माफ़ी

माफ़ी

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हाँ.. माँग ली मैंने उससे माफ़ी। हालाँकि ये आसान नहीं था।


कई दफा सोचने और हिम्मत जुटाने के बाद मैंने फैसला कर लिया कि अब माँग लूँगी माफ़ी, क्योंकि, अपनी ही ग़लती का बोझ समय के साथ-साथ इतना भारी हो गया था की उसे ढोना अब मुश्किल हो गया था। मुझे पूरा यकीन था कि माफ़ी माँग लेने के बाद वो दिल का बोझ उतर जायेगा।


एक दिन हिम्मत जुटा कर माफ़ी मांग ली मैंने पर उसे तो मुझसे कोई शिकायत ही नहीं थी। बड़ी आसानी से कह दिया उसने कि मुझे तुमसे कोई शिकायत नहीं है। मैं इस बारे में कुछ नहीं सोचती। तुम भी ज़्यादा मत सोचो और ख़ुश रहो।


तर्क तो यही कहता है कि उसकी इन बातों को सुनकर मुझे खुश होना चाहिए पर ये क्या? अब तो मैं अपनी नज़रो में और भी ज़्यादा गिर गई।


ख़ुद से यही सवाल था कि क्या मैं उन शब्दो को वापस ले सकती हूँ?? जिसकी वजह से ना जाने उसे कितनी तकलीफ़ हुई होगी


और जवाब था "नहीं"


फिर क्यों उसे मुझसे कोई शिकायत नहीं है? क्यों उसे मुझ पर गुस्सा नही आया? शायद मुझे अच्छा लगता, अगर वो मुझे बुरा भला कहती। पर नही, उसकी बातों ने तो उसे मेरी नज़रों में महान बना दिया और मैं अपनी हीं नज़रों में गिर गई। उसने शायद मुझे माफ़ कर दिया... पर मैं खुद को माफ़ नही कर पाई।


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