हॉस्टल की शाम
हॉस्टल की शाम
नाज़रीन ए गिरामी अज़ीज़ ए ख्वातीन व हज़रात
बात कदीम वक्त की है,
दौर ए दानिशकदाह ( कॉलेज के दिन ) था हमारा और हम हमारे टाउन से लग भग 530 km दूर हॉस्टेल रहते थे
यह वह दौर था जब हमने उसे पहली बार देखा था हम एक क्लास रूम के बाहर खड़े थे वोह आए और उन्होंने हमसे किसी किताबी मोजू के बारे में गुफ्तगू की।
लेकिन हमारे अंदाज़ ए बयां को देख कर वोह हमे दिल ही दिल में चाहने लगे थे लेकिन हमारी कोई ऐसी ख्वाहिश नही थी की हम उनसे मुहब्बत करे
वोह हर बार किसी न किसी बात को लेकर हम से गुफ्तगू का बहाना बना कर गुफ्तगू को आते ओर घंटो हम से उस मोजू पर गुफ्तगू किया करते।
हम चाहते थे की हम उन्हे समझाए की यह जो आप बहाना लगा कर आते हो उसके पीछे की वजह क्या है लेकिन हम उन्हे कह नही पाते न वोह हम से अपनी दिली आरज़ू को बयां कर पाते।
लेकिन वोह वक्त भी दूर न था जब उन्हें अपनी मुहब्बत का हम से इज़हार करना था।
शाम का वक्त था हम हॉस्टल के बाहर खड़े थे वोह आए और उन्होंने रंगीन मिजाज़ में हम से कहा की हम आप से बे इंतेहा मुहब्बत करते है हमने जब से आप को देखा तब से हम इसी चाह में है की आप ता उम्र तक हमारे साथ रहे ओर हम से मुहब्बत करे
लेकिन हमारा मन कुछ और था हम नही चाहते थे की इस वक्त हम इस राह को लगे हमे हमारी पढ़ाई की पड़ी हुई थी
तो हमने बा कायदा उन्हे कहा समझाया लेकिन वोह एक न समझे वोह ज़िद्द लगाए बैठे की आप भी हम से इज़हार ए मुहब्बत करे
बात यहां तक आ पहुंची की वोह हमारे कदम पर आ गिरे और कहने लगे की आप जब तक हमसे अपने इज़हार ए इश्क नही करते तब तक हम आप को छोड़ने वाले नही है
हम काफ़ी शर्मिंदगी की कैफियत में थे हम ने काफी समझाया उन्हे आखिरकार वोह माने और उन्होंने हमे चन्द दिनों का वक्त दिया और कहा की इस दिन तक हम आप से न मिलेंगे न आप से किसी भी तरह की गुफ्तगू करेंगे बस आप उस दिन आप गुजरी बता दीजिएगा
हमने कहा ठीक है और हम चल दिए
हम जेसे ही हमारे कमरे में पहुंचे हम उनकी मुहब्बत और तर्ज़ ए इज़हार ए मुहब्बत में खो गए की भला यह केसा तरीका था उनका हमे मनाने का
हम भी उनकी इस अदा को देख उन्हे मन ही मन अपना दिल दे चुके थे
लेकिन सोच में थे की उनसे कहेंगे केसे
अब वोह वक्त भी करीब था जब हमे उनके सवाल का जवाब देना था
वोह दिन आ गया हम उनसे मिलने की जुस्तजू में थे लेकिन वोह हमे नही मिले हम हर वक्त उनकी जुस्तजू में रहते की आखिर वोह कहा हैं
दो दिन गुज़र गए और हम उनकी जुस्तजू में ही थे की हमे पता हुआ की वह हमसे नाराज़ है जिसके शबब वोह हमारे रूबरू नहीं आ रहे थे
ता हम
अब हमे उन्हे इज़हार ए मुहब्बत के साथ साथ मनाना भी था
हम सोच ही रहे थे की उनके सामने केसे जाए और केसे कहे
लेकिन उनकी नाराज़गी भी ज्यादा दिनों की नहीं थी
वोह हमारे रूबरू आए और कहने लगे की जनाब कई दिन गुज़र चुके आप ने हमारे इज़हार का कुछ जवाब इनायत नही किया हम मुस्कुरा कर गर्दन हिला दिए
ओर हमे शेर और गज़ल का काफी शोक है जिसके चलते हमने इक़बाल साहब का एक शेर कह दिया
की
वोह हर्फ ए राज़ के शिखा गया है मुझ को जुनूँ
खुदा मुझे नफश ए जिब्राइल दे तो कहुँ
तो वोह हस पड़े और उन्होंने भी एक शेर कह दिया दाग देहलवी साहब का
राह पर लगा तो लाए है उनको बातो में
और खुल जायेंगे दो चार मुलाकातों में
हम शर्म से वहा से दौड़ लगा दिए
ओर हर इतवार को पढ़ाई से फारिक होकर हम दोनों अक्सर कहीं न कहीं घूमा करते
शुक्रिया .....

