मानव सिंह राणा 'सुओम'

Others

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मानव सिंह राणा 'सुओम'

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नैतिक पतन

नैतिक पतन

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"आज हम पढ़ेंगे नैतिक शिक्षा। तो बच्चों ये बताओ आप में से कौन - कौन अपने से बड़ों के पैर छूता है ? ” अध्यापक रामरतन ने बच्चों से बात करते हुए कक्षा में प्रश्न किया।

सभी बच्चों ने हाथ खड़े कर दिए। उसके बाद नैतिक शिक्षा में श्रवन कुमार की कहानी बच्चों को सुनाई। बच्चे बड़े ही खुश थे तभी मास्टर रामरतन के पिताजी खाना लेकर आ गए।

राम रतन ने बाहर आकर टिफिन लेने के लिए जैसे ही हाथ बढ़ाया तो देखा पिताजी के हाथ से खून बह रहा था व टिफिन सारा मिट्टी में सना हुआ था।

"ये क्या कर लाये हो ? ये टिफिन क्यों गंदा हो रहा है ? ” रामरतन ने चीखते हुए कहा।


" रास्ते में ठोकर लगी तो मैं गिर गया। वहीं रेत मिट्टी में टिफिन सन गया। ” पिता दशरथ स्वरूप सहमते हुए बोले।


"अब मैं क्या खाऊंगा ? आप से एक काम ढंग से नहीं हो सकता। खाने को दस सेर चाहिए लेकिन काम धेले भर का नहीं कर सकते। ” दशरथ स्वरूप के हाथ से टिफिन छीनकर चीखते हुए रामरतन ने कहा।

”पर.... बेटा खाना तो सही है थोड़ी सी मिट्टी टिफिन के ऊपर लगी है लाओ मैं साफ कर देता हूँ।” कहते हुए पिताजी ने अपने साफा से उसका टिफिन साफ कर दिया और टिफिन उसके हाथ में पकड़ा कर वो तेज कदमों से स्कूल प्रांगण से बाहर निकल गए। कभी अपने हाथ में लगी चोट देखते कभी रोने लगते।

जब रामरतन छोटा था कितने नाज से पाला था परन्तु आज वहीं क्या व्यवहार कर रहा था?

आज भी वह दृश्य आँखों से नहीं हटता जब साईकिल का हैंडल रामरतन के पेट में घुस गया था। दशरथ स्वरूप पागल से हो गए थे। अपना खून देकर कैसे बचाया था इसको और आज उसको अपने पिता के खून की तनिक परवाह नहीं।

 सोचते हुए आगे बढ़ चले दशरथ स्वरूप।

इधर इतिहास बदलते परिदृश्य को देखकर विचलित हो रहा था। ये कैसा बदला व्यवहार है जिनके कंधों पर नया इतिहास लिखने की जिम्मेदारी है वही आज इस तरह का व्यवहार माँ बाप से कर रहे हैं तो इनको नैतिक शिक्षा सिखाने की जिम्मेदारी देने वाले कौन है ?


ये कैसी नैतिक शिक्षा है ? क्या यह नैतिकता का पतन नहीं है ? क्या हो रहा है मेरे संस्कारी देश को ? आगे भविष्य की गोद में क्या है ?


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