रिश्तों की समझ

रिश्तों की समझ

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शाम के आखिरी किरणों के भी लुप्त होने का वक़्त था । पिताजी चाय का इंतजार कब से के रहे थे। मां चुपचाप नज़रे झुकाए बैठी थी । तभी पायलों की छनछन्न के साथ बहू हाथ में चाय ले कर आयी । और इंग्लिश में बोली "सॉरी पापाजी"।

आंखों में शर्म और उससे भी ज्यादा हिचकिचाहट साफ़ दिख रही थी । । ससुराल की पहली चाय बनाई थी अन्नू ने। ऐसे तो नाम अनामिका है पर ससुराल वालों ने अन्नू ही सुना था तो अन्नू ही बुलाते है।

मम्मी ने अन्नू को पैनी नज़रों से निहारा और फिर मुंह फेर लिया।

इधर पापा ने जैसे ही चाय की पहली कश ली तो मुंह बिखेर दिया और पूछा कि "अन्नू तुमने चाय का स्वाद चखा था?"

अन्नू घबराते हुए बोली "नहीं पिताजी क्यूं क्या खराब बनी है क्या?"

अन्नू डर गई थी ।

फिर पापा जी ने कहा कि जाओ पहले तुम भी चख लो और चाय का कप टेबल पर रख दिया।अन्नू बड़े अफसोस के साथ रसोई में गई और चाय को चखा ।

ये क्या ?अगले ही पल चाय थूक दिया अन्नू ने, छी! कितनी कड़वी चाय है ।


अन्नू डरते हुए बाहर आई। पापा जी से माफी मांगने ही वाली थी कि देखा कि मम्मी पापा दोनों ने चाय पी कर खत्म कर दिया है।

कुछ कहती उससे पहले ही पापा जी बोल उठे । "तुमने आज छुटकी की याद दिला दी। उसके हाथ की पहली चाय भी बिल्कुल ऐसी ही थी।"

पापा जी शायद अन्नू का मजाक उड़ा रहे हैं। ऐसा अन्नू सोच रही थी ।

क्योंकि उसके घर में भी उसके खराब खाने का सब मिल कर ऐसे ही मजाक उड़ाते थे ।

अन्नू का चेहरा उतर चुका था, वो सहम गई थी ।


अगले ही पल मम्मी उठीं और उसका हाथ जोरो से पकड़ कर खींचते हुए रसोइए में ले गईं और बोलीं

" तेरी मां ने तुझे कुछ नहीं सिखाया चल तुझे सिखाती हूं। "

ऐसे हालात का सामना अन्नू ने कभी नहीं किया था ,वो चुपचाप चाय बनाना देख रही थी ।

मम्मी ने कहा " देख क्या रही हो चलो बनाओ चाय मैं बता रही हूं कैसे बनानी है।"


चाय बन चुकी थी। मम्मी ने अन्नू को चाय दिया और बोला पियो और बताओ कैसी बनी है

चाय पीते ही अन्नू के चेहरे पर मुस्कान की लहर आ गई।उसे तो विश्वास ही नहीं हो रहा था कि ये चाय उसने बनाई थी।

वो पूरे जोश से पापाजी को चाय पिलाने के लिए आगे बढ़ी पर मम्मी ने टोक दिया।

और सपाट शब्दों में बोली "अन्नू तुम्हे एक और कड़वी चीज को मीठी बनाने की जरूरत है।"

अन्नू का सारा जोश खत्म हो गया। वो डरे और उदास नज़रों से पूछी "क्या मम्मी जी"?

मम्मी ने कहा " हम तुम्हारे मम्मी जी पापा जी नहीं हैं।"

"मम्मी पापा हैं।"

दो पल तो अन्नू कुछ समझ ना पाई पर उसके बाद उसने खुद को रोका नहीं मम्मी के पैर छू लिए ।पर सच तो ये था कि वो मम्मी को गले लगाना चाहती थी।

खैर इतना सब हो ही रहा था कि पापा भी रसोई में आ गए। और बोले "मुझे ठंडी चाय मिलेगी क्या ?"

अन्नू बड़े ही आत्मविश्वास से बोली "नहीं पापा मैं फिर से गर्म कर दूंगी।"

पापा को लगा कि छुटकी लौट आई है और , अन्नू का मन चहक उठा है ।मम्मी अपने गुस्सैल आंखों के पीछे मुस्कान छिपाए बैठी हैं।


कुछ ऐसे ही बनते हैं रिश्ते,बनते हैं बनाए नहीं जाते। निभते हैं, निभाए नहीं जाते।

पापा ने कड़वी चाय भले पी थी पर सदैव जीन्स पहनने वाली अन्नू ने भी साड़ी का बोझ उठा रखा था। । ।

चंचल मन की अन्नू ने आंचल के नीचे अपने आजाद ख्यालों को दबा रखा था।ना पापा की मजबूरी थी ना अन्नू की लाचारी। ये तो वो संस्कार था जो जाने अनजाने में उसे अपने परिवार से मिला होगा।

उन्हें रिश्तों की खातिर त्याग का स्वाद

कभी ना कभी तो जरुर मिला होगा ।

शर्तें तो उनकी शादी में भी रही होंगी,

और लेन देन भी कुछ हुआ होगा।

पर उन पहलुओं को सभी ने,

सकारत्मक भाव से छुवा होगा।

शादी के पहले की शर्तों का

शादी के बाद कोई मोल नहीं ।

सब कुछ घुल जाता है प्यार में ,

प्यार सा कोई घोल नहीं ।

अन्याय के लिए लड़ना सीखते सीखते,

हम प्यार करना ही शायद भूल गए।

दूसरों में अच्छाई ढूंढने में,

अपने अंदर की बुराई भूल गए।

बेटी कितनी भी प्यारी हो मां अपना संसार

बहू को ही देती है।

चाहे कितना भी गुस्सा केर ले ,

पर सारा अधिकार बहू को ही देती है।

बहू को बेटी बना कर देखो तो,

खुशियां आपके घर आ जाएंगी

उनको अपना मान कर देखो तो,

वो आपकी हर बात सह जाएगी।


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