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Kunda Shamkuwar

Abstract

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Kunda Shamkuwar

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हक़ का बँटवारा

हक़ का बँटवारा

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औरत ने जब बाहर बाज़ार जाने के लिए कदम बढ़ाया....चारो ओर हंगामा हुआ...घर घर मे उसे कहा जाने लगा, "तुम्हे जो चाहिए वह सब मैं ला दूँगा।तुम्हे बाहर जाने की ज़रूरत नही...."

औरत पीढ़ी दर पीढ़ी घर मे रहने लगी।घर के कामकाज़ में उसे महारत हासिल हो गयी।घर मे ही रहते रहने से उसे दिशा ज्ञान कैसे होता भला?बस फिर क्या था?जब तब मर्द औरत के दिशा ज्ञान पर चुटकुले सुनाने लगा....

मर्दों का बाहर जाने का सिलसिला बदस्तूर जारी रहा।

काम के सिलसिले में....बाजार के सिलसिले में....दुनियादारी के सिलसिले में.....

मर्दों ने हक़ का बँटवारा करने का हक़ भी हासिल कर लिया....हर चीज़ पर पहला हक़ उनका ही रहा।

जमीन पर......जायदाद पर.....मकान पर....दुकान पर.....

औरत का क्या? वह बस घर मे ही सिमटकर रहे?

हक़ का बँटवारा करने का हक़ भी मर्दों ने हासिल कर लिया।

औरतों को न बँटवारा करने का हक़ मिला और न ही बँटवारे का जायज़ हक़ भी !

इस नाइंसाफी का जवाब है किसीके पास?


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