हत्यारे की हत्या

हत्यारे की हत्या

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देहरी पे बैठकर पसीना पौंछते आँखें मूँदे चंदा एक अकथ्य शांति के संचार में डूब गई,

बरसों से जल रहे दिल के ज्वालामुखी पर मानों शीतलहर छा गई हो..!

अंगारे बुझ गये असंख्य एहसास ढ़लते रहे आँखों से गालों पर बहते,

मानों विष का प्याला खाली हो गया..!

किसने कहा कत्ल हथियार से ही होता है एक स्त्री के शरीर को नौंच नौंचकर उसकी मर्ज़ी के खिलाफ़ रूह तक को हिला देने वाला वहशियाना खेल कोई कत्ल से कम नहीं साहब.!

हर रात सीने पर लौटते कीड़े का कत्ल कर चंदा ने नर्म मुलायम हाथ देखते मुस्कुराते झटक दिया हाथ,

गर्व से हाथ चूमे, दिलको शाबाशी दी, हौसलो की पीठ थपथपाई, 

सोचती रही ख़ाँमख़ाँ सहती रही सालों,

आज जाके कुछ जलकर ख़ाक़ हुआ कोयले सा, अतीत बिखर गया दिल के बोझ सा..!

कतरा-कतरा हिसाब किया जो मिला था, 

कुछ घाव ठिठक गए कुल्हाड़ी थककर चूर ना होती तो शायद उनसे भी न्याय कर देती, 

गाड़ दिये कतरे नापाक गुनहगार के खुद का ही खून बहा दिया जो घूँट-घूँट पीया था बरसों तक उस ज़ालिम ने..!

जश्न मनाते आसमान से खुशीयाँ बेमौसम बरस पड़ीं,

लो बहाना मिल गया दोहरे अहसासो वाले आँसू छलक गये,

कुछ शांति के कुछ गुनाह के,

था तो पापी वो, पर कत्ल गुनाह ही हुआ..!

पर कातिल का कत्ल हत्या थोड़ी हुई समाज से एक बोझ ही तो हटाया था.!

पर चंदा को आज अभी कुछ नहीं सोचना, बारिश संग आँसू बहाते सुकून के निश्चल पल जी रही थी, 

चींख नहीं सकती पानी संग आँखों से पानी बहाती चली 

आज पीड़ा के पुर्जे को शांति का भोग लगाया, एक लाश जो बरसों से साँसे ले रही थी खुद के भीतर उसमें साँसों का संचार हुआ , और एक कातिल की लाश आज बिलखती तड़पती शांत हुई 

कमरे के बीचोंबीच..!

चंदा ने खुशियों की दस्तक का अट्टहास्य के साथ स्वागत किया, उस हास्य की गूँज से लाश भी थर्रा उठी.!

अंजाम से अन्जान मासूम के हाथों मारा गया आज एक वहशी बलात्कारी पति..!

जो चुटकी भर सिंदूर की कीमत वसूले जा रहा था चंदा की बोटी-बोटी नोचकर।


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