मानव सिंह राणा 'सुओम'

Abstract Inspirational

4.0  

मानव सिंह राणा 'सुओम'

Abstract Inspirational

हसरत

हसरत

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   " सुनो पापा का आज जन्मदिवस है। सभी शाम को पापा के पास चलेंगे। 2 बजे तक तैयार रहना। " रजनीश ने ऑफिस जाते हुए कहा।


" ठीक है चलो पापा के बहाने रेनूकोट से बाहर तो घूम लेंगे। वैढ़न तक के रास्ते के नजारे मन मोह लेते हैं। बच्चों को तो रिहंद बांध पर बहुत अच्छा लगता है। " सुजाता ने कहा।


" अच्छा चलो तैयार मिलना बस। "

" ओके। बाबा हम तैयार मिलेंगे। " सुजाता ने ख़ुशी से बल्लियों उछलते हुए कहा।


रजनीश ऑफिस गया और थोड़ा काम ज्यादा था तो 3 बजे तक घर आ पाया और फिर सभी निकल पड़े वैढ़न के लिए। रास्ते में बच्चे रितिका और कृपाँक ने माँ सुजाता के साथ खूब मस्ती की। शाम को छः बजे घर पर पहुंचे तो माँ और पापा देखते ही खुश हो गए। रजनीश उनका इकलौता बेटा था और वो भी इतना दूर रहता था।

सभी ने पापा और माँ के चरण स्पर्श किये केक काटा और माँ के हाथ का बना खाना खाया। सभी खाने के बाद बैठ गए बतियाने।

" पापा जी आपको आज क्या गिफ्ट दूँ । अपनी एक हसरत बताओ हो सकी तो हम पूरी करेंगे।" रजनीश ने बड़ी ही विनम्रता से कहा।

पापा मुस्कराकर रह गए।


" क्या हुआ पापा ? आपने कुछ बोला नहीं। आप पूरी जिंदगी हमारी हसरत पूरी करते रहे। क्या अब हमको आपकी हसरत के बारे में नहीं जानना चाहिये।" रजनीश ने विनीत स्वर में कहा।


माँ और सुजाता तब तक किचन से चाय लेकर आ गई। माँ सारी बाते सुन रही थी। अब उन्होंने ही बोलना उपयुक्त समझा।


" बेटा इनकी हसरत तुम पैसो से पूरी नहीं कर सकते। " माँ ने कहा।

" तब कैसे माँ...."

" नहीं रजनीश की माँ। कुछ मत कहो। परेशान मत करो बच्चों को। " पापा ने कहा।

" बताओ ना पापा। हमें ख़ुशी होंगी आपकी हसरत जानकर। " रजनीश गिड़गिड़ाते हुए बोला।


" मैं ही बताती हूँ बच्चा। वो भी इसलिए बताती हूँ क्योंकि इनकी ये हसरत इनको परेशान कर रही है। हमारी हसरत भी हमारी तरह चार दिन की मेहमान है अगर हम चले गए इस दुनिया से तो हसरत बस एक हसरत ही रह जाएगी। इसीलिए बताती हूँ। "


" हाँ हाँ माँ! बताओ। "


     " हमें कोई रुपया पैसा या गिफ्ट नहीं चहिये। ये और मैं बस अब तुम्हारे और बच्चों के साथ रहना चाहते हैं। उनके साथ खेलना चाहते हैं। अपनी बाकी की जिंदगी तुम्हारे साथ बिताना चाहते हैं। चाहे तो तुम यहाँ रहो या हमें अपने साथ रख लो। " माँ ने आँखों में आँसू भर कर कहा।


 " पापा.... " आगे एक शब्द ना निकल सका रजनीश के मुँह से। बस रोने लगा। उसके आँसुओं ने सब कुछ कह दिया। आज उसको बड़ा ही अपराध बोध महसूस हो रहा था। सुजाता भी रोये जा रही थी।


दूसरे दिन माँ पापा के साथ सभी रेनूकोट आ गए लेकिन सभी को अब जो ख़ुशी मिली थी वो पहले कभी नहीं मिली।

सभी की हसरत जो पूरी हो गयी थी।


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