एक सैनिक की प्रेम कहानी

एक सैनिक की प्रेम कहानी

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"ऐ गुजरने वाली हवा बता, मेरा इतना काम करेगी क्या,मेरे गाँव जा, मेरे दोस्तों को सलाम दे, मेरे गाँव में है जो वो गली, जहाँ रेहती है मेरी दिलरुबा, उसे मेरे प्यार का जाम दे, वहीं थोड़ी दूर है घर मेरा, मेरे घर में है मेरी बूढ़ी माँ मेरी माँ के पैरों को छू के तू, उसे उसके बेटे का नाम दे.."

यूँ तो हर किसी की प्रेम कहानी अनोखी होती है..

पर सीमा पर तैनात हमारे जवानों की प्रेम कहानी को देखकर लगता है कोई भी प्रेम कहानी इनकी प्रेम कहानी से बेहतर नहीं हो सकती। 

हालाँकि इस बात का अहसास भी हमें सिनेमा हीं करवाती है, लेकिन इसमे भी कोई दो राय नहीं कि इस भूमिका को निभाने में हिन्दी सिनेमा ने कभी कोई कसर नहीं छोड़ी।

बड़ी असमंजस भरी होती है हमारे जवानों की प्रेम कहानी। एक तरफ गृहस्थ प्रेम तो दूसरी ओर देश प्रेम होता है।

एक तरफ अपनी महबूबा से किये वादे तो दूसरी ओर देश के जनता की हिफाज़त का कर्तव्य। एक तरफ माँ के आँचल की छाँव तो दूसरी ओर मातृभूमि की सुरक्षा। एक तरफ यार दोस्तों की महफ़िल तो दूसरी ओर दुश्मनों के नापाक इरादे, और इस असमंजस के बीच भी हमारे जवान एक पल भी नहीं लगाते सोचने में और मातृभूमि की सुरक्षा को चुनते हैं।

वो ख़ुद भी अंजान होते हैं इस बात से कि वो वापस आएंगे भी या नहीं पर वादा कर के जाते हैं अपने माँ-पिताजी, अपनी महबूबा, अपने दोस्त, अपने गाँव की मिट्टी से कि..मैं वापस आऊँगा, मैं वापस आऊँगा, ताकी उनकी मुस्कान ज़रा भी फीकी ना पड़े।



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