 'हम्म सही कहा'कहते हुए वृंदा मुस्कुराने लगी! 'ए गोविन्द कहे दे रहा हूँ इस बार सारे दोस्तों को पटक पटक के रंगना है छोड़ना नहीं है! कॉलेज बन्द है तो क्या हुआ हमारी पब्लिक सवारी थोड़ी ही बन्द है! ' बस में ही पिछली सीट पर बैठे वेणु ने कहा तो आवाज सुन वृंदा ने पीछे मुड़ कर देखा! वेणु और उसके दोस्त गोविन्द को देख वो थोड़ा सा चौंक गयी लेकिन फिर सुधा न कुछ बोलने लगे इसीलिए चुप हो बैठ गयी! कुछ ही देर में दोनों बरसाने पहुंच गयी बस से नीचे उतर उन्होंने चारों ओर नजर दौड़ायी वेणु और गोविन्द दोनों वहां से उतर सामने जा रहे है! वृंदा ने देख लिया लेकिन एक बार फिर अंजान बन गयी लेकिन सुधा ने उन्हें देख लिया और फुसफुसाते हुए बोली 'वृंदा ये वही वेणु है न कल वाला! ये यहां क्या करने आया है! ' वृंदा बोली, 'आया होगा किसी काम से हमे इससे क्या लेना है चलो हम लोग अपने जिस काम के लिए आये वो करते हैं! ' 'हम्म ये भी सही है वृंदा वैसे भी मथुरा में फाग चल रहा है और इसे खेलने का अधिकार तो सबको है सुधा ने कहा और चारो ओर देखने लगी एक अलग ही उल्लास है चारों ओर! कुछ लोग रंग बिरंगे कपड़ों में दौड़ लगा रहे है तो कुछ अपने काम से जा रहे है! वो दोनों भी देखते हुए आगे बढ़ने लगी तो आगे कुछ दूर देखा सामने कुछ दिखाई नही दे रहा है! बस रंग उड़ते हुए नजर आ रहे है! होली के रसिया गायन सुनाई दे रहे हैं! उनके साथ ही पारंपरिक वस्त्रों में महिलाएं हाथ में लट्ठ पकड़े दिख रही है! उनके आसपास भी जो लोग है वो भी रंगे हुए दिख रहे है! वृंदा और सुधा ने एक दूसरे की ओर देखा तो मुस्कुराते हुए आगे बढ़ उन सबके बीच में शामिल हो देखने लगी! कई देशी विदेशी पर्यटक भी वहां मौजूद एक ही रंग में रंग रहे है प्रेम के रंग में! वृंदा की नजर अपने ही सामने दूसरी ओर हाथों में रंग उछालते वेणु पर पड़ी जो हंसते हुए दौड़ते भागते अपने दोस्तों पर रंग फेंक रहा है! कुछ दूर दौड़ते हुए वो बढ़ा और अपने दोस्त गोविन्द के हाथों में कैद एक और दूसरे लड़के पर रंग उड़ेल दिया और दौड़ गया! वो आगे बढ़ता उससे पहले ही वो नीचे फिसल कर गिर गया और खुद भी सराबोर हो गया! वृंदा बोली 'सच में अजब किरदार है! ' सुधा ने सुना तो आँखें तरेरी और सामने देखने लगी! उसने वृंदा का हाथ पकड़ा और वेणु की ओर बढ़ गयी! सुधा, वृंदा को सबसे बाहर ले आई और रंगते हुए कहने लगी, 'बरसाने में फाग उत्सव चल रहा है और तुम यूँ ही बची बची सी घूमना चाहती हो बहुत गलत बात है' कहते हुए सुधा ने दोबारा रंग उड़ेल दिया और वहां से दौड़ गयी! 'रुक सुधा हम बताते है तुम्हें अब आज सर से पाँव तक नहला कर ही छोड़ेंगे' कहते हुए वृंदा सुधा के पीछे दौड़ने लगी! सुधा भी कम नहीं दौड़ते हुए जहां उत्सव चल रहा था वहीं आ पहुंची! वृंदा भी पीछे पीछे चली आई और गुलाल उसकी ओर उछाल दिया! जो जाकर सीधे, सुधा के ऊपर गिरा! सुधा फिर आगे दौड़ी तो वृंदा भी पीछे चली आई! कुछ आगे चल सुधा वेणु गोविन्द की टीम के पास से गुजरी! वृंदा भी पीछे से चली आ रही है! वृंदा ने एक बार फिर गुलाल उछाला और बोली,' छोड़ेंगे तो हम तुम्हें भी नहीं सुधा! ' 'अरे सम्हाल के फाग खेलो! गुलाल आंखों में चला गया' वेणु बोला और आँखें मीचते खोलते पानी तलाश करने लगा! गोविन्द ने वेणु को देखा वृंदा से झल्लाते हुए कहने लगा 'माना कि आप भी फाग में शामिल होने आई है! लेकिन इसका अर्थ ये तो नहीं है कि आप किसी की आंखों में रंग डाल दे! 'वृंदा कहने लगी 'सॉरी, हमने जानबूझकर नहीं किया हम हमारी दोस्त के साथ फाग खेल रहे थे और गलती से इन पर गिर गया! सॉरी! आप इनकी आँखें पानी से धुलवा दीजिये फिर गुलाब जल से भी साफ कर लीजियेगा आराम मिलेगा! ' बोलते हुए वृंदा चुप हो गयी! जिसे देख गोविन्द बोला,' हमें ऑर्डर क्यों दे रही है आप आपने किया है तो आँखें भी आप ही धुलाये और पानी भी आप ही ढूंढ कर लाकर दे! बड़ी आई हमें आदेश देने वाली! 'ठीक है वृंदा ने कहा और आसपास चारों ओर देखने लगी शायद कोई जरिया मिल जाये जिससे पानी मिल जाये! सुधा उसके पास आई और कहने लगी 'वृंदा, पानी हमे मिल जायेगा ये जो फाग खिल रहा है वहां पानी का इंतजाम भी जरूर ही होगा तुम यहीं रुको मैं बस लेकर आइ! 'हम्म ठीक है सुधा' वृंदा बोली और वेणु से बोलने लगी सॉरी, वेणु जी ये बस गलती से हो गया है! सुधा अभी आती ही होगी कहते हुए वो उस ओर देखने लगी जिस ओर सुधा गयी थी! कुछ ही पल में सुधा दो प्लास्टिक गिलास में पानी लिए हुए दिखाई पड़ी जिसे देख वृंदा उसके पास गयी और पानी लेते हुए वेणु को दिया! वेणु मुंह धुलने लगा तो सुधा उसके दोस्त से बोली,' ऐसे मतलब परस्त दोस्तों से ठाकुर जी बचाये रखे! जो जरूरत पड़ने पर दोस्त का हाथ छोड़ ही भाग खड़े होते हैं! गोविन्द बोला, 'ए सुधा जी, सलीके से बात करो! बात का लहजा बदलने मुझे भी आता है! 'सुधा ने हल्के गुस्से में उसे देखा और बोली,'तो उसे पोटली बना कर यमुना जी में फेंक आओ' गुस्सा आता है हुँह और वृंदा से बोली 'चल वृंदा अगर अजब किरदार की मदद हो गयी हो तो अब हम लोग फाग खेले! ' 'अभी नहीं सुधा पहले मैं पूछ लूं इससे फिर हम लोग चलते है! ' वृंदा ने कहा और वेणु की ओर देखते हुए बोली,' अब ठीक है तुम्हारी आँखें! '

'जी' वेणु ने कहा और अपने रुमाल से आँखें पोंछ ली! उसने वृंदा और सुधा की ओर देखा और कहने लगा, 'धन्यवाद आपका! मैं वेणु, मथुरा में ही रहता हूँ, और आप शायद वही है जो कल मिली थी आपको सतर्क किया था मैंने मधुमक्खियों से! शायद आप दोनों वही है! ' वृंदा बोली,'शायद नहीं यकीनन हम वही है! ' वेणु कहने लगा,'ओके,तो आप भी यहां होली खेलने आई है मथुरा से या आप बरसाने की है'! सुधा बोली,'जी हम भी मथुरा से है और यहां के फाग उत्सव में शामिल होने आये है आखिर इतनी प्रसिद्ध जो है बरसाने की लट्ठमार होली! तो क्यों न शामिल हो! ' हम्म ये भी सही है! वेणु ने कहा और गोविन्द की ओर देख बोला,'अरे तू यहां है तो वो दूसरा कहां है उसको ही तो टारगेट किया था हम लोगों ने! ' वेणु वो उधर है उत्सव में मजे कर रहा है चल हम लोग भी चलते हैं! ' हम्म तू जा मैं अभी दो मिनट में आया वेणु बोला और मुड़कर जाने लगा! '

वृंदा ने रंग निकाला और सुधा के ऊपर बिखेरते हुए बोली,फाग है सुधा चल शुरू हो जा' कहते हुए वो दौड़ गयी! वेणु और गोपाल दोनो ने चलते हुए आवाज सुनी तो अपनी अपनी जगह से मुड़कर देखने लगे! वृंदा और सुधा दोनों वहीं घूमते हुए रंग खेल रही हैं! कुछ देर बाद दोनो थक गयी और फिर से उत्सव में आकर शामिल हो गयी! अव उत्सव में हुरियारिनें बदल चुकी है! पहले वाली अब सामने खड़े हो रंगों की बौछार करते हुए खेल रही है! सुधा वृंदा दोनो देखते हुए 'बोली कितना अलग दृश्य है कितने सारे लोग है यहां सभी एक ही रंग में रंगे हुए इश्क़ के रंग में..प्रेम के रंग में! ' 'जी बिल्कुल आखिर राधा रानी का नगर जो है ये! तो रंगना स्वाभाविक भी है ये लट्ठमार होली भी प्रेम का ही तो प्रतीक है! 'वेणु ने गोविन्द के साथ वहीं आते हुए कहा! वृंदा और सुधा दोनों ने देखा और बोली, 'जी बिल्कुल ये सही कहा आपने वेणु! '

'वैसे आप मथुरा में रहते कहां है' वृंदा ने प्रश्न किया तो सुधा उसे हैरानी से घूरने लगी! वेणु बोला 'जी मथुरा में रेलवे स्टेशन के पास ही घर है! ' ठीक वृंदा बोली तभी वहां भी रंगों की बौछार गिरी और चारों फिर रंग गये! वेणु बोला, 'अब चले गोविन्द जिसके लिए आये थे वो तो आये थे उन्हें तो जम कर रंग लगा लिया है अब देर हो रही है आये हुए! बहुत मस्ती भी कर ली है तो अब वापस चलना चाहिए! '

वृंदा बोली 'तो आपको भी फाग पसंद है! ' वेणु ने उसकी ओर देखा और बोला,' हर बृजवासी को पसंद है बृजवासी ही क्या पूरी दुनिया से लोग बृज फाग उत्सव में शामिल होने आते है' ये जैसे अभी सड़क भरी हुई है न वैसे ही मथुरा की सड़कें वृन्दावन की सड़के भर जाती है और फिर चारो ओर रंग ही रंग दिखता है! उल्लास का रंग प्रेम का रंग भक्ति का रंग ये सब ही तो स्वरूप रख सबको भिगोते रहते हैं! ' वेणु की बातें सुनकर वृंदा मन ही मन बोली 'आपकी बातें भी अलग ही है वेणु' जी 'प्रणाम राधे राधे' वेणु ने कहा तो सुधा कहने लगी अरे हमें भी मथुरा ही जाना हम भी आते हैं!

'अवश्य आइये चलिये' वेणु ने मुड़ते हुए कहा और सभी बरसाने से मथुरा की ओर निकल गये! वृंदा बोली,'वेणु हम ये जानना चाहते है आप यमुना तट को फूलो से डेली सजाते है इतने फूल आपके पास कहां से आते है! ' वेणु कहने लगा,'वो फूल तो मन्दिरो में चढ़ने वाले फूल है जो मन्दिरो से निकलने के बाद व्यर्थ ही होते है! मैं उन्हें इकट्ठा कर लाता हूँ और फिर यूँ ही कभी किसी तट को तो कभी किसी तट को उन फूलो से सजा देता हूँ! '

वृंदा मुस्कुराने लगी और बोली,'फिर उन फूलो को चुनकर उगा लेते हो जिससे उनसे और भी फूल चुने जा सके है न! '

'हम्म सही कहा' वेणु ने शालीनता से कहा बात करते करते दोनों बस अड्डे पहुंचे और वहां से मथुरा वाली बस पकड़ मथुरा के लिए निकल गये!

अच्छा वेणु एक बताओ, आप यहां अपने दोस्तों को रंगने आये थे न! वृंदा ने वेणु से पूछा तो सुधा उसे घूरते हुए बोली,बहुत ज्यादा पूछताछ हो रही है कहो तो घर का अड्रेस भी ले ही लेती हूँ! वृंदा बोली जरूरत पड़ेगी तो ले लेंगे सुधा इतना मत सोचो!

वेणु बोला, जी कॉलेज फ़्रेंड है यहीं रहता है आज छुट्टी थी तो चले आये! वैसे आप क्या करती है गोविन्द ने पूछा तो वृंदा बोली हम भी कॉलेज में ही है साथ ही टूरिज्म का शौक रखते है तो बस कभी इस शहर तो कभी दूसरे शहर जाते रहते हैं!

'ओके ये तो बहुत बढ़िया है! तो कभी ताज लालकिला घूमने गयी हो हमारे मथुरा से तो बिल्कुल पास ही में है! 'वेणु ने पूछा!

'जी गये हुए है! हम हर बार फाग खेलने यहां आते है लौटते हुए आगरा भी घूम जाते हैं! 'बृंदा ने मुस्कुराते हुए कहा!

वेणु आगे बोला,'तो तुम मथुरा की नहीं हो, उस टाइम तो बोल रही थी कि मथुरा में ही रहती हो! '

वेणु की बात सुन सुधा बोल पड़ी,'मथुरा में मैं रहती हूँ ये मेरे साथ दिल्ली हॉस्टल में रहती है! '

ओह ओके ओके! वेणु ने कहा और खिड़की से बाहर देखने लगा! लगभग दो मिनट बाद उसने अपने साथ लाया हुआ बैग टटोला और उसमें से एक पुड़िया निकाली और उसे खाकर पानी गटक लिया! गोविन्द ने उसे देखा और पूछा ठीक महसूस कर रहे हो! हम्म वेणु बोला और फिर से खिड़की की ओर देखने लगा!

वृंदा सुधा की ओर देखते हुए बोली, क्यों घूर रही थी हमें उस पल'! सुधा बोली, 'इतनी नादान तो नहीं हो जो न समझी हो'

वृंदा बोली ,'कुछ नहीं हो सकता तुम्हारा! '

'जानती हूँ मेरा कुछ नही हो सकता 'वृंदा ने सुधा की ओर देखा तो दोनो ही मुस्कुरा दी! कुछ ही देर में चारो मथुरा बस स्टैंड पर थे!

वृंदा और सुधा दोनों ने वेणु और गोविन्द को राधे राधे कहा और वहां से आगे बढ़ गयी! चलते हुए वृंदा बोली ,'सच में सुधा इस बार का फाग तो हमें जीवन भर याद रहने वाला है! '

सुधा ने उसकी ओर देखा और मुस्कुराते हुए बोली 'मुझे भी कभी विस्मरण नही होगा! 'दोनो घर पहुंची तो वृंदा सुधा की मां और दादी से मिल कर उन्हें आज के किस्से सुनाने लगी सुधा अपने भाई के पास बैठ उसे सुनने लगी!

कुछ देर बाद दोनों उठ कर कमरे में चली गयी! अगले दिन दोनों वृन्दावन की होली में शामिल होने का निश्चय कर वहां के लिए निकल गयी! चलते हुए सुधा बोली,'वृन्दावन में बंदरों की संख्या बहुत है वृंदा सम्हल कर रहना! हाथ में पकड़ा हुआ समान कब लेकर चंपत हो जाये पता भी नही चलता! '

'हम जानते है सुधा, हम पहली बार थोड़े ही वृन्दावन आ रहे है जो अंजान होंगे! समझी कि नहीं! ' वृंदा ने सुधा के सर चपत लगाते हुए कहा तो सुधा भी हंस दी! 'अच्छा सुधा वृन्दावन में होली तो बहुत जोरों से खिलती है! बिहारी जी के मंदिर परिसर में भी शाम चार बजे होली की धूम होती है जो कुछ ही समय के लिये होती है न तो बता इस बार हम मंदिर पहुंच पाएंगे या नहीं! सुधा के चेहरे पर हैरानी के भाव उभरे और बोली,'हर बार ये प्रश्न करती हो तुम और हर बार पहुंच भी जाती हो! इस बार मैं कुछ न कहने वाली! ' क्योंकि तुम पहुंच ही जाओगी! वृंदा कहने लगी हम्म चल अब ज्यादा बन मत नहीं करेंगे ये बात और चलो अब हम लोग पहुंच गये! कहते हुए दोनों वाहन से उतरी और पैदल ही चहूँ ओर देखते हुए आगे बढ़ने लगी! गलियां भी भरी हुई है! बच्चे बड़े सभी के चेहरो पर उल्लास है! वृंदा और सुधा दोनों वही खड़ी हो गयी और ब्रज रसिया होली में गाया जाने वाला गीत सुनने लगी! वृंदा की नजर हुरियारों के बीच में झूमते हुए वेणु और गोविन्द पर पड़ी जिसे देख वो सुधा से बोली 'देख तो सुधा वो दोनो भी यहीं होली में शामिल हुए है देख कैसे सरोबार हुए है! वेणु को देख कर तो लग रहा है होली का बहुत ज्यादा शौक है तभी तो हर जगह मिल ही जाता है! 'सुधा बोली 'हम्म बात तो सही कही तूने! चल अभी तो पट खुलने से रहे हम लोग चलकर कहीं बैठते है फिर शाम को होली खेलेंगे और वापस घर चलेंगे! ' हम्म ठीक कहते हुए दोनों धीरे धीरे निकलते हुए वहां से निधिवन की ओर जाने लगी वृंदा अपने हाथ में हैंडीकैम पकड़े हुए है जिससे वो आसपास के दृश्यों को भी कैद करती जा रही है! निधिवन पहुंच सुधा ने प्रसाद लिया और आगे बढ़ी तो एक बन्दर उछलता आया और झपट्टा मार कर प्रसाद हाथ में ले ऊपर दीवार पर बैठ कर मजे से खाने लगा! वृंदा ने देखा तो हंसते हुए बोली,'हमसे कह रही थी और अब खुद भूल गयी' 'हम भूल गयी! 'अब चल अंदर कहते हुए दोनो अंदर जा घूम कर वही परिसर में ही बैठ गयी!

वृंदा और सुधा तुम दोनों भी यहीं हो आते हुए वेणु ने कहा! आवाज सुन दोनों ने मुड़ कर देखा तो वेणु और गोविन्द को देख बोली जी हम यहीं है बस बिहारी जी के साथ फाग खेलने के लिए आये थे! तुम दोनों भी इसीलिए आये हो देखा हम दोनों ने कैसे फाग गाते हुए झूम रहे है!

हमने भी देखा था तभी तो कन्फर्म करने चले आये कि कहीं ये हमारा वहम तो नहीं है! अब यकीन हो गया कि नही है! गोविन्द ने कहा और वहीं फर्श पर बैठ गया! वेणु ने एक बार फिर अपनी बेग से पुड़िया निकाली और उसे खाके पानी पीते हुए बोला, गोविन्द हम लोग यहां बैठने नही आये है चल वक्त कम है और एन्जॉय ढेर सारा करना है! वेणु बोला तो वृंदा और सुधा दोनों उसे हैरानी से देखने लगी! जिस पर वेणु बोला घड़ी देखो दोनो शाम के तीन बज चुके है और बिहारी जी के प्रांगण में फाग ठीक चार बजे से शुरू हो जाता है और वो भी कुछ ही देर के लिए होता है! कितने लोग इकट्ठे होते है प्रांगण में वहां तक पहुंचना है कि नहीं!

हम्म हमें भी वहीं जाना है वृंदा और सुधा एकसाथ बोली और खड़ी हो गयी चारों एकसाथ ही आगे बढ़ गये! रास्ते में चलते हुए चारों ने देखा आगे एक जोड़ा जा रहा है जिसके हाथ में मेकअप का समान है! सुधा ने देख तो अपने साथ कुछ देर पहले हुई घटना याद आ गयी! वो उसे चेताने के लिए आगे बढ़ी तब तक एक बांदरी उछलती आई और झट से वो मेकअप वाली पॉलीथिन हाथ में से छीन दीवार पर चढ़ बैठ गयी! वो महिला जोर से चीखी तो बानरी वहीं ऊपर ही बैठ कर उसे देख खिसियाने लगी! उसने गुस्से में उसे देखा और पन्नी फाड़ उसमें भरा हुआ सामान बिखेरने लगी! आसपास लोग एकत्रित हुए और उसे प्रलोभन देने लगे कोई केला तो कोई पूरी! वेणु ने उसे देखा तो उसने कुछ केले लिए और गोविन्द से दूसरी ओर जाने के लिए कहा! और खुद बो केले थोड़ी थोड़ी दूरी पर उस दीवार पर रखने लगा जिन्हें देख बांदरी ने उस समान को छोड़ हाथ बढ़ा उसे उठा लिया आगे और केले रखे देखे तो वो आगे लेने बढ़ गयी दूसरी ओर से गोविन्द गया और धीरे धीरे सारा समान उठा कर ले आया! वृंदा ने मुस्कुराते हुए सारे पलों को अपने कैमरे में कैद कर लिया और चारो बातें करते हुए बिहारी जी तक मंदिर पहुंच गये..!


बिहारी जी के प्रांगण में पहुंचने के लिए चारों ने यमुना तट का रुख किया! निधिवन वाले पूरे मार्ग आवाजाही थोड़ी ज्यादा थी! समय भी भरपूर था सो सभी वहां से होते हुए यमुना तट के दृश्यों को देखते हुए निकले! यमुना तट पर इस समय भी कई पर्यटक नौका विहार का आनंद ले रहे है! वृंदा इन सभी दृश्यों को कैद करने लगी! थोड़ी थोड़ी दूरी पर बने घाट उनपर बैठ आनंद भक्ति के सागर में डूबते उतराते लोग! चीर घाट पर खड़े कदम्ब के वृक्ष पर लहराते चीर वस्त्र जिनके नीचे बना कुंड! जो जल अभाव में स्थित है लेकिन फिर भी लोगों की आस्था का विषय है! वृंदा सुधा गोविन्द और वेणु चारों आगे बढ़े! चलते हुए वेणु की नजर रास्ते में एक पर्स पर पड़ी उसने रुक कर उसे उठाया! 'वृंदा सुधा गोविन्द देखो ये क्या मिला किसी का पर्स लगता है' वेणु ने आवाज देकर सब से कहा जिसे सुन तीनों ने मुड़कर देखा और उसके पास चले आये! गोविन्द बोला 'देख तो किसका है वेणु' वृंदा और सुधा दोनो भी बोली 'हां हां वेणु एक बार देखो तो सही क्या है किसका है! ' 'देखता हूँ' कह वेणु ने उसे खोला जिसमें पहचान पत्र के साथ कुछ कार्ड्स और थोड़ा कैश है! कार्ड देख वेणु कहने लगा 'ये तो किसी राघवेंद्र का है! वो जो भी है एक बार यहां जरूर आयेगा! ' गोविन्द बोला 'वो यहां आयेगा ये बात तुझे कैसे पता वेणु! वो यहां नहीं पुलिस स्टेशन जायेगा कम्प्लेन करने! हमे यहां के नजदीकी पुलिस थाने जाकर इसे जमा कर आना चाहिए जिससे जो भी इसे ढूंढते हुए जाये उसे ये मिल सके! ' वेणु कहने लगा 'पुलिस थाना नहीं हमें यहीं इंतजार करना चाहिए! वो एक बार तो यहां अवश्य ढूंढने आयेगा! इसका सीधा सा कारण ये है गोविन्द ये हमे अभी मिला है वो भी भरा हुआ तो इसका अर्थ ये हुआ कि वो व्यक्ति अभी अभी यहां से गुजरा है जबकि यहां इतने लोग गुजरते है फिर भी किसी को दिखा नहीं तो सीधी सी बात है वो यहीं आसपास होगा और इसे ढूंढते हुए यहां अवश्य आयेगा! ' 'हम्म ये भी सही कहा' वृंदा सोचते हुए बोली! सुधा कहने लगी 'तो अब हम सबको यहां इंतजार करना चाहिए या फिर चलना चाहिए क्योंकि इंतजार करने लगे तो फाग शुरू हो जायेगा फिर हम सब कितनी देर में पहुंच पाये ये पता नहीं! ' सुधा को सुन वृंदा और वेणु एक साथ बोले 'इंतजार करना चाहिए सुधा तभी भक्ति भी सार्थक है! 'वेणु को सुन वृंदा चुप हो गयी तो वेणु मुस्कुराया और आगे बोला,'थोड़ा सा इंतजार करने से अगर किसी का बिगड़ा हुआ कार्य सम्हलता है तो निश्चित ही इंतजार करना चाहिए! 'वेणु की बात सुन सुधा बोली,'हम्म बात भी सही है! चलो यहीं एक ओर बैठ इंतजार करते हैं! 'कहते हुए सुधा वृंदा और बाकी सब एक ओर जाकर इंतजार करने लगे और वहां से गुजर रहे लोगों में राघवेंद्र को खोजने लगे! एक के बाद एक लोग गुजर रहे है लेकिन कोई भी उन्हें कुछ भी खोजता हुआ नही लगा! गोविन्द कहने लगा, 'वेणु,मुझे नही लगता अब कोई आयेगा, हम चलते है देखो उसे आना होता तो अब तक आ जाता! ' वेणु बोला 'कुछ पल और इंतजार कर लेते हैं! फिर भी अगर तुझे जाना है तो जा मैं वहीं मिलूंगा! 'गोविन्द बोला,'न मैं छोड़कर अकेले तो नहीं जाऊंगा चलेंगे तो साथ ही! ' 'तो बैठ चुपचाप' वेणु ने कहा तो गोविन्द वहीं बैठ गया! वृंदा ये सभी दृश्य कैद कर रही है! उसे वेणु की बातें उसका व्यवहार सब अजब लेकिन प्यारा लग रहा है! कुछ ही देर में उसकी नजर जल्दी जल्दी चल कर कुछ परेशान सा चेहरे पर तनाव लिए एक शख्स पर पड़ी! जो लगभग पच्चीस बरस का था! उसे देख वृंदा बोल पड़ी 'मिस्टर राघवेंद्र! 'शब्द सुन उसने अपने चारो ओर देखा जिसे देख वेणु बोला 'मिल गया चलो पर्स लौटाते है और फिर रेस लगाते है कौन जल्दी पहुंचे बिहारी जी के परिसर में! ' बेटर आइडिया बाकी तीनों बोले और पर्स लौटाने आगे बढ़ गये! वेणु उसके पास पहुंच बोला,'आप यही ढूंढ रहे थे न ये पर्स' जिसे देख उसके मुख पर चमक आई और वो बोला,' हम्म लेकिन ये तुम्हारे पास कैसे! ' वृंदा बोली 'हमे पड़ा मिला और अब इसे आप रखिये अभी बात करने का समय नही है हमें जल्दी जाना है! 'कहते हुए उसने सुधा की ओर देखा और बोली 'लेट्स गो..' कहते हुए वो सब यमुना तट से दौड़ लगा गये और वृन्दावन गलियो में तेज कदमों से चलते हुए अलग अलग दरवाजो से मंदिर परिसर में पहुंचे! परिसर में लोगों का हुजूम उमड़ घुमड़ कर फाग शुरू होने की प्रतीक्षा कर रहा है! वृंदा, सुधा, वेणु, गोविन्द सभी एक दूसरे को खोजते हुए परिसर में घूमने लगे! कुछ देर तक जब नहीं मिले तो वृंदा सीढ़ियों पर खड़ी हो सबको देखने लगी! फोन और कैमरा दोनो का ही उपयोग वर्जित है! समय होते ही फाग उत्सव प्रारम्भ हुआ और पुजारियों और महंतों ने बिहारी जी को गुलाल लगा वहां शामिल हुए लोगों पर रंग उड़ेलना प्रारम्भ कर दिया! चारों ओर बस एक ही रंग था प्रेम का रंग! सभी जी भर रंगों में खुद को रंगते है! वृंदा जो कुछ ऊपर खड़ी थी फाग शुरू हुआ जान बाकी सबके बीच में आ जाती है! जहां वो वेणु से टकराती है! राधे राधे जोर से कहते हुए वो मुस्कुराते हुए साथ लाया गुलाल उछालती है! जिसके रंग तो अनेक होते है लेकिन वो गिरकर दोनों को एक ही रंग में रंग देता है इश्क़ के रंग में...! सुधा और गोविन्द दोनो ही सबको अलग अलग ढूंढते हुए वहां पहुंचते है! जहां वृंदा और वेणु को मुस्कुराते हुए बिहारी जी के साथ फाग खेलते देखते है तो दोनो ही सभी के साथ शामिल हो कहते है यहां सब रंगे हुए है बिहारी जी के रंग में, प्रेम के रंग में और इश्क़ के रंग में..! वेणु और वृंदा ने एक दूसरे की ओर देखा और मुस्कुराते हुए बोले बिल्कुल सही कहा! हम सब रंगों से नही इश्क़ के रंगों से रंगे है! कुछ देर तक रंग और फूल दोनों से फाग खेलने के बाद चारों ने बिहारी जी के दर्शन किये और प्रसाद और फूलमालाएं लेकर वहां से बाहर चले आये! बाहर आकर चारों बातें करते हुए आगे बढ़ने लगे! चलते हुए वृंदा और वेणु ने एक दूजे की ओर फिर देखा और हल्का सा मुस्कुरा दिये! जिसे देख सुधा बोली तो वृंदा तुम्हें देख कर तो लग रहा है इस बार तुम सच में इश्क़ के रंग में रंग ही गयी हो लेकिन ये रंग बिहारी जी के प्रेम का नहीं है उन्हीं के एक भक्त वेणु का लग रहा है! वृंदा मुस्कुराते हुए फुसफुसाई बात तो सही है तुम्हारी सुधा! सुधा ने गोविन्द की ओर देखा तो गोविन्द वेणु से बोला देख कर तो लग रहा है फाग का सारा रंग इस बार तुम ही लूट लाये हो जरा बताओ तो इस रंग के गहरे होने का राज क्या है! वेणु हंसते हुए बोला,'वही राज है गोविन्द जो तुम समझ रहे हो! हम सब यहां इस समय एक ही रंग में रंगे हुए है इश्क़ के रंग में! 'कहते हुए वेणु ने वृंदा की ओर देखा और अपनी बात दोहराते हुए कहने लगा,'मैंने सही कहा न वृंदा! हम सब यहां एक ही रंग में रंगे हुए है प्रेम के रंग में, इश्क़ के रंग में! 'वृंदा सुधा के पीछे होते हुए बोली 'हम्म सही कहा रंग गये है हम इश्क़ के रंग में...! ' ये देख सुधा और गोविन्द मुस्कुराते हुए बोले 'हम भी पीछे नहीं है' और चारों मुस्कुरा कर अपने अपने हिस्से के रंगों को जीने के लिए आगे बढ़ जाते हैं! !



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