होली
होली
आज मालतीदेवी बहुत खुश हैं सुबह से ही पकवान बनाने में लगी हुई है,होली का त्यौहार है और साथ ही दोनों बेटी -दामाद, नातिनों के साथ और बेटा- बहू पोतों के साथ आने वाले हैं तो वे अपने घुटनों के दर्द को भूल कर जुटी हुई हैं काम में साथ ही अपने पतिदेव की गई बार-बार चाय की फरमाइश को भी पूरी कर रहीं हैं ।उनके पति मनमोहन जी सरकारीनौकरी में हैं और आज उनकी छुट्टी है ।आज होलिका दहन है और कल होली है।जब भी वे घर पर होते हैं तो मालतीजी का आधा समय तो उनकी सेवा में ही चला जाता है बात बात में पत्नी को पुकारते हैं, एक पैर रसोई में और दूसरा मनमोहन जी के पास रहता है, ऐसे ही जिन्दगी कट रही है, बच्चों के घर बस गए हैं ,बेटी भुवनेश्वरमें रहती है ,उसकी दो बेटियां हैं, दामाद जी अच्छे स्वभाव के हैं ठीक ठाक कमा लेते हैं विद्या खुश है वहाँ ।बेटा विधान इंजीनियर है वह राउरकेला में हैं बहू के साथ, बच्चे छोटे हैं पर विधान को घर का कोई भी काम नहीं आता तो बहू को साथ लेकर चला गया ।
तो आज सब आने वाले हैं, खाना लगभग बन चुका है और मालती पतिदेव को खाना खिला कर इंतजार में दरवाजे पर खडी हैं ,बच्चों के साथ ही खाना खाने का विचार है ।समय बहुत बीत गया है अब तक तो आ जाना चाहिए था मन में बार बार विचार रही है, धीरे-धीरे शाम होने लगी वे अब भी इंतजार कर रही हैं ।अबतक भूखी प्यासी ही हैं, अब वे मोबाइल फोन पर फोन लगातीं हैं फोन में घंटी बजी पर किसी ने उठाया ही नहीं, वे शांत हो जाती है, तभी मनमोहन जी शाम की सैर से लौट कर आए और उन्होंने कहा कि तब से यहीं खड़ी हो क्या हुआ।मालती जी बोलीं अब तक नहीं आए और फोन भी नहीं उठाया।अरे भई मालती क्यूँ परेशान होती होआ जाएँगे अब चलो खाना भी नहीं खाया है तुमने क्यों अपनी बीमारी को बढ़ा रही हो,चलो अंदर चलो कुछ खा लो,और मालती को घर के अंदर ले गए,मनमोहन चुपके से अपने आँसू पोंछ लेते हैं (पिछले सात वर्षों से मालती को ये बीमारी है हर दिन वे ऐसे ही खाना बनाकर इंतजार करती रहती हैं, सात साल पहले एक मामूली सी बात पर विधान घर छोड़ कर चला गया और आना तो दूर की बात है माँ का फोन भी नहीं उठाता)हाय रे आजकलकी जालिम संतान !!!