Aman Barnwal

Abstract Inspirational

4.3  

Aman Barnwal

Abstract Inspirational

गुरु की पहचान और चुनाव

गुरु की पहचान और चुनाव

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गुरु सूर्य है।

जिस प्रकार सूर्य की किरण पड़ते ही जर्रा जर्रा रोशन हो उठता है उसी प्रकार ज्ञान का प्रकाश पड़ते ही इन्सान की पहचान बन जाती है। इस ज्ञान के प्रकाश का स्रोत है गुरु। अत: गुरु सूर्य है।

जगत में विद्धमान सभी गुरु सम्मान के हक़दार है, परन्तु गुरु की पहचान बहुत मुश्किल है। इन्सान समझ ही नही पाता है कि आखिर किसे गुरु माने ? दूसरी ओर ज्ञान का व्यवसायीकरण, गुरु की कीमत लगा कर उसका मोल समाप्त कर रहा है। स्वयं गुरु भी अपना अस्तित्व धुंधला कर बैठे है और शिक्षक बन कर ही संतुष्ट हैं। गुरु के उपस्तिथि को जिस प्रकार अभिभावकों ने पैसो से आंकना शुरू किया है गुरु स्वत: विलुप्त होते जा रहे है।

आप सोच रहे होंगे कि आखिर क्या अंतर है शिक्षक और गुरु में? अंतर है , वही अंतर है जो ज्ञान और शिक्षा में है। वही अंतर है जो एक दाई माँ और माँ में है। वही अंतर है जो एक मित्र और सहपाठी में है। ये लेख लिखने का मेरा मकसद किसी शिक्षक का अनादर करना कदापि नही है  परन्तु ये समय है यह सोचने का कि क्या समाज और बच्चों के विकास के लिए केवल शिक्षक का होना पर्याप्त है? अगर हाँ तो फिर पढ़े लिखे लोग गुनाह क्यूँ करते है जबकि उन्हें सही गलत की जानकारी होती है ? लोग धड़ल्ले से यातायात के नियम तोड़ रहे है। बच्चे बेकार के मोबाईल के खेलों में अपना वक़्त और भविष्य बर्बाद कर रहे है।

क्यूँ ? आखिर इस परिस्थिति का जिम्मेवार कौन है?

महाभारत में अर्जुन और दुर्योधन दोनों को शिक्षा देने वाले गुरु द्रोण ही थे फिर आखिर ऐसा क्या था जिसने दुर्योधन और अर्जुन में असमानता पैदा की?

वो था "गुरु की पहचान करने और चुनाव करने का हुनर।"

गुरु द्रोण को कभी कुरु पुत्रों को गुरु नहीं समझा बल्कि उन्हें मात्र शिक्षक मान कर युद्ध कौशल की शिक्षा हासिल करते रहे। गुरु का दर्जा उन्होंने हमेशा केवल अपने मामा शकुनि को ही दिया। जब हम किसी को अपना शिक्षक बनाते है तो हम उनसे एक ख़ास विषय जिसके वो शिक्षक है उसी के बारे में सीखते है परन्तु जब हम किसी को गुरु का दर्जा देते है तो हम खुद को उनके जैसा बनाना चाहते है हम उनके हर एक कृत्य से प्रभावित रहते है। हम वैसे ही बनते चले जाते है जैसा कि हमारे गुरु का व्यक्तित्त्व होता है। जीवन में ज्ञान का प्रकाश फ़ैलाने वाले गुरु की पहचान और चुनाव हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण है। तो चलिए हम कोशिश करते है एक परिपूर्ण गुरु की परिभाषा का विश्लेषण करने की ।

गुरु सभ्य समाज का सम्मानित व्यक्ति होना चाहिए जिसके संगत मात्र से आप ख्याति प्राप्त करने लगे। गुरु वो है जो आपकी प्रतिभा को सँवारने से अधिक आपके दुर्गुणों के निवारण पर कार्य करें। गुरु वो है जो अपनी दी गयी शिक्षा को सार्वजनिक करे। गुरु वो है जो न सिर्फ आपको सिखाये बल्कि आपको खुद से सीखने की प्रेरणा दे। गुरु वो है जो आपको संतोष और स्थिरता की ओर ले जाये। गुरु वो है जिसका स्मरण मात्र ही आपको सुकून की अनुभूति कराए, आप में उम्मीद की किरण जगाये। याद रखे आपके जीवन में गुरु की कल्पना मात्र भी आपको एकलव्य बना सकती है परन्तु गुरु की कमी आपको लाख प्रतिभा होने के बावजूद कर्ण और दुर्योधन बना सकती है।

मुझे लगता है कि अब आपका मन अन्दर ही अन्दर आपके उस गुरु की तलाश कर रहा है जिसमे उपरोक्त सभी गुण मौजूद हो। अगर मेरा ये अनुमान सत्य है तो मुझे ये कहते हुए बहुत ही हर्ष का अनुभव हो रहा है कि इस लेख को लिखने का मेरा मकसद पूर्ण हो रहा है। तो चलिए गुरु के पहचान के बाद अब हम गुरु के चुनाव पर प्रकाश डालते है।

इन्सान उसके आसपास के सामाजिक वातावरण का आईना होता है। जब वो पैदा होता है तो उसे किसी भी ऐच्छिक क्रिया का ज्ञान नही होता है। वो उम्र के साथ सारी बातें धीरे धीरे सीखता चला जाता है। और ये बात सिखाने वाले कोई और नहीं बल्कि हमारे माता पिता, रिश्तेदार, पड़ोसी, मित्र, विधालय, शिक्षक और सहपाठी आदि होते है। आज के हालातों में हम किनसे क्या सीख रहे है इसका एक सारांश मैं आप सब के सामने रखना चाहता हूँ और आशा करता हूँ कि आप इसके यथार्थता अथवा अनुचितता की जांच करेंगे और साथ ही साथ जांच में पाए गए परिणाम को भी मुझसे साझा करेंगे।

मैं आज के दौर में उपलब्ध ज्ञान के प्रकारों और उनके स्रोतों को तालिकाबद्ध करता हूँ-

ज्ञान का प्रकार    ज्ञान के स्रोत/ गुरु 

दुनियादारी   माता पिता 

 संस्कार      समाज 

 ज्ञान    मित्र 

 जीवनशैली   चलचित्र 

भाषा और विभिन्न विषय   पड़ोसी और जान पहचान के शिक्षक 

शिक्षा    केवल शिक्षक 

प्रतिभा   सोशल मीडिया 

फैसला लेना    मोबाइल के खेल

प्यार करना   सोशल मीडिया

भोजन करना  विज्ञापन 

ढंग    चलचित्र से 

अपनापन    मतलबी लोग

आप उपरोक्त सभी ज्ञान के प्रकारों और उनके स्रोतों का बारीकी से निरिक्षण करें। क्या आप इन युग्मों से सहमत है? अगर हाँ तो ये लेख मैंने आपके लिए ही लिखा है।

मेरा दूसरा सवाल है कि क्या आप इन युग्मों से संतुष्ट है? 

यदि हाँ तो यकीन मानिये ये लेख आपके सोचने के ढंग को बदल देने वाला है और यदि आप संतुष्ट नही है तो ये लेख आपके और आपके बच्चो के विकास को एक अलग रूप देने वाली सिद्ध होगी।

आईये अब हम जानते है कि किस प्रकार का ज्ञान हमें किस स्रोत से प्राप्त करना चाहिए।

मैं आज के दौर में उपलब्ध ज्ञान के प्रकारों और उनके उचित स्रोतों को तालिकाबद्ध करता हूँ-

ज्ञान का प्रकार      ज्ञान का स्रोत/ गुरु का उचित उदहारण 

दुनियादारी       आदर्श ग्रंथ गीता 

 संस्कार         रामायण 

 ज्ञान        शिव और उसके सच्चे अनुयायी

 जीवनशैली        ज्ञानी महापुरुष का जीवन  

भाषा और विभिन्न विषय    आदर्श शिक्षक 

शिक्षा                 किताबें और शिक्षक का निर्देश 

प्रतिभा                 अपनी रूचि और क्षमता 

फैसला लेना         सार्थक कथाओ से 

प्यार करना         माता 

भोजन करना        शरीर की जरुरत

ढंग         आदर्श पिता 

अपनापन             सच्चे मित्र 

मुझे आशा है कि ये युग्म अधिकतर पाठकों को उचित प्रतीत होगी और अगर आपको एक संतोषजनक समाज और अपने बच्चे के उचित विकास की लालसा है तो आज और अभी से उसके ज्ञान के स्रोतों का उचित चयन करना शुरू कर दें।

अपने बच्चों के लिए गुरु की खोज यथाशीघ्र शुरू कर दें। तथा इस बात का भी ख्याल रखे कि कौन सा ज्ञान उसे उम्र के किस हिस्से में प्राप्त करना है ।

आप चाहे तो खुद को भी अपने बच्चों का गुरु बना सकते है।


आओ अपना कर्त्तव्य निभाओ ।

शिखर की राह बड़ी कठिन है ,

हालात भी अनुकूल नही दिखते।

हम इंसान तो अब खुद की 

गलतियों से भी नही सीखते ।

हर किसी से उम्मीद है हमें,

कभी खुद से उम्मीद नही रखते।

दूसरो के गुनाह बताने वाले ,

हम खुद को है दलीलों से ढकते।


पर फिर भी तुम इन्सान हो 

अब तो वापस लौट आओ।

खुद भी जागो इस बेहोशी से,

औरो को भी जगाओ ।

जिस समाज की कल्पना करते हो,

उसके लिए अभी से कदम बढाओ।

दूसरो से कोई उम्मीद मत करो,

तुम बस अपना कर्तव्य निभाओ।



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