हिंदी: भाषा नहीं संस्कृति
हिंदी: भाषा नहीं संस्कृति
.
.
मनुष्य ने आदिकाल से ही संदेशों के आदान-प्रदान हेतु क्षेत्र के अनुसार अलग अलग बोली बोलना सीखा। कालांतर में यही बोलियाँ समृद्ध हो कर भाषा के रूप में विकसित हुई। आज विश्व के अनेक देशों में अनेक भाषाएं बोली जाती है परन्तु भारतवर्ष की हिंदी भाषा का अपना एक अलग महत्व है। यह न केवल भाषा है अपितु यह भारत की सांस्कृतिक विरासत भी है। संस्कृत भाषा के मूल से उत्पन्न देवनागरी लिपि में लिखी जाने वाला इस भाषा का वर्तमान स्वरूप अनेक परिवर्तन और परिष्करण के पश्चात सामने आया है।भारतीय संस्कृति में हुए परिवर्तन के सापेक्ष भाषा भी परिवर्तित होती रही।
हिंदी की सांस्कृतिक विरासत होने के साथ इसकी व्याकरण और रचना भी अन्य भाषाओं से विस्तृत और समृद्ध है।इसकी रचना बहुत सुक्ष्म एवं स्पष्ट वर्णों से हुई है। छोटी एवं बड़ी मात्राएँ भावों को शुद्धतम रूप प्रदान करती है।इसका शब्दकोश भी अन्य भाषाओं के मुकाबले विस्तृत है। विश्व की अन्य प्रचलित भाषाओं की अपेक्षा हिंदी में भाव-अभिव्यक्ति स्पष्ट और तीव्र है।भाव-अभिव्यक्ति के समय मुख मुद्राएं भी अन्य की अपेक्षा मनभावन होती है।हिंदी की यही विशेषताएं इसे अन्य भाषाओं से अलग और विशेष बनाती है। यह एक ऐसी भाषा है जो आत्मा से आत्मा को जोड़ने की क्षमता रखती है। हमारी भाषा की इन्ही विशेषताओं के कारण प्रत्येक भारतीय को इस पर गर्व है।
14 सितम्बर 1949 को संविधान सभा ने हिंदी को राजभाषा के रूप में अपनाने का निर्णय लिया था इसलिए प्रत्येक वर्ष हिंदी के प्रचार-प्रसार हेतु 14 सितम्बर को हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है।
आइए उत्सव के इस मौके पर इसे हम आत्मसात कर सांस्कतिक धरोहर से विश्व धरोहर बनाने में अपना योगदान प्रदान करें।