ईश्वरीय शक्ति
ईश्वरीय शक्ति
यमराज ने एक आत्मा को देख कर कहा-
चित्र गुप्त इसके पाप पुण्य को देख के बताओ, इसे क्यों कर्मों के फल से अलग रखा गया है I
चित्र गुप्त अपने दिव्य पुस्तक को देखता है और पन्ने को बार बार पलट कर आंखों को जोर देकर देखता है पर उसे समझ नहीं आता कि ये कैसी आत्मा है I वह यम राज को बोलता है
-"महाराज ये प्राणी अपने किसी कर्म को नहीं जीया है इसे कैसे ले आए I ये तो ब्रम्हा जी के लिखे हर बात को टाल गया ये कैसे सम्भव हुआ I"
-यमराज ने कहा-- क्या कहते हो चित्र गुप्त- कोई जी कर अपने कर्म को कैसे बदल सकता है I
"हाँ महाराज ऐसा ही हुआ है ये प्राणी अपने पारिवारिक सुख को जिया ही नहीं अठारह से साठ वर्ष का है इस आधार से इसे बयालीस साल इस को और जीना चाहिए नहीं तो ब्रम्ह वाक्य झूठा हो रहा है I
यमराज ने कहा-- फिर इसने अपने जीवन में क्या किया I
चित्रगुप्त अपने पसीना को पूछते हुए बोले-- ये प्राणी अपना जीवन सिर्फ परोपकार में व्यतीत कर दिया और दूसरों के सेवा गरीब, दिन दुखी के के सेवा में अपना कर्म को बदल दिया I और अचरज की बात यह की इसे कोई दोष भी नहीं लगा I ये अपने कर्म रेखा को कैसे बदल दिया महाराज?
यम राज बोले---अब समझ आया चित्र गुप्त ये प्राणी ईश्वरीय शक्ति का उपयोग किया जिसके आगे हमारी जीवन रेखा, मस्तिष्क रेखा सब फीके पड़ जाते हैंI और जीव ईश्वरीय स्थान प्राप्त कर जाता है, हम देवता गण वहां जन्म लेकर उसी गुण का उपयोग कर युगों तक
देवता कहलाते है और अपने बाद भी अपने शरीर छोड़ने पर नाम के स्मरण से भी कार्य सफल कर जाते हैं I
चित्र गुप्त ने कहा-" हाँ महाराज मैंने सुना है कि आज कल कुछ मनुष्य के नाम लेकर लोग प्रार्थना कर अपना मनोकामनाएं पूर्ण कर रहे हैं I "और अब तो इनका मन्दिर भी लोग बना कर पूजा कर रहे हैं I लोग गॉड की उपाधि दे रहे हैं I धन्य हैं ऐसे जीव को जो अपने कर्मों से ईश्वर के समान स्थान प्राप्त कर रहे हैं I
यमराज-- फिर क्या करें अब तक तो इसके शरीर को जला दिया गया होगा I बिना शरीर के ये जीवित कैसे होगा I जाओ इसके नाम को सौ गुना वर्षों तक जीवित रखने का शक्ति दे कर दुनिया में अमर कर दोI
चित्रगुप्त यम जी को प्रणाम कर पृथ्वी लोक में जाने की तैयारी करने लगे ताकि उस प्राणी का नाम को अमर रख सकें I
