इंसानियत

इंसानियत

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"माँ, रसोई में खाने को कुछ है क्या?" नीटू ने अपनी माँ से पूछा।


"हाँ, बेटा पराठे हैं खा ले, अभी सेकें हैं", माँ ने कहा।


"माँ, बाहर भीख मांगने आया है एक आदमी, भूखा है उसे कुछ खाने को चाहिए, दे दूँ क्या पराठे?"


"अरे पागल है क्या, ताज़े पराठे देगा उसे? वो कल की बासी रोटियाँ पड़ी हैं डिब्बे में, थोड़ी बस्सा रही हैं, उसे ही दे दे कौन खायेगा अब उसे।"


नीटू तेज़ आवाज़ में, "माँ वो भिखारी, इंसान है, जानवर नहीं! बस्सायीं रोटियाँ हम नहीं खा रहे, उसे इस गर्मी में खिला कर मारना है क्या।"


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