हमारी अधूरी कहानी
हमारी अधूरी कहानी
बहुत कोशिश की तुमसे नफरत करने की, ये सोचकर कि ज़िन्दगी शायद आसान हो जायेगी। फिर ख़्याल आया, बेवज़ह प्यार तो हो सकता है पर नफ़रत, उसके लिए तो वजह भी चहिये। फिर वजह ढूँढने लगी मैं, तुमसे नफ़रत जो करनी थी।
पर वजह बनाती भी तो क्या। तुम्हारी वो खूबसूरत मुस्कान, जिसे देखकर मैं खो जाती थी शायद कहीं या तुम्हारी वो नज़रें जो मेरे होश उड़ाने के लिए काफ़ी थे या तुम्हारी वो बे सिर-पैर वाली बातें जिनको मैं सुध बुध खो कर बस सुनती रहती थी या फिर तुम्हारे साथ बीते कुछ खूबसूरत पल जिन्हें याद करके अब भी मुस्कुरा देती हूँ पगलों की तरह।
खैर एक बात तो समझ चुकी थी मैं कि तुमसे नफरत करने की वजह ढूँढ़ना मेरे लिए नामुमकिन है, फिर सोचा क्यूँ ना ख़ुद की ग़लती मानकर तुम्हे भुला दिया जाये पर ख़ुद को ग़लत ठहराती भी तो किस बात के लिए इसलिए कि मैंने तुमसे प्यार किया था ?
लेकिन प्यार ग़लत कैसे हो सकता है। हाँ, प्यार में गलतियां हो सकती हैं पर जहाँ सिर्फ एक एहसास हो जिसमें दिल किसी के लिए जीवन भर खुश रहने की दुआएं मांगने लगे वो ग़लत कैसे हो सकता है और वैसे भी प्यार तो प्यार होता है जो कि सही या गलत नहीं होता सिर्फ प्यार होता है।
इन सब बातों की कश्मकश में फिर से एक ख्याल आया, आख़िर तुम्हें भूलना ही क्यूँ।
बस फिर क्या था, तुम्हारी यादों को ही हमसफर बना लिया मैंने, जो कभी मुस्कुराहट बनकर लबों पर आ जाती हैं तो कभी खूबसूरत नग़मा बनकर जुबाँ पर।