Turn the Page, Turn the Life | A Writer’s Battle for Survival | Help Her Win
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Akanksha Gupta

Abstract

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Akanksha Gupta

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इंतजार

इंतजार

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आज फिर उसका फोन आया था। आज उसने फिर वही बहाना बना दिया था। उसके पास समय नही था अपने आप के लिए भी। ज्यादा कुछ कहने पर उसके शब्द किसी खंजर की तरह दिल को घायल कर जाते थे। इस दर्द में डूबी हुई सिसकियों का कोई असर नहीं था उसपर। शायद मशीनों के बीच काम करते करते वह खुद एक भावना रहित मशीन बन चुका था।

रचित ऐसा ही था। उसके माँ बाप दिन रात उसकी एक झलक देखने के लिए बस इंतजार किया करते थे लेकिन उनकी यह इच्छा कभी कभी ही पूरी हो पाती थी।

समय के साथ रचित की गृहस्थी बसा दी गई थी। रचित के कंधों पर गृहस्थी और उसके दो बच्चों की जिम्मेदारी थीं जिसे रचित ने पच्चीस सालों तक बखूबी निभाया। अब रचित भी उनका इंतजार कर रहा है।


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