सफलता का लॉकर
सफलता का लॉकर
आज राजेश का मन बड़ा ही उदास था। अब तक 4-5 काम शुरू किये सब के सब घाटे में चले गए बहुत ऋण भी हो गया था। मन भी अशांत था। जिंदगी में लगता था जैसे सब कुछ खत्म हो गया है।
सोचते सोचते छत पर आ गया। कहीं पास में भागवत कथा चल रही थी उसकी आवाज़ आ रही थी। अशांत मन ईश्वर की तरफ भागता है। बस राजेश भी सीधे पहुंच गया भागवत पंडाल में। गद्दी पर आसीन व्यास जी महाराज के प्रवचन सुनकर बहुत प्रभावित हुआ और अलग से मिलने की इच्छा के साथ भागवत कथा के बाद व्यास जी महाराज के सामने एकांत में मिलने पहुँच गया।
"आदरणीय गुरुदेव आप ने आज भाग्य के बारे में बात की तो क्या परिश्रम हम व्यर्थ ही करते हैं ज़ब सब कुछ भाग्य से मिलता है?" राजेश ने प्रश्न किया।
महात्मा जी का जबाब राजेश के मन के अंदर के सब जाले खोलते चला गया।
महात्मा जी ने कहा- " बेटा! तुम्हें तुम्हारी भाषा में ही समझाता हूँ। तब समझ आयेगा। तुम्हारा कोई बैंक में लॉकर है ?
" जी हां गुरुदेव। " राजेश ने कहा।
" लॉकर की दो चाबियाँ होती हैं। एक चाबी आपके पास होती है और एक चाबी मैनेजर के पास। मैनेजर के पास जाकर हम आज्ञा लेते हैं और फिर आप और मैनेजर दोनों अपनी चाबियाँ लॉकर में लगाते है तब लॉकर खुलता है। " महात्मा जी ने कहा।
" बिलकुल सही बताया गुरुदेव! ऐसे ही होता है। " राजेश ने कहा।
" अब आप समझिये भाग्य और पुरुषार्थ को। आपके पास जो चाबी है वह है परिश्रम की और भगवान के पास चाबी है भाग्य की। ज़ब तक दोनों चाबी नहीं लगेंगी तब तक ताला नहीं खुलेगा। आप पुरुषार्थी पुरुष है और मैनेजर भगवान। आपने ईश्वर से बिना किसी भय के, सम्मान के साथ अनुमति लेते रहनी चाहिए और अपनी चाबी यानि परिश्रम वाली चाबी लगाते रहना चाहिए पता नहीं कब आपकी प्रार्थना स्वीकृत करके ईश्वर भाग्य वाली चाबी लगा दे और ताला खुल जाये।
ज्यादातर लोग हार मान लेते हैं और पता चला तभी ईश्वर ने अपनी भाग्य वाली चाबी लगाई और उस समय आपकी परिश्रम वाली चाबी लगी ही नहीं है तो ताला सफलता (लॉकर ) का कैसे खुलेगा? "
आज राजेश के मन के सारे जाले खुल गए। एक नए विश्वास के साथ वह घर की तरफ चल दिया।