बच्चों से कितनी उम्मीद?
बच्चों से कितनी उम्मीद?


दोस्तों आज का ये लेख एक ऐसी विषयवस्तु पर आधारित है जिसके आस पास ही हमारी जिन्दगी घूमती रहती है| हमारी जिन्दगी में हम जो कुछ भी होते है उसमे इनका योगदान आप जितना समझते हैं उससे कहीं ज्यादा है| मेरा ये लेख लिखने का मकसद ये सन्देश हर माता पिता तक पहुचाना है कि बच्चों में ज्ञान का विकास किस क्रम में होना चाहिए| मुझे उम्मीद है कि मेरे सभी पाठक इस लेख को काफी गंभीरता से पढेंगे और अपने जीवन में और अपने बच्चों के प्रति अपने रवैये में आवश्यक बदलाव जरूर लायेंगे| मैं आप सभी पाठकों से प्रतिपुष्टि की उम्मीद रखता हूँ|
आज जिन्दगी काफी तेज हो गयी है| लोगो के पास वक़्त बहुत ही कम है या यूं कहें कि दिन के 24 घंटे मनुष्य के लिए आज कम पड़ रहे हैं| दुनिया में रोज नये नये साधन बढ़ रहे है पर फिर भी लोगों के पास वक़्त नही बच पा रहा है| और ये जो वक़्त की कमी है इसकी आपूर्ति हम अपने परिवार और बच्चों के लिए जो हमारा वक़्त है उससे कर लेते है| दरअसल हम उनके लिए वक़्त तो निकालते है पर उस वक़्त में हमें करना क्या है ये हममें से कितनो को नही पता| हम परिवार के साथ भोजन करना, बच्चो के साथ कुछ देर टीवी देख लेना, और जब मेहमान आये तो कुछ वक़्त साथ बिता लेने को ही पर्याप्त मान कर चलते है| परन्तु जैसे जैसे वक़्त बीतता है हमें यह महसूस होने लगता है कि हमारे बच्चे हमसे छूट रहे है और उस वक़्त आप सबसे पहले अत्यधिक प्यार-दुलार, फिर लालच और फिर हार कर डांट का सहारा लेते है| परन्तु हम ये कभी नही सोच पाते कि आखिर बच्चों में ये दुर्गुण आये कहाँ से| कैसे कोई बच्चा शांत तो कोई उदंड हो जाता है| कैसे कोई जिद्दी तो कोई समझदार हो जाता है| कैसे कोई पढ़ाकू तो कोई खेलकूद में रूचि लेने वाला बन जाता है|
एक बच्चा उसके आसपास के माहौल का आईना होता है| कई बार आपको लगता है कि आप तो अपने बच्चे को अच्छी बातें सिखा रहे है, अच्छे स्कूल भेज रहे है परन्तु बच्चा कुछ ऐसी बातें सीख रहा है जो आपने या उसके शिक्षक ने उसे नही सिखाया| ये बातें वो अपने आसपास की घटनाओं से सीखता है| ये बातें वो अपने प्रति आपके या समाज के बर्ताव से सीखता है| अब आप कहेंगे कि चलो हम अपनेआप को सुधार लेते है फिर भी समाज को कैसे सुधारें? तो मैं ये बताना चाहूँगा कि ये आपके और समाज के बारे में नहीं है| ये सिर्फ और सिर्फ उस बच्चे के बारे में है| बच्चा उस हीरे की तरह है जो अगर थोड़ी देर के लिए कीचड में गिर भी जाये तो भी बस एक सफाई से उसकी चमक वापस आ सकती है| परन्तु पहले उसे हीरा बनाना होगा | उसे इस काबिल बनाना होगा| उसे किसी भी चीज को सिखाने से पहले उसे सही गलत को पहचानना सिखाना होगा|
मुझे पता है आप सब को लग रहा होगा कि ये सब तो सुनी सुनाई बातें है| ये सुनने में और बोलने में आसान
है पर इस पर अमल करना बहुत कठिन है तो हाँ आप बिलकुल सही है| ये सच में बेहद कठिन है| परन्तु यही आपके बच्चे का भविष्य बनाएगा न कि महंगे स्कूल की पढाई या पैसों और साधनों का अम्बार|
आज बच्चा जन्म भी नहीं लेता और पिता ज्यादा पैसा कमाने के पीछे भागना शुरू कर देते है| वो जोड़ने लगते है उसके स्कूल का खर्च, उसके किताबों का खर्च, उसके खिलौनों का खर्च| वो अभी ही सुनिश्चित कर लेते है कि उसे आई ए एस बनना है या डॉक्टर| ये बिलकुल ऐसा ही जैसे कि कोई रसोईया गर्म तवे पर ही आटा गूंध रहा हो| जरा सोचिये वो रोटी क्या खाने के लायक रहेगी| नही, क्योंकि रोटी बनाने का एक क्रम है| जिसमे पहले आटा गूंधते है फिर कुछ देर छोड़ देते है फिर उसको बराबर से गोल करके उसको बेलते है और रोटी बेलते वक़्त बेलन के दबाव का ख्याल रखते हैं| फिर रोटी को सेंकते है| एक तरफ रोटी हलकी सेंकतें है दूसरी तरफ ज्यादा| तवा भी बिलकुल उचित मात्रा में गर्म रखते है| फिर रोटी अच्छे से सेंक लेने के बात उसे अधिक आंच पर प्रत्यक्ष सेंकते है और इस बात का ख्याल रखते है कि हल्का सेंका गया हिस्सा आंच की तरफ मतलब नीचे हो| और तब जा कर एक परिपूर्ण रोटी बन पाती है|
मगर जब हमारे बच्चों की बात आती है तो हम उसके पैदा होते ही उसमे टैलेंट ढूंढना शुरू कर देते है| हम उसकी तुलना दुनिया के सबसे प्रतिभावान बच्चे से करने लगते है| हम चाहते है लोग आज ही हमारे बच्चे को महान समझना शुरू कर दें| परन्तु क्या ये उचित है? नहीं ये एक तरह की बेवकूफी है और माता-पिता का यह रवैया कब बेवकूफी से अपराध का रूप ले लेता है ये वो कभी नही जान पाते है| आज अगर आप किसी 3 साल के बच्चे से मिलेंगे तो उसके माँ बाप तुरंत उसको अंग्रेजी की कविता सुनाने के लिए बोलेंगे| फिर बातों ही बातों में ये भी बताने की कोशिश करेंगे कि वो कितना होशियार है| ये हम सब के घरों में हो रहा है| उस ३ साल के बच्चे को आज ही अपने आप को साबित करना है वरना उसके माँ बाप के द्वारा की गयी उसके भविष्य की सारी योजना असफल हो जाएगी|
उम्मीद करता हूँ आप सभी माता पिता अपने अन्दर झाँक रहे होंगे| आपको भी महसूस हो रहा होगा कि आपने भी अपने उम्मीदों की गठरी उस तीन साल के बच्चे पर लाद दी है पर अब आप चाहते है कि आपका बच्चा एक उचित क्रम में ज्ञान हासिल करे| अब आप भी जानना चाहते है कि जब आप अपने बच्चों के साथ वक़्त बिताये तो उससे कैसा बर्ताव करें? किस उम्र में उसे क्या सिखाये? और किस उम्र में उससे क्या उम्मीद रखें?
आपके इन सवालों का जवाब मैं अपने अगले लेख संस्कार, शिक्षा और प्रतिभा में ले कर आऊंगा| याद रखिये ये बहुत कठिन है परन्तु जरुरी है उस बच्चे के भविष्य के लिए भी और समाज के भविष्य के लिए भी|