AMIT SAGAR

Abstract

4.3  

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हुलिया-एक खौफ

हुलिया-एक खौफ

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हिन्दुस्तान में आतंकवाद का इतना भयंकर भय फैल चुका है किं मेले दशहरो में जाते वक्त डर सा लगता है । तीर्थयात्रा जाते समय मन में अजीब अजीब से ख्याल आते हैं । बस और ट्रेनों में बैठते समय एक अलग ही घबराहट होती है । मॉल और मूवी जाने से तो दिल अब परहेज सा करने लगा है । और तो और पैदल जाते वक्त भी यही सोचते है कि कहीँ कोई कम्बख्त रास्ते में बम तो नहीं रखकर चला गया । वैसे तो मैं सभी धर्मों और जाति की इज्जत करता हूँ , पर माफ करना दोस्तो कम्बख्त आतंकवादियों की बेश-भुषा हमारे देश मे रहने वले भाइयों जैंसी ही होती है , इसलियें कुछ अजीब से हुलिये देखकर मन ना चाहकर भी शक करने लगता है , और साथ ही इन अजीब से हुलियों को देखकर मन में केवल एक ही खयाल आता है , कि हो ना हो इस हुलिये के पीछे जरूर कोई ना कोइ आतंकवादी छिपा है ।


इस हुलिये को लेकर एक वाक्या याद आ रहा है । वैसे तो आतंकवाद का खौफ तभी शुरू हो चुका था जब लादेन ने अमेरिका का वर्ल्ड ट्रेन सेंटर  गिरा दिया था । पूरा विश्व इस आतंकी हमले से काँप उठा था । और उसके सात साल बाद बॉम्बे में 26/11 को जो हुआ उससे तो दुनिया हिल सी गई थी । हर कोई डर के साय में जी रहा था । 


तो किस्सा यह है कि हमारे ऑफिस आने- जाने का एकमात्र साधन ऑटो रिक्शा ही था , और ऑटो में तो जनाब किसी का भी बैठना वाजिब ही है , अमीर , गरीब , बच्चा , बूढ़ा , राजा , रंक और भले ही कोई आंतकवादी क्यों ना हो , और आतंकवादी की पहचान सिर्फ उसका विशेष हुलिया ही था , पर यह भी कहना सही ना होगा कि उस हुलिये में हर एक आंतकवादी ही होता है , पर शक करना अब हमारा अधिकार और कर्तव्य बन चुका था । 


दुनिया के प्रचारित प्रसारित उसी हुलिये के तीन आदमी एक दिन ऑटो में मेरी सामने वाली सीट पर बैठे थे । उनको देखने मात्र से ही खौफ़ का एक अजीब सा एहसाश हो रहा था । पर उनके सन्देहपुर्ण शब्दो को सुनकर मेरा शक अब यकीन में बदल चुका था ।वो आपस में बात ही कुछ ऐंसी कर रहे थे


उनमे से एक कह रहा था कि सारा ईन्तेजाम हो गया है भाइजा‌न बस दस बजने का इन्तेजर करो । 


दुसरा बोला पूरा एक साल हो गया है पिछली सर्दियों से इन्तेजर कर रहे हैं इस दिन का इन्शाँ अल्ला हमारा मंसूबाँ जरूर पूरा होगा ।


तीसरा बोला एक बार फोन करके पूछ लो सबकुछ प्लान के मुताबिक हो रहा है कहीं कोई गड़बड़ तो नहीं है ।


पहले वाला फोन करता है और फोन पर कहता है "दस बजते ही एक एक को उड़ा देना बच्चा , बुढ़ा औरत कोई नहीं बचना चाहियें , अबकि बार हम दिखा देंगे कि हम खुदा से जो वादा करते हैं वो पूरा करके ही साँस लेते हैं । "


फोन रखकर तीनो एक दुसरे का हाथ पकड़ते हैं और उपर सिर करके कहते आमीन ।


मेरा धेर्य अब जवाब दे चुका था , मैं इतना कायर ना था कि अपने हिन्दुस्तानी भाई बहनो की जान ना बचा सकूँ । यह बहशी दरिन्दे बच्चे , बूढ़े और औरते सभी को मारने की बात कर रहे थे । पर मैं अकेला उनको रोक भी तो नहीं सकता था , ज्यादा से ज्यादा मैं उनसे झगड़ा कर सकता था या फिर शोर मचाकर उनको गिरफ्तार करवा सकता था , पर इससे उनका मंसूबा नाकामयाब ना हो पाता क्योकिं दस बजने में सिर्फ 5 मिनट थे । पर देशभक्ती का नगाड़ा मेरे कानो में जोर जोर से बज रहा था , अब चाँहे कुछ भी हो मैं इन नामाकूलों का इरादा चौपट करके ही रहूँगा । 


मैंने धीरे धीरे अपनी बेल्ट यह सोचकर निकाली कि , इस बेल्ट को किसी एक के गले में डालूँगा और तब तक ना छोड़ूंगा जब तक यह अपना प्लान फैल ना करेंगे । मेरी निगाह अब उनमे से एक की गर्दन पर थी ।


तभी उनका फोन बज उठा उनमें से एक ने बात करनी शु्रू की और बोला - क्या बकबास कर रहे हो हमने तो कहा था सारा इन्तेजाम ठीक से होना चाहियें पर तुम्हारी लापरवाही के कारण हम खुदा को मुँह दिखाने के काबिल भी नहीं रह जायेंगे । तुम जल्दी उस कम्बल वाले को फोन करो और कहो हमें गाड़ी दस बजे तक नहीं तो सवा दस बजे तक हर हाल में भिजवा दे । क्या तुम्हे नहीं पता हमने खुदा से मन्नत माँगी थी कि हमारी अम्मी ठीक हो जायेंगी तो हम गरीब बच्चे , बूढ़े और औरतो को इस शर्दी के मौसम में कम्बल ओढ़ायेगे । अब मैं फोन रखता हूँ , और तुम सारा इंतजाम ठीक से करो । 


उसके यह अल्फाज़ सुनकर मेरी जान में जान आयी और मन को शान्ती मिली कि हे भगवान तेरा लाख लाख शुक्र है , यह तीनो कम्बल उड़ाने की बात कर रहे थे । पर उन तीनो के बारे में सोचकर अब मुझे अपने आप पर हँसी आ रही थी , कि दुनिया में कितनी बड़ी बड़ी गलतफहमियाँ हो जाती हैं । 



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