वो अटूट रिश्ता

वो अटूट रिश्ता

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जाने अनजाने कुछ जगह हमारे लिए बहुत खास हो जाते हैं, इसलिए नहीं कि वो जगह सच में बहुत खास है, बल्कि इसलिए.. क्योंकि किसी खास इंसान के साथ बिताये कुछ खास पलों की यादें उस जगह से किसी अटूट रिश्ते की तरह जुड़ जाती है।

कुछ ऐसा हीं अटूट रिश्ता सा बन गया है मेरा CP(Connaught Place) के साथ...वैसे तो डेल्ही में CP की अपनी एक अलग हीं पहचान है, पर मेरे लिए तो वो ,किसी की यादों का बसेरा है...जो हर पल किसी के क़रीब होने का अहसास दिलाती है। मेट्रो से बाहर आते हीं कहीं खो जाती हूँ मैं।

हर चेहरे को इस तरह ग़ौर से देखती हूँ कि क्या पता, किस चेहरे में वो ख़ास चेहरा नज़र आ जाये... हालाँकि दिल बेख़बर नहीं है इस बात से, कि ये सब सिर्फ़ नाक़ाम कोशिशें हैं मेरी... खुद को फुसलाने की। जिन रास्तों पर चलने की कोशिश है मेरी वो अनजान है मेरे लिए, इसकी कोई मंज़िल नहीं है, सिर्फ एक रास्ता जो जो किस ओर जाता है, ये भी नहीं जानती! पर ये कम्बख़त दिल भी ना... नासमझ है बहुत। पर इसकी नासमझी भी जैसे जादू सा कर जाती है मुझ पर, तभी शायद CP की सड़को पर अकेले घूमना भी एक अलग सा सुकून दे जाता है, और मैं कहीं गुम सी हो जाती हूँ, उस चहल-पहल वाले माहौल से परे... अपनी ही एक दुनिया में।


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