इम्तहानभाग-3
इम्तहानभाग-3
वह कमरे में आई, देवांश ने उठकर उसका स्वागत किया। उसे बेड पर बिठा दिया और अपने गले की चेन निकालकर उसे पहनाते हुए बोला -'शादी ऐसी परिस्थिति में और इतनी जल्दी हुई कि आपके लिए कुछ ले ना सका ।यह चैन पुराना जरूर है पर मेरा प्रिय है ।वह मुस्कुरा दी।
उसकी मुस्कुराहट में अजब सा सम्मोहन था ,देवांश का वजूद खींचता जा रहा था मगर उसने खुद को संभाल लिया। देवांश कुछ क्षण शुचि को देखता रहा और फिर कहा -शुचि !आज हम पहली बार मिले हैं पर ,ऐसा लगता है जैसे जन्मों से आपको जानता हूं ।आज से हम नई जिंदगी की शुरुआत कर रहे हैं ।मैं चाहता हूं आप मुझे जान ले। आपको वह हक देता हूं कि आप मेरे बारे में कुछ भी पूछ लो मेरी हर सच्चाई से वाकिफ हो जाओ।शुचि ने कहा आपके बीते कल के बारे में मैं कुछ नहीं जानना चाहती।
तो....
"मैं तो आज को जानना चाहती हूं, इस क्षण को जानना चाहती हूं ,मैं सीता की तरह आप की छाया बनकर सदैव साथ रहूंगी ।आपके हर कार्य में सहभागी रहूंगी। मेरे जीवन में ना कोई आपके पहले था ना ही कोई कभी और होगा। आप भी राम की तरह बस मेरे ही होकर रहिएगा।"
"मैं राम सा हमेशा आपका रहूंगा पर ,एक बात मुझे कचोट रही है प्रिये !"
"क्या ?"
"मैं आपसे कुछ छुपाना नहीं चाहता, सब कुछ बता देना चाहता हूं ,मैं किसी को प्रेम करता था ।
किसे ?" पूछते हुए उसके चेहरे पर चिंता की रेखाएं तीर गई ...
"उसका नाम कामिनी था। "
"क्या वह अब नहीं है ?"
"है ,मगर अब वह मेरा प्रेम नहीं है।" देवांश ने कामिनी की पूरी कहानी उसे दी।
सुनकर शुचि थोड़ी उदास हुई और कहा-' वह प्रेम नहीं.... आपके जिंदगी की एक छलावा थी।
देवांश शुचि का हाथ थामें, उसकी उंगलियों से खेलते हुए, कहा -"जानती हो ?मां कहती थी मैंने तेरे लिए परी ढूंढी है ......तब मुझे यकीन नहीं आया था..... साक्षात जब तुम्हें देखा ,तब लगा....
क्या लगा? आप सचमुच परी हो। बिना पंख वाली परी ,जिसके उड़कर जाने का भी खतरा नहीं है। "
वह शरमाते हुए बोली ,"धत्त !"
एक बार फिर बोलिए... "बड़ा प्यारा अंदाज था।"
वो और शरमा गई ,देवांश ने उसे गले से लगा लिया। "जानती हैं आज लगता है ,मैंने जिस छवि की कल्पना की थी, वह आप है, रिश्ते में सच्चाई और समर्पण दोनों होना चाहिए।" अचानक देवांश की नजर दीवार घड़ी पर गई ..."अरे! 5:00 बज गए?"
"इतनी जल्दी मुझे तो पता भी ना चला। अब उठती हूं माँ को देखूँ।"
"मैं भी उठता हूँ शुचि ।चलिए आपकी कुछ मदद कर दूँ", वह मुस्कुरा दी।
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अजय का मन दुखी था ।उसका प्रेम लुट गया था। अपने भाग्य को कोस रहा था ।सोच रहा था मैं जिस चीज की कामना करता हूं वह मुझसे छीन जाती है ।आज कामिनी को ब्याह कर गए 3 दिन हो गए थे अर्द्ध रात्रि ,तन्हाई और गम ने समझ की खिड़कियां बंद कर दी । उसने कामिनी को मैसेज किया.....
"हेलो कम्मू! मैं बहुत अकेला हूं। तुम बिन मर जाऊंगा यार।"
तुरंत रिप्लाई आया ....
"हेलो ऐसा मत कहो ।"
"मैं बात करना चाहता हूं।"
"अभी?"
"हां ।"
"ठीक है जरा रुको", वह मोबाइल लेकर वाॅशरूम में आ गई और नल चालू कर दी ,ताकी आवाज बाहर न जाए ,और कॉल लगा ली
अजय ने कहा- "हेलो कम्मू !कहीं टूर पर गई हो क्या? "
"नहीं अजय । मेरी किस्मत ऐसी कहां कि कहीं जाऊं?मुझे अच्छा पति नहीं मिला यार ।"
"क्यों क्या हुआ ?तुम तो बताई थी इंजीनियर है ।"
"हां है पर ..."
"पर क्या ?"
"मां-बाप का चमचा है ।कोई निर्णय खुद नहीं लेता, मां-बाप की बातों पर चलता है ,उसकी मां कह दी कि अभी घर में मेहमान भरे हैं... अगले सप्ताह में चाचा की बेटी की शादी है ,इसलिए अगर घूमने जाना ही है तो अगले माह में चले जाना ,और घोंचू मान गया।"
"अभी तुम्हारे पति कहां है ?"
"खर्राटे ले रहा है।"
"उसे पता तो नहीं चलेगा इतनी रात गए तुम बात कर रही हो?"
"नहीं यार ! वह 11:00 बजे तक सो जाता है, आजकल के लड़कों जैसा एकदम नहीं, पुराने ख़्याल का है । एक दिन थोड़ा सा सज संवर कर बैठी थी ,शाम को आया तो एक बार गौर से देखा और कहा -'कहीं जाने की तैयारी है क्या ?'"
मैंने कहा- "नहीं तो ,कहने लगा फिर इतना मेकअप क्यों पोत ली? सादगी में ही सुंदरता है ।उसकी माँ भी बिल्कुल टीपिकल है वेस्टर्न कपड़े तक भी नहीं पहनने देती, मैं तो फँस गई यार ।बोलते बोलते उसकी आँखें भर गई ।दोनों को बातें करते 2 घंटे गुजर गए थे। "अजय ने कहा -'कितनी देर वाॅशरूम में रहोगी ?अब सो जाओ ।"
"कामिनी बोली कल फिर कॉल कर लेना मैं इंतजार करूंगी ।"
शुभ रात्रि ।
वॉशरूम से बाहर आई तो देखा मनीष गहरी नींद में सोया है ।वह धीरे-धीरे बेड पर चढ़ी और अजय को सोचते-सोचते सो गई ।
अजय की रात्रि सचमुच शुभ हो गई थी।वह सोच रहा था... अब रोज कामिनी से बात कर सकूँगा। वक्त ने साथ दिया तो कामिनी उम्रभर के लिए मेरी भी हो सकती है ।सोच कर दिल को सुकून मिला । फोन का सिलसिला हर अर्धरात्रि का हो गया था।वह वॉशरूम में जाती और घंटों बातें करती रहती।
चचेरी ननंद सोनाली की तिलक की रात अजय और कामिनी रात भर बातें करते रहें। घर के सभी पुरुष तिलक में गए थे । मनीष रात तिलक चढ़ाने के बाद कामिनी को फोन लगाया तो कालॅ बिजी बताया ।रात में उसने तीन बार एक-दो घंटे के अंतराल पर कामनी को कॉल करता रहा हर बार आवाज आती ......आपने जिसे कॉल किया है वह दूसरे कॉल पर व्यस्त है कृपया ......
कामिनी बातों में ऐसी खोई थी कि उसे कॉल का पता ही न चला । उधर मनीष चिंतित था ।उसने मां को कॉल किया ,मां बताई... बहूं तो 11:00 बजे ही सो गई थी। मनीष के मन में एक खटका सा आया, पर उसने इस बात को पल में झटक दिया ,सोचा संदेह पर रिश्ते नहीं टिकते ।दूसरे दिन लौटने पर मौका मिलते ही उसने फिर भी पूछा ....."रात किसी से बात कर रही थी क्या ?"
कामिनी कुछ पल को घबराई। हलक सूख गया ,पर तुरंत ही बात संभाल ली । कल माँ से बात कर रही थी ।बातें करते करते नींद आ गई ,शायद माँ भी सो गई और काॅल कट नहीं हुआ।
"ओहह! मैं सोचा इतनी रात तक कहाँ बात कर रही हो ।"कामिनी की बातें सुनकर मनीष सामान्य हो गया।